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जानिए क्‍यों होती है भगवान जगन्‍नाथ की पेड़ से बने विग्रह की पूजा Agra News

पुरानी कथा के अनुसार महर्षि नारद की इच्‍छा पर भगवान ने धारण किया था जगन्‍नाथ का रूप। पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने बनवाया था तने से विग्रह।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 21 Jun 2019 02:30 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jun 2019 02:30 PM (IST)
जानिए क्‍यों होती है भगवान जगन्‍नाथ की पेड़ से बने विग्रह की पूजा Agra News
जानिए क्‍यों होती है भगवान जगन्‍नाथ की पेड़ से बने विग्रह की पूजा Agra News

आगरा, जेएनएन। भगवान जगन्नाथ का स्वरूप निराला है। कलियुग में भक्तों का कल्याण करने के लिए भगवान ने महर्षि नारद की इच्छा पर अपना ये स्वरूप धारण किया था। आज भी जगन्‍नाथपुरी मंदिर में पेड़ के तने से बने विग्रह की पूजा की जाती है, न कि धातु या पत्‍थर से बनी मूर्ति की।

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इसके पीछे एक बहुत प्रचलित कथा के अनुसार माता यशोदा, देवकी जी और उनकी बहन सुभद्रा वृंदावन से द्वारका पहुंची। उनके साथ मौजूद रानियों ने श्रीकृष्ण की बाललीला सुनने की इच्छा जताई। माता यशोदा और देवकी रानियों को लीलाएं सुनाने के लिए राज़ी हो गई। भगवान की इन लीलाओं को खुद श्रीकृष्ण और बलराम न सुन लें। इसलिए दरवाजे पर बहन सुभद्रा को पहरेदारी के लिए खड़ा कर दिया। माता यशोदा ने कृष्ण की लीला की गाथा शुरू की, जैसे-जैसे वह बोलती सब उनकी बातों में मग्न होते गए। खुद सुभद्रा भी पहरा देने का ख्याल भूलकर उनकी बातों सुनने लगीं। इस बीच कृष्ण और बलराम दोनों वहां आ गए और इस बात की किसी को भनक नहीं हुई। सुभद्रा भी इतनी मगन थीं कि उन्हें पता ना चला कि कान्हा और बलराम कब वहां आ गए।

भगवान कृष्ण और भाई बलराम दोनों भी माता यशोदा से मुख से अपनी लीलाओं को सुनने लगे। अपनी शैतानियों और क्रियाओं को सुनते-सुनते बाल खड़े हो गए, आंखे बड़ी हो गईं और मुंह खुला रह गया। वहीं, खुद सुभद्रा भी इतनी मंत्रमुग्ध हो गईं कि प्रेम भाव में पिघलने लगीं। यही कारण है कि जगन्नाथ मंदिर में उनका कद सबसे छोटा है। सभी कृष्ण लीलाओं को सुन रहे थे कि इस बीच यहां नारद मुनि आ गए। नारद जी सबके हाव-भाव देखने लगे ही थे कि सबको अहसास हुआ कि कोई आ गया है। इस वजह से कृष्णलीला की गाथा यहीं रुक गई। नारद जी ने श्रीकृष्ण के उस मन को मोह लेने वाले अवतार को देखकर कहा कि वाह प्रभु, आप कितने सुंदर लग रहे हैं। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे? उस वक्त श्रीकृष्ण ने कहा कि वह कलियुग में ऐसा अवतार लेंगे।

नारद जी से किए वादे के अनुसार कलियुग में श्रीकृष्ण पुरी के राजा इंद्रद्युम्न के सपने में आए और उनसे कहा कि वह पुरी के दरिया किनारे एक पेड़ के तने में उनका विग्रह बनवाएं और बाद में उसे मंदिर में स्थापित करा दें। श्रीकृष्ण के आदेशानुसार राजा ने इस काम के लिए काबिल बढ़ई की तलाश शुरू की। कुछ दिनों में एक बूढ़ा ब्राह्मण उन्हें मिला और इस विग्रह को बनाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन इस ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह इस विग्रह को बंद कमरे में ही बनाएगा और उसके काम करते समय कोई भी कमरे का दरवाज़ा नहीं खोलेगा, नहीं तो वह काम अधूरा छोड़ कर चला जाएगा।

शुरुआत में काम की आवाज़ आई, लेकिन कुछ दिनों बाद उस कमरे से आवाज़ आना बंद हो गई। राजा सोच में पड़ गया कि वह दरवाजा खोलकर एक बार देखे या नहीं। कहीं उस बूढ़े ब्राह्मण को कुछ हो ना गया हो। इस चिंता में राजा ने एक दिन उस कमरे का दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़ा खुलते ही उसे सामने अधूरा विग्रह मिला। तब उसे अहसास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि खुद विश्वकर्मा थे। शर्त के खिलाफ जाकर दरवाज़ा खोलने से वह चले गए।

उस वक्त नारद मुनि आए और उन्होंने राजा से कहा कि जिस प्रकार भगवान ने सपने में आकर इस विग्रह को बनाने की बात कही ठीक उसी प्रकार इसे अधूरा रखने के लिए भी द्वार खुलवा लिया। राजा ने उन अधूरी मूरतों को ही मंदिर में स्थापित करवा दिया। यही कारण है कि जगन्नाथ पुरी के मंदिर में कोई पत्थर या फिर अन्य धातु की मूर्ति नहीं बल्कि पेड़ के तने को इस्तेमाल करके बनाए गए विग्रह की पूजा की जाती है।

दर्शन न मिलने पर हरिनाम कीर्तन

वृंदावन में ज्येष्ठ पूर्णिमा पर सहस्त्रधारा से स्नान कर बीमार पड़े भगवान जगन्नाथ को नित औषधि देकर स्वस्थ करने के प्रयत्न जारी हैं। भोग मे भी उन्हें फल आदि ही अर्पित किया जा रहा है। दर्शन न मिलने पर भक्त हरिनाम कीर्तन कर रहे हैं। मंदिर में जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की तैयारियां भी चल रही हैं।

जगन्नाथ घाट स्थित जगन्नाथ मंदिर में सुबह से शाम तक हरिनाम संकीर्तन की गूंज सुनाई दे रही है। भगवान के विश्राम के दौरान उनकी सेवा पूजा तो जारी है, किंतु दर्शन नहीं होने से भजन कीर्तन कर भक्त उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं। आश्रम के महंत स्वामी ज्ञानप्रकाश पुरी प्रतिदिन भगवान का पूजन निर्धारित समय पर कर रहे हैं। अस्वस्थ पड़े भगवान अब 15 दिन आराम करने के बाद चार जुलाई को दर्शन देंगे। भगवान रथ में विराजमान होकर नगर भ्रमण पर भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ निकलेंगे।  

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