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रसोई का धुआं, मांग का सिंदूर दे रहा महिलाओं को कैंसर, जानिए कैसे करें बचाव

महिलाओं के अच्छे स्वास्थ्य को रसोई में एग्जॉस्ट फैन की अनिवार्यता पर जोर। सस्ते सिंदूर में क्रोमियम की अधिकता से पैदा हो रहा खतरा।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Thu, 29 Nov 2018 01:07 PM (IST)Updated: Thu, 29 Nov 2018 01:30 PM (IST)
रसोई का धुआं, मांग का सिंदूर दे रहा महिलाओं को कैंसर, जानिए कैसे करें बचाव

आगरा, [गौरव भारद्वाज]। घर की रसोई में छोंका (तड़का) लगाते समय या पराठे बनाते समय उठने वाला धुआं कैंसर का भी कारण बन सकता है। इतना ही नहीं मांग में भरे जाने वाले सिंदूर से भी कैंसर हो रहा है। सुनने में यह जरूर अटपटा लगे लेकिन रिसर्च में यह बात सामने आई है। जरूरत यह है कि कुछ सावधानी बरती जाए। 

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सेंट जोंस कॉलेज द्वारा होटल क्लार्क शिराज में रीसेन्ट एडवान्स इन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन ग्वालियर के बायो मेडिकल रिसर्च सेंटर ग्वालियर के निदेशक डॉ. संत कुमार भटनागर ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि तीन हजार से ज्यादा परिवार पर किए शोध में रसोई के धुएं से कैंसर होने की पुष्टि हुई है। उन्होंने बताया कि गैस जलने से रसोई का तापक्रम 35 से 45 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। खड़े होकर खाना बनाने से महिलाएं खाने बनाते समय बढऩे वाले तापमान व आद्र्रता के सीधे सम्पर्क में (गैस नजदीक होने से) आती हैं। रसोई में रखा गीला कचरा व प्रेशर कुकर से निकलने वाली भाप बढ़े तापमान में कार्सिनोजनिक कारक पैदा कर देते हैं। जब हम छोंका लगाने के लिए तेल गर्म करते हैं तो उसका तापमान 150 डिग्री सेल्सियस तक होता है। जब इसे दाल या दूसरी सब्जी में मिलाया जाता है तो अधिक तापमान पर तेल की भाप पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन पैदा करते हैं। यह शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। लगातार रसोई में उठने वाले ऐसे धुएं के कारण महिलाओं में चिड़चिड़ापन, जुकाम, कफ आदि की शिकायतें आती हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए यह ज्यादा खतरनाक है। आगे चलकर यह समस्या फेफड़ों के कैंसर में बदल जाती है।

मॉडर्न रसोई से बढ़ रही दिक्कत

डॉ. भटनागर ने बताया कि पुराने जमाने में घरों की रसोई की दीवारों को गोबर से लीपा जाता था, ताकि वह धुएं और आद्र्रता को सोख ले, लेकिन आज की मॉडर्न रसोई कैंसर के कारक को बढ़ा रही है। रसोई में लगी चमचमाती टाइल्स, माइक्रोवेव ओवन और धुआं निकलने की जगह न होने से भी महिलाओं का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। उन्होंने कहा कि चमकदार टाइल्स के स्थान पर रसोई में खुरदुरे या फिर प्राकृतिक मैटेरियल का प्रयोग करें।

एग्जॉस्ट फैन का बने नियम

डॉ. भटनागर ने बताया कि महिलाओं को रसोई के हानिकारक धुएं से बचाने के लिए एग्जॉस्ट फैन की अनिवार्यता का नियम लागू होना चाहिए। फेफड़े के कैंसर से पीडि़त महिलाओं में से अधिकांश की रसोई में एग्जॉस्ट फैन नहीं था।

एक चुटकी सिंदूर दे रहा कैंसर

डॉ. भटनागर ने बताया कि मांग में भरे जाने वाले सस्ते सिंदूर में बड़ी मात्रा में क्रोमियम होता है। जब सिंदूर को लगाया जाता है तो हेयर पॉलीकल के छोटे-छोटे छिद्र के माध्यम से क्रोमियम खून में चला जाता है। 50-55 साल की उम्र के बाद जब रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है, तब क्रोमियम अपना असर दिखाने लगता है। वहीं, आइब्रो पर लगाए जाने वाला सस्ता आई लाइनर भी कैंसर का कारण बनता है। उन्होंने बताया कि सस्ते आई लाइनर में ब्लैक कार्बन कंपाउड होते हैं। ऐसे में कॉस्मेटिक का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि वह ब्रांडेड ही हो।

'काजा कार्बन' दूर करेगा पानी का फ्लोराइड

सेमिनार में आए आंध्र प्रदेश के डॉ. काजा सोमशंकर राव ने कार्बन का ऐसा कम्पाउंड खोजा है, जो पानी में फ्लोराइड की समस्या से निजात दिलाएगा। डॉ. राव ने बताया कि मौसमी, नीबू, मूली आदि के छिलके से कोई भी इस कार्बन को घर में बना सकता है। दो वर्ष के शोध से खोजे गए इस कार्बन का नाम काजा कार्बन रखा है। 20 लीटर पानी में पांच ग्राम काजा कार्बन मिलाने से न सिर्फ फ्लोराइड की अधिकता बल्कि अन्य भारी तत्वों को भी यह कार्बन सोख कर पानी को शुद्ध कर देगा।

70 शोधपत्र, 60 पोस्टर हुए प्रस्तुत

कार्यशाला में दो दिन में 70 शोधपत्र व 60 पोस्टर प्रस्तुत किए गए हैं। कार्यशाला में वक्ताओं ने कहा कि भारत में किए गए शोध रिसर्च पेपर तक ही सीमित रह जाते हैं। यदि छोटे शोध संस्थानों को स्थानीय इंडस्ट्री पार्टनरशिप से मदद मिले तो प्रदूषण की समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है। 


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