World Sparrow Day : अब भी संभले तो गायब ही हो जाएंगे 'भगवान के डाकिये'
गौरेया ही नहीं कई और पक्षियों का अस्तित्व हो रहा विलुप्त। खतरे में आईं 1183 प्रजातियां 128 का मिटा नामो निशान।
आगरा, तनु गुप्ता। अलसाई भोर में छत की मुंडेर से आती चहचहाने की आवाजें। गर्मियों की दोपहर में वातावरण की एकाग्रता को चीरतीं कुछ सुगबुगाहटें। ये बातें अब बिसराई जा चुकी हैं। कोयल की कूक और पपीहे की हूक दूर हो चली है। परेशानी का सबब ये है कि शहर ही नहीं, गांव- देहात क्षेत्र में भी स्थिति बहुत हद तक ऐसी ही हो चुकी है। जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप के चलते भगवान के डाकिये कहे जाने वाले पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। विशेषज्ञों को आशंका है कि आने वाले सौ साल में पक्षियों की 1183 प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो सकती हैं। एक सर्वे के अनुसार विश्व में पक्षियों की करीब 9900 ज्ञात प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। सन 1500 से लेकर अब तक पक्षियों की 128 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इंसानी शब्दों का हूबहू उसी उच्चारण से बोलने की महारथ रखने वाला खूबसूरत तोता भी संकट में है। पूर्व मुख्य वन संरक्षक डा. आरपी भारती के अनुसार तोते की विश्व भर में 330 ज्ञात प्रजातियां हैं लेकिन आने वाले सौ साल में इनमें से एक तिहाई प्रजातियों के खत्म हो जाने का खतरा है।
ऐसे हो रहे भगवान के डाकिये विलुप्त
डॉ. आरपी भारती के अनुसार गिद्ध, सारस, गौरेया, नीलकंठ, खटकोड़वा, जंगली चरखी, छोटा, पाख्ता, जंगली कौओ, घरेलू कौआ शहर के साथ ही चंबल क्षेत्र में भी कम देखने को मिलते हैं। राष्ट्रीय पक्षी मोर जहां बीजों में मिले कीटनाशकों की वजह से दम तोड़ रहा है। वहीं पर्यावरण का सफाईकर्मी कहा जाने वाला गिद्ध की प्रजाति, दुधारु पशुओं को दी जाने वाली ऑक्सीटोसिन और डाइक्लोफेनेक दवा के कारण खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है। जानवरों के मरने पर इस दवा से युक्त मांस को खाने के कारण गिद्धों के गुर्दे खराब हो जाते हैं। दवाओं का असर गिद्धों की प्रजनन शक्ति पर भी पड़ता है। गिद्धों की प्रजनन क्रिया बहुत ही धीमी होती है। इस पर दवाओं के असर के कारण उनके अंडे परिपक्व होने से पहले ही टूट जाते हैं। हालांकि 2008 में सरकार ने इन दवाओं को प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन मनुष्यों के लिए 30 एमएल की छोटी शीशी अभी उपलब्ध है। पशुपालक और पशु चिकित्सक इसका प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं जिससे गिद्ध तर रहे हैं। तीतरों का शिकार उसके गोश्त के लिए हो रहा है तो तंत्र- मंत्र के नाम पर उल्लुओं की बलि दीपावली पर दी जाती है।
हम और आप ही हैं बने विलुप्ति का कारण
पक्षियों की बात जब जब उठती है तो लोग सारा ठीकरा मोबाइल टावर्स से निकलने वाली रेडियशन पर ही डाल देते हैं जबकि इन तरंगों के साथ साथ बढते कंक्रीट जंगल, खत्म होती हरियाली, वायु ध्वनि प्रदूषण, फसलों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग, अवैध व्यापार और शिकार भी प्रमुख है। एक अध्ययन में खुलासा हो चुका है कि शहरों में सड़कों और फ्लैटों के किनारे लगे पेड़ पौधों पर घोंसला बनाने वाले जीव गाडिय़ों के धुएं एवं शोर के कारण अशांत रहते हैं और अब शहरों से पलायन करने लगे हैं। शहर से बाहर बस्तियों में आज भी पक्षियों की कई प्रजातियां आसानी से देखने को मिल जाती हैं।
पक्षी प्रेम क्लब बने तो बात बने
पक्षियों के लिए कई वर्षों से काम कर रही संस्था लोकस्वर के अध्यक्ष राजीव गुप्ता हर वर्ष गर्मियों में पक्षियों के लिए घोंसले बांटते हैं। जगह जगह दाना पानी के लिए बर्तन रखवाते हैं। राजीव के अनुसार लोग स्वकेंद्रित हो चुके हैं। उन्हें जगाने की जरूरत है। पक्षियों के घरों यानि पेड़ों को काटकर इंसानों ने अपने आशियाने सजा लिये हैं। रसोईघर चारदीवारी में बंद कर लिए हैं। छप्पर की जगह लेंटर पड़ गए हैं। ऐसे में इंसान का ही फर्ज है कि पक्षियों के जीवन यापन के साधन जुटाए। राजीव शहर के युवाओं को पक्षी प्रेमी क्लब बनाने के लिए प्रेरित भी करते हैं।