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Holi 2020: ब्रज के घर-घर में बनती हैं होली की ढाल, इसका भी है एक अलग महत्‍व

गोबर से बनाई जाने वाली इस ढाल को लेकर हर जगह अलग अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोग इसे होलिका में जलाते हैं तो कुछ साल भर रखते हैं।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 09 Mar 2020 06:35 PM (IST)Updated: Tue, 10 Mar 2020 10:01 AM (IST)
Holi 2020: ब्रज के घर-घर में बनती हैं होली की ढाल, इसका भी है एक अलग महत्‍व
Holi 2020: ब्रज के घर-घर में बनती हैं होली की ढाल, इसका भी है एक अलग महत्‍व

आगरा, जागरण संवाददाता। बरसाने की लठामार के अलावा लोक में एक और ढाल प्रचलित है जो होली से पूर्व घर-घर में बनाई जाती हैं। गोबर से बनाई जाने वाली इस ढाल को लेकर हर जगह अलग अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोग इसे होलिका में जलाते हैं तो कुछ साल भर रखते हैं। जो भी हो यह ढाल है चाहे प्रहलाद की हो या होलिका की। यह ब्रज की लोक संस्कृति का अंग है।

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होलिका दहन के लिए घर-घर में गूलरियां बनती हैं। उनके साथ मटके पर गोबर से बड़ी-बड़ी ढालें थापी जाती हैं। ब्रज बाम अपनी उंगलियों से उनमें तरह तरह की आकृतियां उकेरकर उनको कलात्मक बनाती हैं। सूखने के बाद उन ढालों में रंग भरे जाते हैं। ढाल के साथ तलवार भी बनाई जाती है।

मानपुर, बरसाना गांव में इसकी एक अलग ही परंपरा देखने को मिलती है। यहां घर में जितने क्वारे लड़के होते हैं, उतनी ही ढाल बनाई जाती हैं। यहां की विजय देवी बताती हैं कि जा बच्चा की पहली होरी है, बाकी ढाल नाय जलाई जावै। होरी जलवे के बाद रात मै ग्वारा बा घर मै आमैं। बे बा ढाल कंू बच्चा के ऊपर धरैं और कहमैं छोटौ पूत बड़ौ है जावै। ग्वारै ढौढ़ ऊ गामैं। परिवार वारे बिनकू बताशा और पैसा दैमैं। बाकी सबरी ढालन कू होलिका मै धर आमैं। हमनै तौ जे ही सुनी कि जे प्रहलाद ऐ बचावे कू बनाई जावै।

मथुरा की माता गली निवासी प्रीति ने बताया कि हमारे यहां सात ढाल और तलवार बनती हैं। उनको होलिका में नहीं रखा जाता। सालभर घर में रखते हैं। यह बहुत शुभ मानी जाती हैं। माणिक चौक निवासी 79 वर्षीय उमारानी शर्मा ने बताया कि राजा के लिए ढाल और तलवार बनती हैं। इनको होलिका पूजन के बाद हटा लिया जाता है और पुरुषों की रक्षा के लिए घरों में संभालकर रखा जाता है।

इसके अलावा दो दीवारों में कंकड़ भरकर गोबर से नारियल की आकृति बनाई जाती है। उसको भी पूजा में रखते हैं पर दहन से पहले हटा लेते हैं। बजने वाला नारियल शुभ माना जाता है।

इस ढाल के भाव अनेक

पुष्टिमार्ग के विद्वान बसंत शास्त्री ने बताया कि होलिका राक्षसी थी जिसका वास्तविक नाम धुंधा था। राक्षस ढाल, तलवार रखते हैं, इस भाव से बनाई जाती हैं। दूसरा धुंधा की ढाल उसका वस्त्र था जिसके प्रभाव से वह अग्नि में जलती नहीं थी। हिरण्यकश्यप जब सारे प्रयास कर हार गया तो उसने धुंधा को अपनी परेशानी बताई। तब धुंधा ने कहा कि मैं प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाऊंगी। इससे पूर्व भगवान ने उसका वस्त्र चुराकर नकली वस्त्र रख दिया। होलिका का वस्त्र प्रहलाद के ऊपर रख दिया। इस भाव से भी प्रतीक रूप में ढाल बनाई जाती है। 


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