देह शिवा वर मोहे इहे शुभ करमन ते कबहूं न डरूं..
श्री गुरु गोविद सिंह के 355वें प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों में हुआ गुरवाणी का गायन गुरुद्वारों में हुई भव्य सजावट सजे कीर्तन दरबार संगतों ने टेका मत्था
आगरा, जागरण संवाददाता। सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविद सिंह का 355वां प्रकाश पर्व गुरुद्वारों में पूरी श्रद्धा के साथ मनाया गया। गुरुद्वारों में भव्य सजावट की गई और कीर्तन दरबार में गुरवाणी से शबद का गायन हुआ। शारीरिक दूरी के पालन के साथ संगत ने मत्था टेका।
आगरा में केंद्रीय स्तर पर श्री गुरु सिंह सभा माईथान के तत्वावधान में गुरुद्वारा माईथान में कीर्तन दरबार सजा। श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश के बाद हजूरी रागी भाई बृजेंद्र सिंह ने गुरवाणी का गायन किया। सुखमनी सेवा सभा से वीर महेंद्र पाल सिंह ने चोजी मेरे गोविदा, चोजी मेरे प्यारिया का गायन करते हुए कहा कि गुरु गोविद सिंह का वर्णन हर जगह मिलता है। उसके बाद दूसरे शबद देह शिवा वर मोहे इहे, शुभ करमन ते कबहूं ना डरूं का गायन करते हुए अरदास की। वाहेगुरु मुझे इतना बल दे कि मैं शुभ कर्म करने में कभी पीछे नहीं हटूं। ज्ञानी कुलविदर सिंह ने कथा वाचन किया। कीर्तन दरबार के बाद लंगर भी वरताया गया। प्रधान कंवलदीप सिंह, परमात्मा सिंह, बाबी बेदी, हरदीप सिंह, रक्षपाल सिंह, बंटी ग्रोवर आदि उपस्थित रहे। सुबह से शाम तक गुरुद्वारा नार्थ ईदगाह, गुरुद्वारा शाहगंज सहित विभिन्न गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार सजे। आगरा में रुके थे गुरु गोविद सिह :
गुरु गोविद सिंह आगरा में बहादुर शाह की मदद के लिए 1706 से 1707 के बीच आए थे। उस दौरान वे आगरा में लगभग पौने दो महीने रुके थे। जाजू की गढ़ी धौलपुर में बहादुर शाह और तारा आजम के बीच युद्ध में उन्होंने सिख सेना के साथ बहादुर शाह की मदद की थी। बताया जाता है कि उनके तीर से ही तारा आजम की मौत हुई थी। आगरा में यमुना किनारे पर उन्होंने हाथी को मगरमच्छ से बचाया था, इस स्थान पर ही गुरुद्वारा हाथीघाट है।