आगरा के नारी संरक्षण गृह से छोड़ी गईं महिलाएं अब तक नहीं मिलीं
एक साल पहले गीता राकेश के खिलाफ चार्जशीट लगाने केबाद बंद कर दी थी विवेचना, एसएसपी ने शुरू कराई अग्रिम विवेचना, कई बार इलाहाबाद जा चुकी टीम।
आगरा (जेएनएन): नारी संरक्षण गृह से एक साल पहले छोड़ी गई महिलाओं का अब तक सुराग नहीं लगा है। पुलिस ने अधीक्षक गीता राकेश के खिलाफ चार्जशीट लगाकर विवेचना बंद कर दी। अब एक माह पहले एसएसपी ने इसकी अग्रिम विवेचना शुरू कराई है।
इलाहाबाद से रेस्क्यू कर यहां भेजी गई महिलाओं और बच्चों को गीता राकेश ने एक साल का समय पूरा होने से पहले ही छोड़ दिया था। इनमें से अधिकांश को धर्म के भाई, चाचा समेत अन्य रिश्तेदारों को सौंपा गया। पुलिस उनके पते पर पहुंची तो रेड लाइट एरिया निकला। कुछ कोठे पुलिस ने सील कर दिए तो कुछ बदनाम गलियों के घर थे। मगर, यहां किसी का रहना नहीं पाया गया। उनके बारे में सुराग न मिलने पर पुलिस ने सितंबर 2017 में गीता राकेश के खिलाफ चार्जशीट लगाकर विवेचना बंद कर दी। सितंबर में गुड़िया संस्थान के पदाधिकारी और अधिवक्ता एसएसपी से मिले। तब उन्होंने अग्रिम विवेचना के आदेश दिए। सीओ छत्ता रितेश कुमार सिंह ने बताया कि उनकी तलाश के लिए बनाई गई टीम कई बार सुपुर्दगी के दौरान बताए गए पतों पर गई लेकिन कोई सुराग नहीं मिला है। इसके लिए और प्रयास किए जा रहे हैं।
देश का पहला मामला
अदालत में गीता राकेश के खिलाफ पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं का दावा है कि राजकीय संप्रेक्षण गृह की महिला अधीक्षक को सजा का यह देश में पहला मामला है। यह केस अन्य मामलों में नजीर बनेगा।
गुड़िया संस्था ने लड़ी लंबी कानूनी लड़ाई
सामाजिक कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्था गुड़िया ने गीता राकेश को सलाखों के पीछे पहुंचाने से लेकर सजा कराने तक लंबी लड़ाई लड़ी। अधिवक्ता गोपाल कृष्ण ने पैरवी की। स्थानीय स्तर पर उन्होंने अधिवक्ता मेघ सिंह यादव और सरोज यादव को साथ लिया। तीनों की मजबूत पैरवी के आगे बचाव पक्ष के अधिवक्ता नहीं टिक सके और सजा हो गई।
पुनर्वास के नाम पर कई को वैश्यावृत्ति में धकेला
पुलिस ने केस डायरी के पर्चा नंबर सात में गीता राकेश के भूतकाल का जिक्र किया था। पत्रावली में मौजूद इन साक्ष्यों को अदालत में मेघ सिंह यादव ने मजबूती से रखा। इसमें कहा था कि अभियुक्त करीब दस साल पहले भी पुनर्वास के नाम पर तमाम पीड़िताओं को वैश्यावृति में धकेल चुकी है। जिन पतों पर उन्हें भेजा गया वे रेड लाइट एरिया के थे। इसीलिए वह अभ्यस्थ अपराधी है। उसका यह पहला जुर्म नहीं है।
चौदहवें दिन सुनाई गई सजा
अदालत ने 14 दिन पहले ही केस पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। यदि शनिवार को फैसला नहीं सुनाया जाता तो फिर से सजा पर सुनवाई होती।
अदालत लाइव
सुबह नियत समय पर अदालत में कार्रवाई शुरू हुई। फैसला सुनने शहर के बहुत लोग पहुंचे। अदालत खचाखच भरी हुई थी।
- गीता राकेश को पुकारा गया
वह बैठी रही, उसके वकील खड़े हुए।
एडीजे- सजा के प्रश्न पर आपको कुछ कहना है?
वकील- निरुत्तर रहे कुछ नहीं बोले।
एडीजे- आपको कुछ कहना है? (गुड़िया संस्था के वकीलों की ओर इशारा करते हुए)
गुड़िया संस्था के वकील- ऐसे मामले में आजीवन कारावास से कम की सजा कानून में नहीं है।
इसके बाद एडीजे चैंबर में चले गए
- दोपहर दो बजे पत्रावली फिर पेश हुई।
- गीता राकेश को फिर पुकारा गया तो उनके वकील पहुंचे।
- एडीजे ने फैसला पढ़कर सुनाया।
- फैसला सुन गीता राकेश रोने लगी।
- इसके बाद अन्य मामलों में सुनवाई शुरू हो गई।