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भगत सिंह कोश्यारी: जानिए शिक्षक से राज्‍यपाल बनने तक का सफर Agra News

शिशु मंदिर में थे प्रधानाचार्य नए भवन निर्माण में भी योगदान। सन 65 से 70 तक रहे कासगंज में रोज जाते थे शाखा में।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 05:20 PM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 08:39 AM (IST)
भगत सिंह कोश्यारी: जानिए शिक्षक से राज्‍यपाल बनने तक का सफर Agra News
भगत सिंह कोश्यारी: जानिए शिक्षक से राज्‍यपाल बनने तक का सफर Agra News

आगरा, जेएनएन। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के राज्‍यपाल भगत सिंह कोश्यारी का कासगंज से पुराना नाता रहा है। कासगंज के कई कारोबारी एवं अन्य लोग हैं, जिनके जेहन में आज भी उनका गुरुजी वाला सख्त रूप याद है तो कई परिवारों को उनका सरल स्वभाव और सादा खान-पान। संघ के कार्यकर्ताओं को आज भी याद है कैसे सहज भाव से सायं शाखा में वह कभी सोरों गेट (बोडिंग हाउस मैदान) या नगर पालिका में वह किशोरों के साथ घुल-मिल जाते थे।
राज्‍यपाल भगत सिंह कोश्यारी सन 1965 से 70 तक कासगंज में सरस्वती शिशु मंदिर में प्रधानाचार्य के रूप में तैनात रहे। उस वक्त स्कूल का नाम बाल मंदिर हुआ करता था। लक्ष्मी गंज में एक किराए के भवन में स्कूल चलता था। स्कूल में ही एक कमरे में वह रहते थे तो कभी- कभी सोरों गेट पर ही संघ कार्यालय पर भी रात गुजारा करते थे। सादा जीवन जीने में विश्वास रखने वाले भगत सिंह कोश्यारी का सरल स्वभाव उस दौर के लोगों को याद है। आज उनके साथ रहे शिक्षक साथियों में से कई इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी पत्नी एवं बच्‍चे (जिन्हें उस वक्त की याद है) उनके स्वभाव को याद करना नहीं भूलते।

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राव महेंद्रपाल सिंह शिशु मंदिर की इमारत के लिए किया सहयोग
बिलराम गेट पर स्थित राव महेंद्र पाल सिंह सरस्वती शिशु मंदिर की विशाल इमारत की नींव में भी उनके सहयोग को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। उस वक्त व्यवस्थापक शांता कुमार जी थे तो प्रधानाचार्य के पद पर भगत सिंह कोश्यारी। यह जमीन दान में मिली थी तो अब इस पर स्कूल के लिए भवन का निर्माण कारना था। व्यवस्थापक शांता कुमार के साथ साइकिल पर पीछे बैठकर वह शहर में लोगों से मिलने जाते थे। उनके यहां रहने के दौरान ही इस स्कूल का निर्माण भी शुरू हो गया।

नाम सुनते ही आंखों में आ जाती है चमक
नई पीढ़ी भले ही उनके संबंध में ज्यादा नहीं जानती हो, लेकिन पुरानी पीढ़ी से जुड़े हुए कई लोग हैं, जिन्होंने उनके राज्यपाल बनने की खबर सुनी तो चेहरे पर खुशी चमक आई। किसी की जुबां पर था यह हमारे गुरुजी हैं, इन्होंने हमें पढ़ाया है तो कोई उनके घर आने की बातों में मशगूल हो जाता है। कासगंज में उन्होंने प्रधानाचार्य का अपना कार्यकाल भी पूर्णकालिक के रूप में बिताया। सुबह बच्चों को पढ़ाना, फिर संघ के कार्यकर्ताओं से संपर्क। स्कूल के भवन के लिए सहयोग जुटाना। शाम को शाखा पर स्यवंसेवकों के साथ जाना। उनके साथी शिक्षक रहे राजबहादुर सिंह की पत्नी कमलेश बताती हैं बहुत ही सरल स्वभाव था उनका।

उनके आते ही क्लास में छा जाती थी चुप्पी
कारोबारी राजीव अग्रवाल बताते हैं उस वक्त कक्षा दो या तीन के छात्र थे। हमें आज भी याद है पूरी क्लास उनसे काफी डरती थी। बच्चों ने उनके नाम रख लिए थे। बच्चे अगर बात भी कर रहे होते तो जैसे ही वो आते तो सन्नाटा छा जाता। वह काफी सहज थे तो अनुशासनप्रिय भी। उनकी याददाश्त भी काफी तेज है। कई सालों बाद उनका कासगंज आना हुआ तो मुझे देखते ही उन्होंने नाम लेकर पुकारा।

याददाश्त इतनी तेज, सालों बाद भी पहचान गए
भाजपा नेता एवं व्यापारी श्याम अग्रवाल कहते हैं जब वह प्रधानाचार्य थे तो हमारी मुलाकात सायं शाखा में हुई। वह रोज वहां आते थे। सहज भाव से हमेंं सिखाते। इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान एक बार अयोध्या में मुलाकात हुई तो इतने साल बाद भी नाम लेकर हमें बुलाया। जब हम हल्द्वानी में शिफ्ट हुए तो भी उनसे मिलना जुलना रहा। जब भी उनसे कासगंज की बातें करें तो वह यहां के स्वयंसेवकों को खासा याद करते हैं।

खिचड़ी और दलिया था काफी पसंद
प्रदीप अग्रवाल एडवोकेट बताते हैं कि पिताजी (शांता कुमार अग्रवाल) व्यवस्थापक थे तो उनका घर पर आना जाना होता था। पिताजी के देहांत के बाद भी सन 2013 में वह घर पर आए थे। वह खुद बताते थे किस तरह पिताजी की साइकिल पर पीछे बैठ कर स्कूल के लिए सहयोग मांगने गलियों में घूमते थे। प्रदीप बताते हैं कि उन्हें खिचड़ी एवं दलिया ही खाने में सबसे ज्यादा पसंद था।  


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