Gayatri Parivar: इस जगह की दर और दीवार से देह में उतरती है शांति, आचार्य का पुंज आज भी दिखा रहा रास्ता
Shri Ram Sharma Aacharya पं श्रीराम शर्मा आचार्य की जन्मतिथि पर विशेष। नैतिक और सादगीपूर्ण जीवन की अलख जगाए हुए है श्रीराम शर्मा आचार्य की जन्मस्थली। आचार्य वर्ष 1953 में अपने गुरु सर्वेशरानंद से अखंड अग्नि लेकर आए थे। तब से वह यज्ञशाला में प्रज्ज्वलित हो रही है।
आगरा, योगेश जादौन। तंग गली के अंतिम छोर पर एक मकान। कुछ कच्चे कमरे और बाहर लकड़ी की शहतीरों पर बना दालान। यहीं वह ज्योति जगी, जिसने जिले के अनजान गांव आंवलखेड़ा को दिव्य पुंज में बदल दिया। उसका दिया शांति और बदलाव का सूत्र दुनिया भर में प्रसारित हो गया। श्रीराम शर्मा आचार्य का गायत्री मिशन आज दुनिया भर में सबसे बड़ा आध्यात्मिक परिवार बन चुका है। उनकी जन्मस्थली आज पर्यटन स्थली बन गई है, जो नैतिक और सादगीपूर्ण जीवन की अलख जगाए हुए है।
खंदौली ब्लाक के गांव आंवलखेड़ा के पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य महज 15 वर्ष की उम्र में धूमकेतू की तरह उभरने लगे। अगले 24 साल में मथुरा से हरिद्वार होते हुए उनकी प्रतिभा को पूरे देश ने देखा। गांव में प्रवेश करते ही सड़क किनारे गायत्री शक्तिपीठ है। वर्ष 1982 में इसकी स्थापना की गई थी। तब तक श्रीराम शर्मा की प्रसिद्धि देश भर में फैल चुकी थी। शक्तिपीठ के दरवाजे के पार पुरसुकून फैला है। बायीं तरफ एक पुस्तकालय है। इसमें आचार्य की लिखी 3200 पुस्तक में से 1200 मौजूद हैं। ठीक सामने मां गायत्री का विशाल मंदिर है। इसके बराबर शिव मंदिर का निर्माण हो रहा है। दायीं ओर शक्तिपीठ का प्रशासनिक भवन है।
शक्तिपीठ के सामने देवकुंवरि इंटर कालेज है। आचार्य की मां के नाम पर बने इस कालेज के लिए जमीन पीठ ने ही दी थी। बगल से एक रास्ता उस घर तक जाता है जहां श्रीराम शर्मा ने जन्म लिया। आज यह जन्मभूमि मुहल्ला कहलाता है। अब यहां भव्य स्मारक बना हुआ है। करीब नौ करोड़ रुपये से इसे आधुनिक रूप दिया गया है। जन्मभूमि में बने कमरे आदि स्थान वैसे ही हैं, लेकिन अब क'चे की जगह पक्के हैं। मकान के मुख्य दरवाजे पर एक कीर्ति स्तंभ बनाया गया है। एक विशाल सूर्य मंदिर बन गया है। स्मारक के पीछे की तरफ वही पुराने कमरे हैं। एक कमरे में आचार्य का पलंग आज भी है। वह कमरा भी है जहां आचार्य को पहली बार ज्ञान ज्योति के दर्शन हुए थे। इस कमरे की शांति अंतर्मन पर छा जाती है। बाहर तुलसी का बिरवा आज भी है।
जन्मभूमि में आचार्य जी के पड़ोसी और उनसे उम्र में महज आठ साल छोटे ठा. रोशन सिंह बताते हैं कि आचार्य के कारण ही छोटा सा गांव आज बड़ा पर्यटन केंद्र बन गया है। यहां देश भर से लोग आध्यात्मिक चेतना की तलाश में आते हैं।
धर्म की ज्योति फैला रही गायत्री तपोभूमि
मथुरा में गायत्री तपोभूमि धर्म की ज्योति फैला रही है। तपोभूमि की स्थापना 68 साल पहले आचार्य श्रीराम शर्मा ने की थी। तब यहां देश भर के 24 सौ तीर्थस्थलों की रज और जल, साधकों द्वारा भेजे गए 24 सौ करोड़ हस्तलिखित गायत्री मंत्र का पूजन हुआ था।
शहर के जयसिंहपुरा स्थित गायत्री तपोभूमि की नींव खुद गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने रखी। गायत्री तपोभूमि के असिस्टेंट मैनेजिंग ट्रस्टी ईश्वर शरण पांडेय बताते हैं कि आचार्य वर्ष 1940 में मथुरा आ गए। यहां पर घीया मंडी में उस मकान में रहने लगे। दिसंबर 1952 में जयसिंहपुरा में इस आश्रम की नींव रखी। गायत्री माता की देश की पहली एकमुखी मूर्ति तपोभूमि में ही स्थापित हुई।
यज्ञशाला में अखंड अग्नि
आचार्य श्री राम शर्मा वर्ष 1953 में अपने गुरु सर्वेशरानंद से अखंड अग्नि लेकर आए थे। तब से वह अग्नि मंदिर की यज्ञशाला में प्रज्ज्वलित हो रही है। बताया जाता है कि ये ज्योति करीब 750 वर्ष से अनवरत प्रज्ज्वलित हो रही है। तपोभूमि पर हर माह करीब पांच हजार साधक आते हैं।
(इनपुट-मथुरा कार्यालय)