सामाजिक सुधार को बागवान जैसे प्रहार की फिर से जरूरत
नागरी प्रचारिणी सभा में लेखिका डॉ.अचला नागर ने साझा किए लेखन से जुड़े अनुभव
आगरा, जागरण संवाददाता। समाज में सुधार के लिए बार-बार प्रयास करने होते हैं। वृद्धों और महिलाओं की समाजिक दशा में अब भी बहुत सुधार लाना बाकी है। बागवान जैसे प्रहार की फिर जरूरत है।
यह बातें रविवार को बालीवुड में एक से बढ़कर एक सामाजिक फिल्मों की पटकथा लिखने वाली मशहूर लेखिका डॉ. अचला नागर ने जागरण से बातचीत में कहीं। नागरी प्रचारिणी सभा के मानस भवन में डॉ. अचला नागर ने कहा कि महिलाओं की मौजूदा स्थिति से लेकर धार्मिक उन्माद तक की सामाजिक बुराईयों पर सामाजिक फिल्मों के बार-बार प्रहार की जरूरत है। अब ऐसी फिल्में कम ही बनती हैं। बागवान, निकाह सहित तमाम ऐसी सामाजिक मुद्दों वाली फिल्म हैं, जो आज भी हर घर, गली में कहीं न कहीं जिंदा हैं। फिल्मों के संदेश से समाज में जरूर बदलाव आता है पर इसे समय के साथ और तेज करना होगा।
नारे नहीं पता थे, जो देखा लिख दिया
डॉ. अचला कहती हैं जब वह निकाह, आखिर क्यों जैसी फिल्मों की पटकथा लिख रहीं थी तो उन्हें नारी सशक्तीकरण के लिए लगाए जाने वाले नारे नहीं पता थे। बस समाज में जो देखा वो लिख दिया। आज नारी उत्थान के नाम पर शोर ज्यादा है। इसके लिए जमीनी स्तर पर प्रयास कम ही हो रहे हैं।
दिलीप और कादर को अॅाफर की गई थी बागवान
डॉ. अचला ने बताया कि उन्होंने बागवान कहानी का लेखन 1993 में ही पूरा कर लिया था। तब फिल्म बनाने को लेकर दिलीप कुमार और कादर खान को मोटा भाई के रोल में लेने की पहल हुई थी। बात नहीं बनी। अंत मे अमिताभ ने 2001 में इसके लिए हां कहा और 2003 में लोगों के सामने फिल्म आई।
संस्मरण लिख रही हूं
वर्तमान में वह क्या लिखने में व्यस्त हैं इस सवाल के जवाब पर डॉ. अचला ने बताया कि वह इन दिनों कोई नया उपन्यास नहीं बल्कि संस्मरण लिख रही हैं। वैसे इन दिनों उनका धार्मिक उन्माद पर समाज को सजग करने वाले लेखन पर भी रुचि बढ़ी है। मंगला से शयन तक में उन्होंने इस पर काम भी किया है।