World Nature Conservation Day 2020: 30 वर्षाें की इस अनूठी सेवा से मुस्कुरा रही है प्रकृति
World Nature Conservation Day 2020 तीस वर्ष से अपने पैरों के निशानों पर डालते हैं बीज ताज नेचर वॉक और छावनी क्षेत्र में दर्जनों वृक्ष तैयार।
आगरा, सुबान खान। पत्थर नहीं चुभते जब तक पांव में कदमों के निशां बनते नहीं हैं... युवा कवि दीपांशु गुप्ता की ये पंक्तियां डॉ. मुकुल पंड्या और अंकुश देव की कहानी को बयां करती हैं। इन्होंने पद चिन्हों से धरा का शृंगार किया। घर के आंगन से लेकर गली-गलियारे और राहों में प्रकृति को इस कद्र सजाया है कि पड़ोसी भी उसके आगोश में संतृप्त हैं।
दरअसल ये कहानी किसी विशेष व्यक्ति की नहीं है, बल्कि ताजनगरी के दो साधारण लोग विभव नगर निवासी डॉ. मुकुल पंड्या और पथवारी निवासी अंकुश देव की है। दोनों को प्रकृति से प्रेम इस कद्र हुआ कि पूरी जवानी धरा के शृंगार में गुजार दी। आज दोनों की मेहनत सफलता के शिखर पर पहुंच चुकी हैं। फ्रांस भाषा में ज्ञान प्राप्त डॉ. मुकुल पंड्या ने तीस वर्ष पहले एक पेड़ को कटते हुए देखा था। उन्होंने पेड़ तो बचा लिया, पर हृदय पर जोर का घात लगा। तब से आज तक इतने पौधों को वृक्ष बना दिया कि खुद भी गिनती नहीं कर सके। विलुप्त होती 37 पेड़ों की प्रजातियों को आगरा में पुर्नजन्म देने वाले अंकुश देव और डॉ. पंड्या लगभग दस वर्ष से लगातार जहां से गुजरते हैं वहां पर सहजन, देसी बबूल, नीम, जामुन और खजूर के बीज डालते चले जाते हैं।
देव द्वारा छावनी क्षेत्र में डाले गए सहजन और देसी बबूल के बीज अब वृक्ष बन गए हैं। डॉ. पंड्या द्वारा विभव नगर के जनक पार्क में डाले गए बीज वृक्ष बनकर लोगों को आराम दे रहे हैं।
घर को बना दिया बगीचा
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों से पुरस्कृत डॉ. मुकुल पंड्या ने तीस वर्ष में अपने घर को बगीचा बना दिया है। अब घर में देसी से लेकर विदेशी प्रजातियों के पेड़, पौधे वातावरण को शुद्ध बना रहे हैं। लगभग 400 पौधों में पीलखन, गुलाब जामुन, पीपल, बरगद, चीकू, पाम, गुड़हल, जंगल जलेबी, ट्रिटेरियम, फाइकस रमफाई, केला, ट्रेवलस ट्री, सात प्रकार की गुलचीनी, नौलिना, चमेली मु्राया, शहतूत, गोरख इमली, गुलमोहर, निमफिया माइला, कुमुदनी, फाइकस ट्रीमूला, डग फ्लोवर, बिगनौनिया कैंपस, पांच प्रकार के साइकस आदि हैं। डॉ. पंड्या बताते हैं कि उन पेड़ों को तैयार करने में तीस वर्ष लग गए हैं। इसके अलावा उन्होंने दूसरे घरों पर भी बेल चढ़ा रखी हैं।
60 प्रजातियों की पहचान
अंकुश देव ने 12 कक्षा तक पढ़ाई की और घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से नौकरी शुरू कर दी। वर्ष 2014 तक नौकरी की। इसके बाद का समय पूर्ण रूप से प्रकृति के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने आगरा से विलुप्त होने वाले 60 प्रजातियों के पौधों की पहचान की है और 37 प्रजातियों के पौधे कलाकृति में दूसरे राज्यों से लाकर लगाया हैं।
- डॉ. मुकुल पंड्या और अंकुश देव दोनों मिलकर हर वर्ष पांच किलो बीज जमीन में डाल देते हैं।
- सहजन, जामुन, देसी बबूल, खजूर के बीजों के प्रमुखता देते हैं।
- डॉ. मुकुल पंड्या के घर में लगभग 400 प्रजातियों के पौधे लगे हैं।
- अंकुश देव ने दूसरे राज्यों से लाकर 37 प्रजातियों के पौधे लगाए हैं।