Move to Jagran APP

World Earth Day 2020: इन उपायों पर हुआ काम तो Lockdown के बाद भी मुस्‍कुराती रहेगी धरा

पृथ्वी दिवस आज। लॉक डाउन से ताजनगरी में प्रदूषण हुआ कम। धरा के श्रृंगार को लगाएं अधिक से अधिक पौधे कूड़ा न जलाएं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 01:28 PM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 01:28 PM (IST)
World Earth Day 2020: इन उपायों पर हुआ काम तो Lockdown के बाद भी मुस्‍कुराती रहेगी धरा
World Earth Day 2020: इन उपायों पर हुआ काम तो Lockdown के बाद भी मुस्‍कुराती रहेगी धरा

आगरा, निर्लोष कुमार। प्रकृति मुस्कुरा रही है। नीला आसमान बाहें फैलाए आलिंगन को आतुर है। कालिंदी कलरव कर रही है। हवा स्वच्छ हो गई है। वाहनों का शोर थम गया है। रात में जुगनू चमकने लगे हैं। सब कुछ चमत्कार सा नजर आ रहा है। मगर क्या यह चमत्कार है, बिल्कुल नहीं। दरअसल, लाॅक डाउन में जहर उगलते कल- कारखानों, फैक्ट्रियों, सार्वजनिक और निजी परिवहन के साधनों पर तालाबंदी और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली गतिविधियों पर रोक के चलते ऐसा हुआ है। पिछले कुछ दशकों में प्रकृति को मानव ने जितना छेड़ा, उतना ही उसे नुकसान पहुंचा। बुधवार को पृथ्वी दिवस है। वर्ष 1970 में शुरू हुआ यह आयोजन स्वर्ण जयंती मना रहा है। क्लाइमेट चेंज से जूझती धरती न्याय मांग रही है, अब गुनाहों के हिसाब का समय है। लॉक डाउन के बाद हमें ऐसे कदम उठाने होंगे, जिनसे प्रकृति यूं ही मुस्कुराती रहे। आने वाली पीढ़ियों को भी स्वच्छ हवा और पानी मिल सके।

loksabha election banner

विकास के नाम पर भेंट न चढ़े हरियाली

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास के नाम पर हरियाली की भेेंट न चढ़े। आगरा में विकास योजनाओं के नाम पर वर्ष 1996 से अब तक विभिन्न योजनाओं में करीब 90 हजार पेड़ों पर आरी चल चुकी है। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट द्वारा वन एवं वन्य जीव विभाग से विभिन्न योजनाओं में कटे पेड़ों का ब्यौरा मांगा था। विभिन्न योजनाओं में विभाग ने 77640 पेड़ कटने की जानकारी दी। नेशनल हाईवे-दो को सिक्स लेन करने को आगरा में 11327 पेड़ काटे गए। न्यू दक्षिणी बाइपास को 400, आगरा-अलीगढ़ राजमार्ग के चौड़ीकरण को 484, फतेहाबाद रोड के चौड़ीकरण को 600 से अधिक पेड़ कटे।

बढ़ने की जगह घट गया फॉरेस्ट कवर

सुप्रीम कोर्ट ने 30 दिसंबर, 1996 को ताज की 50 किमी की परिधि में ताज ट्रेपेजियम जोन बनाने का आदेश किया था। आगरा के साथ इसमें फीरोजाबाद, मथुरा, हाथरस, एटा, भरतपुर भी हैं। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार जिले में कुल क्षेत्रफल का 33 फीसद तक फॉरेस्ट कवर होना चाहिए। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया, देहरादून की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार आगरा में कुल क्षेत्रफल के 6.50 फीसद पर ही फॉरेस्ट कवर है। जबकि वर्ष 2001 में आगरा में 6.38 फीसद और 2017 में 6.73 फीसद क्षेत्रफल में फॉरेस्ट कवर था। 2019 में 2017 की तुलना में फॉरेस्ट कवर में 9.38 वर्ग किमी की गिरावट आई। दरअसल, वर्ष 2018 में 11 अप्रैल और दो मई को आए तूफान में हजारों पेड़ों की बलि चढ़ने से यह स्थिति हुई है। जबकि प्रतिवर्ष बढ़े स्तर पर होने वाले पौधरोपण के चलते फॉरेस्ट कवर बढ़ना चाहिए था। इससे वन एवं वन्य जीव विभाग द्वारा किए जाने वाले पौधराेपण पर सवाल खड़े होते हैं।

