World Heritage Week: मुस्कुराइये, आप विरासतों के शहर आगरा में हैं Agra News
वर्तमान में यहां तीन विश्वदाय स्मारक ताजमहल किला और फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा हैैं। दुनिया में एक जगह तीन विश्वदाय स्मारक और कहीं नहीं हैैं।
आगरा, ऋषि दीक्षित। आगरे का ताजमहल दुनियाभर में ख्यात है। प्रेम और वास्तुकला का अदभुत नमूना। यह अगर आगरा का ताज है तो इसमें टंके नगीनों की कमी भी नहीं। यह खूबसूरती ही हमारे शहर को खास बनाती है। इतिहास और पर्यटन की दृष्टि से आगरा का गौरवशाली स्थान रहा है। मुगलकाल से पहले भी यहां के सघन वन, नदियां और प्राचीन मंदिर आकर्षण का केंद्र रहे हैैं। वर्तमान में यहां तीन विश्वदाय स्मारक ताजमहल, किला और फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा हैैं। दुनिया में एक जगह तीन विश्वदाय स्मारक और कहीं नहीं हैैं। यही नहीं यहां के दो और स्मारक एत्मादुद्दौला और सिकंदरा यूनेस्को की सूची में हैैं, जिनको विश्व विरासत घोषित होने का इंतजार है। उम्मीद है कि इनके विश्वदाय स्मारक घोषित होते ही इनकी संख्या यहां पांच हो जाएगी। इनके अलावा भी यहां कई और ऐतिहासिक धरोहरें हैैं, जो कई कालखंडों की गवाह हैैं।
आप और हम उस शहर में रहते हैैं, जहां कभी ऋषि अंगिरा, भगवान परशुराम के पिता जमदाग्नि और श्रृंगी ऋषि ने घोर तपस्या की थी। यह वह शहर है, जिसने सिकंदर लोदी, बाबर और अकबर जैसे सम्राटों को आकर्षित किया। लोदी ने यहां आधुनिक निर्माण की नींव रखी तो अकबर ने इसे राजधानी बनाया। मिशनरियों ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चुना। यहां की धरती का चप्पा-चप्पा अपने आप में इतिहास संजोए है। विविध रूपों में विभिन्न कालखंडों के दर्शन यहां किए जा सकते हैैं। कला, धर्म और संस्कृति का कोई भी पहलू इस शहर से अछूता नहीं हैैं।
विश्व धरोहर सूची में शामिल ताजमहल जहां मुगल बादशाह के अपनी पत्नी मुमताज महल के प्रेम की निशानी के तौर पर देखा जाता है तो फतेहपुर सीकरी अकबर के गुरु सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है। इसी तरह आगरा किला इतिहास के कई कालखंडों का जीवंत गवाह है जो कभी बादलगढ़ का किला कहलाता था और अब आगरा किला के रूप में ख्यात है। इन तीनों विश्वदाय स्मारकों के साथ एतमादुद्दौला और सिकंदरा (अकबर का मकबरा) का इतिहास भी गौरवशाली है। इसीलिए इन्हें विश्व धरोहर के रूप में दर्ज कराने की प्रक्रिया चल रही है। पुरानी पीढ़ी तो इन कम चर्चित स्मारकों से परिचित है, लेकिन प्रवासी नागरिकों और नई पीढ़ी को इस गौरवमयी इतिहास से परिचित कराना जरूरी है।
सिकंदरा
आगरा-मथुरा राष्ट्रीय राज मार्ग पर अकबर का मकबरा है, जिसे सिकंदरा कहते हैं। यह लोदी स्थापत्य कला पर आधारित पांच मंजिली इमारत है। इसमें सबसे नीचे अकबर की कब्र है। सिकंदरा की पांचवीं मंजिल सफेद संगमरमर से बनी हुई है। इसके चारों तरफ नौ-नौ मेहराबों के दालान हैं। चारों तरफ बगीचे हैं। पहले यमुना नदी सिकंदरा से सटकर बहती थी, जो बाद में धीरे-धीरे यहां से करीब एक किलोमीटर दूर खिसक गई। सिकंदरा की निर्माण शैली दूर से ही आकर्षित करती है।
एत्मादुद्दौला
इस इमारत का निर्माण नूरजहां ने अपने पिता मिर्जा ग्यास बेग, जिसे एत्मादुद्दौला का खिताब प्राप्त था, उसकी कब्र के चारों ओर करवाया था। सफेद पत्थर से बनी यह इमारत यमुना किनारे स्थित है। इसकी नींव भी कुओं पर आधारित है। यह पहली मुगल इमारत है, जो पूरी तरह श्वेत संगमरमर से निर्मित है और संगमरमर में कीमती पत्थर जड़े हुए हैैं। इस इमारत के परिसर में एत्मादुद्दौला के अन्य स्वजनों की भी कब्रें हैैं। इसे बेबी ताजमहल भी कहा जाता है।
