दस वर्ष से अफसरों ने साध रखी थी चुप्पी
आगरा: परिवहन निगम की बसों में फर्जी टिकट का खेल 10 वर्ष से चल रहा था। लेकिन अफसरों ने कार्रवाई के बजाए चुप्पी साध रखी थी।
आगरा: परिवहन निगम की बसों में फर्जी टिकट का खेल 10 वर्ष से चल रहा था। लेकिन अफसरों ने कार्रवाई के बजाय चुप्पी साध रखी थी। घपलेबाजों का रसूख और कमाई में कमीशन के फेर में वर्ष-दर-वर्ष गुजरते रहे और कार्रवाई नहीं की गई।
मथुरा और अलीगढ़ में बैठे फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह के सरगना पूरे खेल में बसों के चालक और परिचालकों को सेट करने से लेकर अफसरों तक पहुंच रखते थे। आगरा-अलीगढ़-मथुरा रूट पर करीब 50 बसें फर्जीवाड़े में शामिल थीं। बीते दिनों एसटीएफ द्वारा पकड़े गिरोह के सदस्यों ने कुबूल किया कि वह दस वर्ष से ये खेल कर रहे हैं। तत्कालीन आरएम नीरज सक्सेना से भी गिरोह के सदस्यों ने मारपीट की। तब कई का तबादला किया गया। हालांकि बाद में उच्चाधिकारियों से जुगाड़ लगाकर आरोपित मथुरा, हाथरस और अलीगढ़ रीजन में ही पहुंच गए।
निलंबित किए गए आगरा के क्षेत्रीय प्रबंधक पार्थ सारथी मिश्रा करीब डेढ़ वर्ष से यहां तैनात हैं। उन्होंने भी कभी कार्रवाई नहीं की। जबकि सभी को इसकी जानकारी थी। शासन की कार्रवाई के बाद अब अन्य कर्मचारियों में खलबली है। बॉक्स
चेकिंग का रूट ही बदल देते थे टीएस
रोडवेज बसों में फर्जीवाड़ा पकड़ने के लिए मुख्यालय पर चेकिंग दस्ता बनाया जाता है। एक दस्ता मुख्यालय का होता है तो एक आरएम का। एक दस्ते पर यातायात निरीक्षक अशोक सागर तैनात रहते थे, तो दूसरे में आरसी यादव की तैनाती थी। आगरा-अलीगढ़-मथुरा रूट काफी संदिग्ध था। इनकी ड्यूटी इस रूट पर लगाई जाती थी, लेकिन ये यहां जाते ही नहीं थे। दूसरे रूटों पर चेकिंग करते थे। 50 से अधिक बसें दौड़ती रहीं और इतने वर्षो में यातायात निरीक्षकों ने एक बार भी चेकिंग नहीं की।
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संविदा परिचालक ने ढहा दिया घोटाले का किला
निगम में हुए करीब 100 करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश एक बर्खास्त संविदा परिचालक की शिकायत पर हुआ। पूर्व में हाथरस क्षेत्र में तैनात रहे संविदा परिचालक पंकज लवानियां ने मामले की शिकायत एमडी पी गुरुप्रसाद से की थी। पी गुरुप्रसाद ने इसकी जांच एसटीएफ को सौंपी। 21 अगस्त को फर्जीवाड़ा पकड़ने के बाद एसटीएफ को पंकज ने फर्जीवाड़े से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज भी उपलब्ध कराए। इसके अलावा पंकज की ही अन्य शिकायतों पर एमडी ने मुख्यालय के पांच सदस्यीय अफसरों की टीम बनाकर जांच शुरू की। कई बार पंकज के बयान लखनऊ में दर्ज हुए। उन्होंने ही अफसरों को घपले के सुबूत दिखाए। उन्होंने ही बताया था कि ईटीएम से रूट की किराया सूची निकलती है, उसे ही टिकट के रूप में यात्रियों को दिया जा रहा है। नियमत: किराया सूची को एक बार ही ईटीएम से निकालना चाहिए, लेकिन यात्रियों को टिकट के रूप में देने के कारण परिचालकों ने 70 बार तक सूची निकाली। पंकज का आरोप है कि घपलेबाजों के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण ही पूर्व में उनकी संविदा समाप्त कर दी गई थी।
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एसटीएफ की रिपोर्ट में फंसेंगे कई अन्य
रोडवेज बसों में टिकट फर्जीवाड़े की जांच एसटीएफ अभी भी कर रही है। एसटीएफ ने फर्जीवाड़ा पकड़ने के बाद फौरी तौर पर एक रिपोर्ट बनाकर शासन को सौंपी थी। अभी विस्तृत जांच चल रही है। सूत्रों का कहना है कि एसटीएफ की जांच में उस व्यक्ति की भी भूमिका सामने आई है, जो डिपो से बसों को रवाना करता था। पूर्व में फाउंड्री नगर डिपो में भी ये खेल होता था। इसकी तह तक भी एसटीएफ पहुंची है। अन्य अधिकारियों की संलिप्तता भी मिली है। एसटीएफ की जांच पूरी होने पर इन पर भी कार्रवाई हो सकती है।