फॉरेस्ट कवर की स्थिति

स्थिति, 2017, 2019

क्षेत्रफल: 4041 वर्ग किमी, 4041 वर्ग किमी

वेरी डेंस फॉरेस्ट: 0, 0

मॉडरेट डेंस फॉरेस्ट: 63, 62.68

ओपन फॉरेस्ट, 209, 199.94

टोटल फॉरेस्ट, 272, 262.62

कुल क्षेत्रफल का वन फीसद: 6.73, 6.50

परिवर्तन: चार वर्ग किमी, 9.38 वर्ग किमी

स्क्रब: 64, 75.14

पर्यावरण के कई प्रहरी

ताजनगरी में पर्यावरण संरक्षण को सरकारी स्तर पर किए जा रहे प्रयास जब नक्कारखाने में तूती के समान नजर आते हों, वहां सामाजिक संगठनों व व्यक्तियों द्वारा स्वयं के स्तर पर किए गए प्रयास सराहनीय हैं और उनके उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। ऐसे लोगों व संगठनों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।

हरविजय सिंह बाहिया

पर्यावरण प्रेमी हरविजय सिंह बाहिया ने ताजनगरी को हरा-भरा बनाने की कवायद वर्ष 2010 में शुरू की थी। मंटोला नाले के पास सफाई कराकर पौधारोपण कराया। इसके अलावा वो जैन दादाबाड़ी शाहगंज, करकुंज, एमजी रोड टू, सिटी स्टेशन, केंद्रीय हिंदी संस्थान, सेंट पीटर्स कॉलेज, सेंट पॉल्स स्कूल के पास परिषदीय स्कूल, एत्माद्दौला व्यू प्वॉइंट, आरबीएस इंटर कॉलेज, ताज नेचर वॉक, आगरा कॉलेज, सेंट जोंस कॉलेज आदि जगहों पर पौधारोपण करा चुके हैं। आगरा कॉलेज के बाहर फुटपाथ पर प्रेरणा वन विकसित किया।

आरपी भारती

वन विभाग से मुख्य वन संरक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए अारपी भारती ने लॉयर्स कॉलोनी के बदहाल पार्क को हरा-भरा बनाने को काफी मशक्कत की। पार्क की दशा बदल चुकी है और यहां औषधीय गुणों वाले पौधे भी उन्होंने लगाए हैं।

वृक्ष वंदना

2018 में अप्रैल व मई में आए तूफान में पेड़ों को पहुंची क्षति से हुए नुकसान की भरपाई को यह संगठन बना। स्पीड कलर लैब के संचालक संजय गोयल ने सोशल मीडिया के माध्यम से मिशन को बढ़ाया। धीरे-धीरे शहर के कई लोग इससे जुड़ गए। ट्री गार्ड के साथ काेठी मीना बाजार मैदान के पास अग्रसेन भवन, पचकुइयां, तहसील रोड से कलक्ट्रेट और कलक्ट्रेट से वाल्मीकि वाटिका तक संस्था ने पौधे लगवाए।

अनफोल्ड फाउंडेशन

अनफोल्ड फाउंडेशन ने शुरुआत लोगों को पॉलीथिन व प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने को जागरूक करने से की थी। करीब डेढ़ वर्ष से संस्था पॉलीथिन को प्लास्टिक की बोतलाें में भरकर ईकाे ब्रिक्स बनाना सिखा रही है। लाजपत कुंज पार्क में ईको ब्रिक्स से बने बेंच और स्टूल बनवाए। सूरसदन तिराहा पर लगा ग्लोब बनवाया। ईको ब्रिक्स का प्रयोग रामलाल वृद्ध अाश्रम में भी किया गया है।

यमुना की दशा सुधारे बिना संभव नहीं सुधार

कालिंदी कभी यमुना की जीवनदायिनी थी। शाहजहां ने दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल के दीदार को न केवल उसके मनोरम तट को चुना, बल्कि वो स्वयं इसका पानी पिया करता था। दो दशकों से अधिक समय में यमुना को स्वच्छ बनाने को यमुना एक्शन प्लान के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद हो चुके हैं, मगर यमुना नहीं सुधरी। उसकी गंदगी में पनपे कीड़े गोल्डीकाइरोनोमस ने कई बार ताजमहल की सतह पर हरे और गहरे भूरे रंग की गंदगी के दाग छोड़े। उसमें 61 नाले सीधे गिर रहे हैं, जिससे वो गंदे नाले में बदल गई है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सफेद हाथी बने हुए हैं।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट इस पर मोहर लगा चुकी है। हां, लॉक डाउन में जरूर यमुना स्वच्छ नजर आ रही है। उसके पानी में पारदर्शिता बढ़ी है। ऐसा उसमें फैक्ट्रियों व कल-कारखानों से जाने वाला औद्योगिक अपशिष्ट जाना रुकने से हुआ है। ताजनगरी को खूबसूरत बनाने को यमुना को स्वच्छ किया जाना आवश्यक है।

