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जाति पूछे न धर्म, कसते काठी, लाते कफन, जानिये मथुरा के इस सपूत की अनोखी समाजसेवा

भगवान का तोहफा मान कर पिता की विरासत को संभाल रहे अजय। मंदिर, मस्जिद, स्कूल को दान की जमीन, गुरुद्वारे पर भी करते सेवा।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 04:30 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 04:30 PM (IST)
जाति पूछे न धर्म, कसते काठी, लाते कफन, जानिये मथुरा के इस सपूत की अनोखी समाजसेवा

आगरा, मनोज चौधरी। कभी किसी की जाति नहीं पूछी और न धर्म से मतलब रखा। कानों में खबर पड़ी कि कोई परलोक सिधार गया है। बस, अजय चड्ढा घर से चल देते हैं काठी कसने। इस दुनिया में जिसका कोई नहीं, उसके लिए तो काठी- कफन खुद ही लेकर आते हैं।

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 मथुरा के कृष्णा नगर 137 डी में रहने वाले अजय कुमार चड्ढा। पिता से मिली सीख का अनुसरण करते हुए अनोखी समाज सेवा कर रहे हैं। सेवा की यह सीख उन्हें उनके पिता से मिली है। अजय के अनुसार उनके  पिता राधाकृष्ण चड्ढा बंटवारे के समय पाकिस्तान के रावलङ्क्षपडी से मथुरा आए थे। कृष्णा नगर में आटा चक्की चलाते थे। साथ ही गांव फैंचरी में खेती- क्यारी के लिए जमीन ले ली थी। पूरे क्षेत्र में वे आटा चक्की वालों के नाम से प्रसिद्ध थे।

अजय बताते हैं कि उनके पिता समाज की सेवा में सदैव की तत्पर रहते थे। उनकी सोच थी कि लोग सुख में तो साथ देने पहुंच जाते हैं लेकिन सच्चा इंसान वही है जो दुख में दूसरों के काम आए। इसी सोच का अनुसरण करते हुए जब भी किसी परिचित या आस पड़ोस में कोई मृत्यु होती थी तो वे काठी कसने जाते थे। पिता के साथ अजय भी जाते थे। अजय ने सेवा का यह जज्बा अपने पिता में देखा तो खुद भी इसी राह पर चलने का मन बनाया। 

अजय कहते हैं कि वर्ष 2001 में जब पिता का निधन हुआ, तो पिता के दिखाए पथ पर चलने का मन बनाय लिया। इसके बाद से वह यह कार्य करने लगे। आज लोग उन्हें उनको 'काठी कसने वालेÓ के नाम से जानते हैं। उनके इस कार्य में राधा नगर के पप्पू सरदार और कृष्णा नगर के ही महेंद्र पाल पाली, बबली और इंदरपाल भी उनके साथ जाते हैं। जबकि अजय एक संपन्न परिवार से हैं। गांव में काफी खेती है। बावजूद इसके वे जाति और धर्म से परे दूसरों के दुख में शामिल होते हैं। इसमें वे लोग भी शामिल होते हैं जिनकी मौत पर कफन तक लाने वाला कोई नहीं होता। ऐसे लावारिस लोगों का अंतिम संस्कार भी वे एक परिजन की तरह ही करते हैं। 

जब ट्रेन में पहुंचे

अजय एक वाकया सुनाते हैं। करीब 16 वर्ष पहले वह ट्रेन में हुई एक यात्री की मौत की खबर पर रात को ही पहुंच गए थे। तब आधी रात को अंतिम संस्कार किया था।

समाज सेवा में भी पीछे नहीं

अजय चड्ढा ने अपनी पैतृक संपत्ति में पंद्रह विस्बा जमीन हाल ही में सरकारी इंटर कालेज के लिए दान कर दी। यहां तक कि मंदिर, मस्जिद और बरात घर के निर्माण के लिए भी वे जमीन दान दे चुके हैं। कृष्णा नगर के गुरुद्वारे पर जाकर भी सेवा करते हैं तो सनातन धर्म मंदिर पर भी सेवा कार्य करते हैं।

सेवा ही सबसे बड़ा धर्म

अजय का मानना है कि सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। यदि दूसरों के आंसू पोंछने या उनका दुख दूर करने के काम आ जाया जाए तो जीवन सफल समझना चाहिए।  


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