मरियम टॉम्ब
सिकंदरा से लगभग एक किलोमीटर आगे कैलाश मोड़ के ठीक सामने लोदी कालीन स्थापत्य पर आधारित एक आकर्षक इमारत है, जिसे मरियम टॉम्ब कहा जाता है। इस भवन की दीवारें काफी मोटी हैैं। इसमें जहांगीर की मां और अकबर की पत्नी जोधाबाई की कब्र है। जोधाबाई जयपुर राजघराने की राजुकमारी थी। उसे अकबर ने मरियम जमानी का खिताब दिया था। 1623 में मरियम जमानी को यहां दफनाया गया तभी से इस स्थान को मरियम टॉम्ब कहा जाता है। इसके चारों तरफ हरियाली और फुलवाड़ी आकर्षित करती है।
लाल ताजमहल
महात्मागांधी मार्ग पर भगवान टाकीज के बराबर में ईसाइयों का कब्रिस्तान है। यह रोमन कैथोलिक ईसाइयों की सबसे पुरानी सिमेट्री है यहां बड़ी संख्या में अंग्रेजों की कब्रें हैं। इस कब्रिस्तान में सबसे भव्य मकबरा जान विलियम हैंसिंग का है जो लाल ताजमहल कहलाता है। यह लाल पत्थर से निर्मित ताजमहल जैसी इमारत है। हैंसिंग को सन् 1799 में दौलतराव सिंधिया ने आगरा का किलेदार नियुक्त किया था। 21 जुलाई 1803 में उसकी मृत्यु हुई थी।
चारबाग
यमुना पार आगरा के पूर्वी छोर पर बाबर ने चारबाग का निर्माण कराया था। यहां बड़ी संख्या में पेड़ और हरियाली थी। इसी के सामने बाबर ने एक मस्जिद बनवाई थी, जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है। बाबर की मृत्यु के बाद करीब 6 माह तक उसका शव चारबाग में ही रखा गया था। बाद में इसे काबुल ले जाकर दफनाया गया।
रामबाग
बाबर ने आगरा में अपना डेरा यमुना के पूर्वी तट पर डाला था। यहीं उसने आरामबाग बनवाया। इसमें कई तलघर हैैं और बड़ी संख्या में पेड़ लगे हुए हैैं। इनमें आज भी कुछ चंदन के पेड़ शेष हैैं। हरा-भरा बगीचा आज भी आकर्षित करता है।
बटेश्वर
आगरा का यह बड़ा तीर्थ स्थल है। बटेश्वर में यमुना किनारे 108 शिव मंदिरों की श्रंृखला बनी हुई है। मंदिरों का स्थापत्य विभिन्न शैलियों पर आधारित है, जिनका निर्माण विभिन्न कालखंडों में हुआ है। बटेश्वर महादेव मंदिर के नाम के पीछे का सच यहां एक वटवृक्ष के नीचे अतिप्राचीन शिव प्रतिमा का मिलना रहा है। तभी से इस स्थान को बटेश्वर के नाम से पहचान मिली।
शौरीपुर
यमुना नदी के किनारे शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर है। शौरीपुर को राजा शूरसेन ने बसाया था। ये भगवान श्रीकृष्ण के पितामह थे। भगवान श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव शौैरीपुर के निवासी थे। यह बटेश्वर के पास है। वसुदेव की बरात शौरीपुर से बटेश्वर और आगरा होते हुए ही मथुरा गई थी। यह जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का कल्याण स्थान है।
श्रृंगी ऋषि का आश्रम
कीठम के पास सींगना गांव में एक टीले पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम है। वर्ष 1978 में पुरातत्व विभाग ने यहां खोदाई कराई थी, जिसमें महाभारत, मौर्य कालीन ईंटें और भूरे रंग के पात्र मिले थे। इससे यह जाहिर होता है कि यह अति प्राचीन स्थल है। यहां मंदिर में भी श्रृंगी ऋषि की प्रतिमा लगी है, जिसमें उनके मस्तिष्क पर सींग दिखाई देता है। यह मंदिर आज भी श्रद्धा का केंद्र है।
दयालबाग
यहां राधास्वामी मत के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी महाराज की पवित्र समाध श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक आस्था का केंद है। 114 वर्ष में बनकर तैयार हुई इस समाध की पच्चीकारी बेजोड़ है। सफेद संगमरमर से बनी यह अनूठी इमारत बेहद आकर्षक है। इसके शीर्ष पर लगा स्वर्ण कलश दूर से चमकता है।