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Yamuna in Agra: खोखले हैं यमुना में पानी के जहाज चलाने के दावे, सिल्ट बनी है सबसे बड़ा रोड़ा

Yamuna in Agra मानसून में गोकुल बैराज से पानी छोड़े जाने से ताजनगरी में पानी नदी के किनारे तोड़कर बाहर आने लगता है। सालों से यमुना की डिसिल्टिंग नहीं हुई। इसकी वजह से नदी में 15 फुट से अधिक ऊंचाई तक सिल्ट जमा हो गई है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 26 Dec 2020 04:12 PM (IST)Updated: Sat, 26 Dec 2020 04:12 PM (IST)
Yamuna in Agra: खोखले हैं यमुना में पानी के जहाज चलाने के दावे, सिल्ट बनी है सबसे बड़ा रोड़ा
नदी में 15 फुट से अधिक ऊंचाई तक सिल्ट जमा हो गई है।

आगरा, जागरण संवाददाता। यमुना में पानी के जहाज चलाने के खोखले दावे किए जा रहे हैं। नदी में इतनी सिल्ट जमा हो गई है कि उसमें पानी का जहाज चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी भी नहीं समा सकता। मानसून में गोकुल बैराज से पानी छोड़े जाने से ताजनगरी में पानी नदी के किनारे तोड़कर बाहर आने लगता है। सालों से यमुना की डिसिल्टिंग नहीं हुई। इसकी वजह से नदी में 15 फुट से अधिक ऊंचाई तक सिल्ट जमा हो गई है।इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ताजमहल के पीछे यमुना की तलहटी की तरफ एक दरवाजा खुलता था। यह पूरी तरह से सिल्ट में दब चुका है। अब यह दिखाई नहीं देता।

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इतिहासकार राजकिशोर शर्मा 'राजे' के अनुसार, इस दरवाजे की ऊंचाई भी कम से कम से आठ फुट रही होगी। इसके नीचे सीढ़ियां भी होंगी। तब यमुना की तलहटी आती होगी। यह दरवाजा और सीढ़ियां दोनों सिल्ट में दब चुकी हैं। इसके ऊपर अब पार्क भी विकसित कर दिया गया है। यहां ताज की सुरक्षा में लगे जवानों की चौकी बना दी गई है। इन हालातों में यमुना का तल काफी ऊंचा हो गया है। इसकी वजह से इसमें पानी ज्यादा नहीं समा सकता। इतिहासकार का कहना है कि वर्तमान परिस्थिति में यमुना में पानी के जहाज चलाने के दावे करना समझ से परे हैं।

डिसिल्टिंग की जरूरत

ताज ट्रिपेजियम जोन (टीटीजेड) समिति के सदस्य व पर्यावरणविद इंजीनियर उमेश शर्मा का कहना है कि ताजमहल के पीछे यमुना की आखिरी बार डिसिल्टिंग कब हुई थी, इसका रिकार्ड भी मिलना मुश्किल है। वर्तमान परिस्थिति में नदी की डिसिल्टिंग बहुत जरूरी है। तभी नदी गहरी होगी और इसमें पानी ठहर सकेगा।

मुगल काल में चलते थे पानी के जहाज

पर्यावरणविद डा. शरद गुप्ता का कहना है कि सिल्ट की वजह से नदी में पहले जितना पानी नहीं समा सकता। मुगल शासन काल में यमुना काफी गहरी थी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें पानी के जहाजों से व्यापार होता था। तब यमुना लबालब रहती थी लेकिन अधिक गहराई और अधिक चौड़ी होने के कारण इसका पानी किनारों को पार नहीं कर पाता था। वर्तमान में आलम यह है कि कुछ दिनों की झमाझम बारिश के बाद ही यमुना भरी हुई नजर आने लगती है। इसलिए डिसिल्टिंग कर नदी को मूलस्वरूप में लाया जाए। इसके किनारे पर हरियाली विकसित की जानी चाहिए।


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