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सपूतों की धरा, देश की आन पर फिदा, जानिये देश सेवा में ताजनगरी का क्या रहा है योगदान

हर युद्ध में आगरा के वीर सपूतों ने दिया बलिदान, देश की आन की खातिर 78 जवान हो चुके शहीद।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 02:09 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 02:09 PM (IST)
सपूतों की धरा, देश की आन पर फिदा, जानिये देश सेवा में ताजनगरी का क्या रहा है योगदान
सपूतों की धरा, देश की आन पर फिदा, जानिये देश सेवा में ताजनगरी का क्या रहा है योगदान

आगरा, विनीत मिश्र। आगरा सिर्फ मोहब्बत की निशानी ताजमहल के लिए ही नहीं जाना जाता। यहां गांव-गांव बहादुरों का डेरा है और जर्रा-जर्रा भारत मां का जयघोष करता है। अपने लहू के कतरे- कतरे से यहां के सैनिकों ने दुश्मन के छक्के छुड़ाए हैं। चाहे पाकिस्तान के साथ युद्ध हो या फिर चीन के साथ। देश की आन की खातिर वीर सपूतों ने सिर कटाकर बलिदान देने में एक क्षण नहीं सोचा। अब तक हुए युद्धों में ताजनगरी के 78 सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।

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ताजनगरी की माटी ही ऐसी है कि यहां देश प्रेम की अलख हमेशा जलती रही है। देश की सेवा कर रिटायर हुए करीब 36 हजार पूर्व सैनिक आगरा जिले से हैं, तो सेना में सेवा दे रहे वीर सपूतों की संख्या भी 15 हजार के करीब है। 1962 में जब चीन से युद्ध हुआ, तो आगरा के आठ रणबांकुरे शहीद हो गए। इसके बाद 1965 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ तब भी ताजनगरी के सपूतों ने अपने सीने आगे कर दिए। तब 9 ने बलिदान दिया। 1971 में पाक से हुए युद्ध में 13 सैनिक शहीद हो गए। शहादत के बाद भी आगरा के युवाओं में सेना में भर्ती होने का जोश कम न हुआ।

किस युद्ध कितने हुए आगरा के लाल शहीद

युद्ध                शहीद सैनिक

1957                   1

1962 चीन के खिलाफ   8

1965 पाक के खिलाफ   9

1971 पाक के खिलाफ   13

1989  ऑपरेशन ब्लू स्टार  1

1999   कारगिल युद्ध      8

ऑपरेशन पवन           4

ऑपरेशन रक्षक          27

ऑपरेशन पराक्रम        4

ऑपरेशन रीनो            1

ऑपरेशन फेलकॉन       1

ऑपरेशन बीसी            1

जाओ बेटों, दुश्मन से पिता का बदला ले लो

ये उस बहादुर महिला की कहानी है, जिसके पति दुश्मनों से लोहा लेते शहीद हो गए। मां का सिंदूर उजड़ा, लेकिन पति की शहादत का बदला लेने का हौसला हर पल बढ़ता रहा। दस साल तक दो बेटों को पाला और आंखों में सिर्फ पति की शहादत का बदला लेने का ही सपना रहा। 

बाह क्षेत्र के जोजलीपुर गांव के बचन सिंह सेना में भर्ती हुए। वह सेना में थे, तभी बेटे शेर सिंह को भी सेना में भर्ती कराया। बचन सिंह रिटायर होकर घर आ गए, लेकिन शेर सिंह नौकरी करते रहे। जम्मू सेक्टर के रामवन में ड्यूटी के दौरान 2006 में शेर सिंह शहीद हो गए। पति की मौत ने सूरजमुखी को तोड़ दिया। लेकिन दो बेटों दिवाकर (10) और दीपक (7) की परवरिश ने नई उम्मीद जताई। सूरजमुखी की आंखें बच्चों की परवरिश करते केवल एक ही सपना देखतीं। बच्चे बड़े होंगे तो सेना में जाएंगे और अपने पिता की शहादत का बदला लेंगे। मां का सपना साकार करने को दिवाकर 2016 में सेना में भर्ती हो गए। दीपक ने भी फिजिकल और अन्य टेस्ट पास कर लिए हैं। किसी भी दिन उसका भी बुलावा सेना से आ जाएगा। सूरजमुखी कहती हैं कि बेटों को यही सिखाया कि वह दुश्मन से अपने पिता की शहादत का बदला लें। तभी मेरे कलेजे को ठंडक मिलेगी।

इस पिता के चारों बेटे देश की सेवा में

बाह क्षेत्र का छोटा सा गांव है खिच्चरपुर। इस गांव में एक परिवार में पांच पुरुष हैं और पांचों सेना में गए। पिता राधेश्याम सिंह भदौरिया सेना में भर्ती हुए और हवलदार के पद से 1984 में रिटायर हुए। सेना में नौकरी के दौरान ही उन्होंने ठान लिया कि अपने बेटों को भी देश की सेवा में लगाएंगे। फिर क्या था चार बेटे सतेंद्र सिंह, सुखवीर, इंद्रेश और कुलदीप को भी सेना में भर्ती कराया। सतेंद्र हलवदार भी पद से रिटायर हो गए। सुखवीर और इंद्रेश हवलदार के पद पर नौकरी कर रहे हैं, तो कुलदीप नायक के पद पर हैं। राधेश्याम कहते हैं कि मेरा पूरा परिवार मां भारती की रक्षा कर रहा है, इससे बेहतर खुशी मेरे लिए कोई नहीं हो सकती।

आगरा को जोश जवां है

देश में जब भी युद्ध हुए, आगरा के वीर सपूतों ने दुश्मन से मुकाबला करने को अपने सीने आगे कर दिए। आगरा में पूर्व व वर्तमान सैनिकों की संख्या करीब पचास हजार है। ये इस बात की गवाह है कि यहां सेना में भर्ती होने का जोश जवां हैं।

- विजय तोमर, लेफ्टिनेंट कर्नल (से) संस्थापक समोत्कर्ष संस्था


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