सीता ने किया था दशरथ का पिंडदान, जानने के लिए पढ़े पूरी खबर
गरुण पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म है आवश्यक। पुरुष की अनुपस्थित में महिला कर सकती है श्राद्ध।
आगरा(जेएनएन): लोक मान्यता है कि मृत्युपरांत के संस्कार सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं। पिंडदान हो या श्राद्ध, इन्हें करने का अधिकार सिर्फ पुरुष का ही है। जबकि यह मिथक मात्र है। यह मिथक स्वयं सीता जी द्वारा तोड़ा गया था।
ज्योतिषाचार्य पवन मेहरोत्रा के अनुसार शास्त्रों में वर्णित है कि राम, सीता और लक्ष्मण दशरथ जी का पिंडदान करने गया में फाल्गू नदी के तट पर गए थे। यहां पहुंचने पर श्री राम और लक्ष्मण सीता जी को छोड़कर पिंडदान की सामग्री जुटाने के लिए चले गए। इसी बीच आकाशवाणी होने से सीता जी को पता चला कि पिंड दान का शुभ मुर्हूत निकला जा रहा है। सीता जी ने स्थिति को समझा और गायों, फाल्गू नदी, केतकी के पुष्प और अग्नि को साक्षी मानकर दशरथ जी को बालू के पिंड बनाकर दान कर दिया। जब राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता जी ने इस घटना को बताया लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हुआ। जब सीता जी ने साक्षियों से इसकी पुष्टि करने को कहा तो वटवृक्ष के अलावा किसी ने साक्षी न दी। इससे क्रोधित होकर सीता जी ने गायों को अपवित्र वस्तुएं खाने, फाल्गू नदी को ऊपर से सूखी और धरातल से नीचे बहने, केतकी के पुष्पों को शुभ कार्यों में वर्जित रहने और अग्नि के संपर्क में आने वाली हर वस्तु को नष्ट होने का श्राप दिया। वहीं वट वृक्ष को सदैव हरा भरा रहने का आशीर्वाद दिया था। श्री राम को जब विश्वास हुआ तब उन्होंने स्त्रियों को पुरुष की अनुपस्थिति में श्राद्धकर्म करने का आशीर्वाद दिया।
महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध
मान्यता के अनुसार यदि किसी का पुत्र न हो तो उस व्यक्ति कि जीवित पत्नी अपने पति की आत्मा की शांति हेतु श्राद्ध कार्य कर सकती है। उसी कुल की विधवा स्त्री भी अपने पितरों की शांति हेतु श्राद्ध कर्म कर सकती है। माता पिता के कुल में कोई न हो तो भी स्त्री कन्याओं को श्राद्ध करने का अधिकार है। लेकिन विवाहित महिलाएं ही श्राद्ध कर सकती है। किसी स्त्री का पति या पुत्र बीमार है तो उसके हाथ से स्पर्श कराकर महिला श्राद्ध कर सकती है। घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध करने का अधिकार उसका है।
कब कर सकती हैं महिलाएं श्राद्ध
शास्त्रों में श्राद्ध करने का अधिकार पुरुषों को दिया गया है। यदि घर में कोई पुरुष नहीं है तो इस स्थिति में महिलाएं भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती हैं लेकिन इसके कुछ नियम भी बताए गए हैं।
क्यों जरूरी है श्राद्ध कर्म
श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है। श्राद्ध का प्रथम अनिवार्य तत्व है पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना। गरुण पुराण के अनुसार समय से श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करने से मनुष्य आयु, संतान, यश, स्वर्ग कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख, धन, धान्य आदि प्राप्त कर है।
कौन कौन कर सकता है श्राद्ध
शास्त्रों में कहा गया है कि पिता का श्राद्ध पुत्र को करना चाहिए। पुत्र न होने पर प्रपौत्र या पौत्र श्राद्ध कर सकते हैं। पुत्र या पौत्र न होने पर पुत्री का पुत्र श्राद्ध कर सकता है। इसके भी न होने पर भतीजा श्राद्ध कर्म कर सकता है। गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध कर सकता है।