मजार ने बांह फैलाई तो बन गया मंदिर, जानिए कैसे
मजार पर हो रही इबादत और मंदिर पर पूजा
आगरा, आदर्श नंदन। तास्सुब (मजहबी कट्टरता) का चश्मा उतार कर देखें तो विविधता में एकता की मिसालें हमारे यहां बिखरी पड़ी हैं। बस, इन पर नजर नहीं जाती। सैन्य क्षेत्र की डिफेंस कॉलोनी और लोहामंडी का गेट पुल छिंगा मोदी। ये दो स्थान यह बताने के लिए काफी हैं कि सबका मालिक एक है। समरसता, सद्भावना और समर्पण के यहां साक्षात दर्शन होंगे जहां मजार और मंदिर, दोनों की पूजा-सेवा एक ही समुदाय करता है। साथ-साथ चलती है पूजा और चिरागी
बुंदूकटरा में चावली क्षेत्र के वार्ड नंबर 63 में डिफेंस कॉलोनी है। कॉलोनी बनने के बाद यहां कॉलोनीवालों ने मंदिर बनवाने का निर्णय लिया, लेकिन उसके लिए जगह कहीं नहीं दिखाई दी। 40 साल पुरानी इस कॉलोनी में एक पुरानी मजार थी। मजार परिसर में ही मंदिर निर्माण का संकल्प कॉलोनी की तत्कालीन कमेटी ने लिया। कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष कर्नल सीपीएस चौहान व सचिव संजय खिरवार ने इसके निर्माण की रूपरेखा तैयार की। सभी क्षेत्रीय लोगों की सहमति और सहयोग से यहां आकर्षक मंदिर का निर्माण किया गया।
मंदिर में गणपति, भगवान राम का परिवार, राधा-कृष्ण, हनुमानजी, दुर्गा देवी आदि की प्रतिमाएं हैं। जहां हर विशेष दिवस पर उत्सव मनाया जाता हैं। मंदिर में प्रतिदिन प्रभातफेरी निकाली जाती है। रोजाना एक घंटे योग किया जाता है। मंदिर में कैप्टन गिरधारी शर्मा पुजारी थे, उनका निधन हो गया।
इस परिसर में आठ फुट चौड़ी व 10 फुट लंबी मजार है। जिस पर क्षेत्र के लोग प्रतिदिन सफाई आदि करते हैं। रोजाना चिरागी चढ़ाकर मन्नतें मांगी जाती हैं। गुरुवार को विशेष रूप से इबादत की जाती है। कॉलोनी में करीब 700 परिवार हैं, जिनमें 15 परिवार मुस्लिम हैं। पुजारी ही करते हैं मजार की देखभाल
शहर की घनी आबादी में बसा है लोहामंडी। यहां पर है एक प्राचीन गेट पुल छिंगा मोदी। गेट के एक ओर मंदिर और दूसरी ओर मजार बनी हुई है। मंदिर में हनुमानजी, भोलेनाथ, दुर्गा देवी जी आदि की प्रतिमाएं हैं। यहां प्रतिदिन सुबह-शाम पूजा होती है। समय-समय पर विशेष उत्सव भी मनाए जाते हैं। पूर्व पार्षद सुनील जैन ने बताया कि तरुण पंडित ही मंदिर की उपासना के साथ-साथ मजार की देखभाल व इबादत भी करते हैं। वृहस्पतिवार को मजार पर काफी चहल-पहल रहती है।
इस गेट का पुराना इतिहास है। वरिष्ठ इतिहासविद् राजकिशोर राजे के अनुसार इस गेट का निर्माण वर्ष 1546-47 के करीब शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह ने कराया था। उसने आगरा की चहारदीवारी में 16 द्वार बनवाए थे, उनमें से एक द्वार ये भी था। इस द्वार का प्रयोग फतेहपुर सीकरी और उससे आगे जाने के लिए होता था। यह द्वार पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।