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अलीगढ़ को परेशान कर रहा एक सवाल, आखिर मतपेटी तोडऩे की हिम्मत कैसे हो गई

उपद्रवियों ने धज्जियां उड़ा दीं। चुनाव में छिटपुट मारपीट तो आम है मगर पोलिंग बूथ पर हमले की घटना ने पुलिस प्रशासन के सुरक्षा प्रबंधों पर सवाल खड़ कर दिए। पीठाधीन अधिकारी को पीटा गया। मतपेटियां तोड़ दीं और मतफत्र फाड़ दिए।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 01 May 2021 10:16 AM (IST)Updated: Sat, 01 May 2021 10:16 AM (IST)
अलीगढ़ को परेशान कर रहा एक सवाल, आखिर मतपेटी तोडऩे की हिम्मत कैसे हो गई
पीठाधीन अधिकारी को पीटा गया। मतपेटियां तोड़ दीं और मतफत्र फाड़ दिए।

अलीगढ़, जेएनएन।  29 अप्रैल का दिन वही था, जिसके लिए एक महीने से पूरा पुलिस महकमा जुटा हुआ था। सुरक्षा चाक-चौबंद के दावे किए गए। लेकिन, उपद्रवियों ने धज्जियां उड़ा दीं। चुनाव में छिटपुट मारपीट तो आम है, मगर पोलिंग बूथ पर हमले की घटना ने पुलिस प्रशासन के सुरक्षा प्रबंधों पर सवाल खड़ कर दिए। पीठाधीन अधिकारी को पीटा गया। मतपेटियां तोड़ दीं और मतफत्र फाड़ दिए। आखिर सेक्टर स्तर पर तैनात सुरक्षा कहां थी? कहां से उपद्रवियों में इतनी हिम्मत आ गई? क्या उन्हें पुलिस का कोई खौफ नहीं था। इस घटना ने एक बार फिर पुलिस के इकबाल को चुनौती दी है। अकराबाद में भी पुलिस पर पथराव हुआ। यहां लोगों को नियंत्रित करने की वो ट्रेनिंग क्यों काम नहीं आई, जो एक माह से पुलिसकर्मियों को दी जा रही थी। झांकना होगा कि कमी चूक हुई। पुलिस की धाक बरकरार रखने के लिए कड़ी कार्रवाई भी करनी होगी।

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डंडा चलाने की बारी

हालात इन दिनों बेहद खराब हैं। मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। घर से अनावश्यक बाहर निकलना संकट मोल लेने के बराबर है। लेकिन, लोग अब भी समझदार नहीं बन रहे। कोरोना कफ्र्यू खत्म होने पर जैसे ही बाजार खुलते हैं, मानो कोरोना भी खत्म हो जाता है। बाजारों में भयंकर भीड़ जुट जाती है, जो खतरे की घंटी है। दूसरी तरफ बीते 15 दिनों से हालात ये हैं कि थानों में फोर्स नहीं है। ऐसे में भीड़ को सबक सिखाने में पुलिस हल्की पड़ रही है। हालांकि कप्तान ने कई बार चेतावनी भी दी कि नियमों का उल्लंघन होता रहा, तो सख्त कार्रवाई करनी पड़ेगी। अपील भी की है कि ऐसी नौबत न आने दें। लेकिन, लोग टस से मस नहीं हो रहे। अब सख्ती की जरूरत लग रही है। पुलिस को डंडा चलाना पड़ेगा, तभी इन बिगड़ते जा रहे हालातों पर काबू पाया जा सकता है।

एक पैर अंदर तो दूसरा बाहर

नए कप्तान के आने के बाद थानों व चौकियों की कार्यशैली बदल गई है। अब तक पुलिस चुनावी मोड में थी। फिर भी कामकाज का ट्रेलर तो दिख ही गया है। यूं तो थाना पुलिस के सामने तमाम काम होते हैं। ऊपर से अब कई हेल्पलाइन शुरू हो गईं है, जिनसे थानों का काम दोगुना हो गया। पुलिसकर्मी थाने में पहुंच नहीं पाते कि नई सूचना आ जाती है। इस बात में कोई दोराय नहीं कि ये हेल्पलाइन जनता की सेवा के लिए हैं। लेकिन, हमें इसकी आदत ही नहीं है। न कभी यह चीजें किसी ने सिखाईं। लेकिन, अब इस एक पैर अंदर और दूसरा बाहर वाली स्थिति में पुलिसकर्मियों के मन घबराने लगे हैं। चुनावी मोड खत्म होने के बाद सख्ती की सुगबुगाहट तेज हो गई है। अंदरखाने खबर है कि कई बदलाव हो सकते हैं। लेकिन, जो ईमानदार और कर्मठ हैैं, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है।

तो क्या बंदी में भी छलक रहे जाम...

आपरेशन आवारा...। यह आपरेशन उन लोगों के लिए मुसीबत बन गया है, जो जाम छलकाने के शौकीन हैं। सड़क पर शराब पीकर माहौल बिगाडऩे वाले लोगों के लिए बने इस आपरेशन में शुरुआती दिनों में ताबड़तोड़ कार्रवाइयां हुईं। लेकिन, इसकी आड़ में कमाई का खेल भी चला। मौके से लेनदेन करके लोगों को छोड़ दिया जाता है। वहीं साप्ताहिक बंदी की स्थिति गफलत से भरी हुई है। पहले ठेके खुले थे। फिर बंद हो गए। लेकिन, पुलिस की कार्रवाई में कमी नहीं आई। सामान्य दिनों मेें भी औसतन 50 लोगों पर कार्रवाई हो रही? है। साप्ताहिक बंदी में भी संख्या इतनी ही है। अगर बंदी है? तो कार्रवाई किस पर हो रही है? क्या बंदी में भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं हो रही? स्पष्ट है? कि ठेके या तो चोरी-छिपे खोले जा रहे हैं, या फिर आपरेशन आवारा का बंदी में भी लोगों पर असर नहीं हो रहा।


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