प्राकृतिक जल स्रोतों की लेनी होगी सुध

यमुना किनारे पर आबाद आगरा में पूर्व में तालाब, पोखर, कुओं की कमी नहीं थी। उनकी उचित देखरेख नहीं होने और अवैध कब्जों से प्राकृतिक जल स्रोत सिमटते गए। तालाबों और पोखरों में सिल्ट भरी तो फिर उनकी सफाई ही भुला दी गई। तोता का ताल का आज कहीं पता नहीं चलता। ऐसे ही शहर के कई तालाबों की भूमि पर मल्टीस्टोरी बन चुकी हैं। प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार आगरा में 990.703 वर्ग हेक्टेअर क्षेत्रफल में 3687 तालाब हैं। हालांकि, यह केवल आंकड़े हैं, बहुत से तालाबों पर कब्जे हो चुके हैं और अधिकांश का क्षेत्र सिमट गया है। यही वजह है कि जिले के 15 में से 13 ब्लॉक डार्क जोन में हैं। प्रतिवर्ष भूगर्भ जल स्तर से 30 सेमी से एक मीटर तक नीचे जा रहा है। धरा की कोख सूखे नहीं, इसके लिए हमें प्राकृतिक जल स्रोतों की सुध लेनी होगी। भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन को रोकना होगा।

जिले में तालाबों की स्थिति

तहसील, संख्या, क्षेत्रफल

सदर, 445, 122.714

बाह, 774, 191.964

फतेहाबाद, 656, 350.697

किरावली, 637, 48.294

खेरागढ़, 680, 156.44

एत्मादपुर, 495, 120.684

कुल, 3687, 990.703

रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर देना होगा ध्यान

भूगर्भ जल रिचार्ज को रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर ध्यान देना होगा। शहर की पॉश कॉलोनी भरतपुर हाउस में 82 मकान हैं। यहां बारिश के दिनों में जलभराव हो जाता था। कॉलोनीवासियों ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग में इस समस्या का हल तलाशा। वहीं, कमला नगर के रश्मि नगर में दो दर्जन मकानों में बारिश की एक-एक बूंद को रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से सहेजकर लोगों ने गिरते भूगर्भ जल स्तर को साधा। मेयर नवीन जैन ने भी घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने पर गृहकर में दो फीसद छूट दिए जाने की घोषणा की थी।

मानवीय गतिविधियों पर नियंत्रण से सुधरेगी वायु गुणवत्ता

आगरा में वायु प्रदूषण मुख्य समस्या है। यहां वायु प्रदूषण के लिए मुख्य तौर पर धूल कण (पीएम10) और अति सूक्ष्म कण (पीएम2.5) जिम्मेदार हैं। राजस्थान से नजदीकी के चलते रेतीली हवाएं भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। कूड़ा जलने से भी आगरा में विषैले कण हवा में घुलते रहे हैं। जॉर्जिया इंस्टीट्यूट अॉफ टेक्नोलॉजी अटलांटा अमेरिका, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रसायन शाखा ने नवंबर, 2011 से दिसंबर, 2012 तक ताज पर एक अध्ययन किया था। इसमें टीम को ताज पर 55 फीसद धूल कण, 35 फीसद ब्राउन कार्बन कण और 10 फीसद ब्लैक कार्बन कण मिले थे। अध्ययन में माना गया था कि डीजल चालित वाहन व जनरेटर चलने, ताज के समीप उपले व लकड़ी जलने से कार्बन कण ताज को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब, लॉक डाउन में मानवीय गतिविधियों पर रोक के चलते पीएम10 और पीएम2.5 की मात्रा में गिरावट आने से आगरा में वायु गुणवत्ता सुधरी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए अध्ययन में भी वायु प्रदूषण के लिए मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार माना गया है। इनमें निर्माण कार्यों में मानकों की अनदेखी और वाहनों के चलने से उड़ने वाले धूल कण प्रमुख हैं। निर्माण कार्यों में मानकों का पालन कर और डीजल व पेट्रोल चालित वाहनों के प्रयोग को सीमित कर हम वायु गुणवत्ता को सुधार सकते हैं। इलेक्ट्रिक व्हीकल का प्रयोग भी इसमें सहायक बनेगा।

1970 से हुई शुरुआत

वर्ष 1970 से पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग से जूझती पृथ्वी पर पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना है। इसे 193 से अधिक देशों में मनाया जाता है।

प्रकृति को बचाए रखने को आवश्यक है कि हम उसके साथ अधिक छेड़छाड़ नहीं करें। यमुना को स्वच्छ बनाए रखने को आवश्यक है कि उसमें सीधे गिरते नालों और उनमें बहकर आने वाली गंदगी को रोका जाए। यमुना में ड्रेजिंग कराई जाए, जिससे कि उसमें अधिक पानी रह सके।

-पं. अश्विनी मिश्रा, यमुना सत्याग्रही

पर्यावरण संतुलन बना रहे, इसके लिए हमें प्रदूषण के स्तर को कम करना होगा। अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, निर्माण कार्यों में मानकों का पालन कर और इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा देकर हम प्रदूषण को बढ़ने से रोक सकते हैं। यमुना में गिरते नालों को रोकना होगा।

-डॉ. शरद गुप्ता, पर्यावरण प्रेमी 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.