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Sawan 2020: कोरोना काल में गोवर्धन पर्वत की अनूठी परिक्रमा, भक्‍त भी अनूठे, सावन में असंभव को संभव करने में जुटे

Sawan 2020 यह मौनी संत 1161 निशान के साथ दंडवती परिक्रमा कर रहे हैं। यानी बार एक ही जगह 1161 बार दंडवत कर अगला कदम बढ़ाते हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 15 Jul 2020 12:38 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jul 2020 12:38 PM (IST)
Sawan 2020: कोरोना काल में गोवर्धन पर्वत की अनूठी परिक्रमा, भक्‍त भी अनूठे, सावन में असंभव को संभव करने में जुटे
Sawan 2020: कोरोना काल में गोवर्धन पर्वत की अनूठी परिक्रमा, भक्‍त भी अनूठे, सावन में असंभव को संभव करने में जुटे

आगरा, रसिक शर्मा। पर्वतराज की भक्ति अनूठी तो भक्त निराले हैं। कोरोना संक्रमण काल भी इनके भक्तों के इरादे को डिगाने में नाकाम रहा। न कोरोना का डर, न संक्रमण का भय, बोल गिरिराज धरण की जय के साथ ही तमाम भक्तों ने अपना जीवन मानो प्रभु भक्ति को समर्पित कर दंडवती परिक्रमा शुरू कर दी है। इनमें तमाम वृद्ध और युवा है जिन्होंने 1161 और 108 निशान लेकर दंडवती परिक्रमा कर रहे हैं। 

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गोवर्धन पर्वत की शिलाओं में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के संरक्षित चिन्ह रहस्यमयी दिव्यता की गवाही दे रहे हैं। प्रभु की 21 किमी की परिक्रमा कर मनोकामना पूरी होने के लिए करोड़ों लोग आज भी झोली फैला रहे हैं। पैदल परिक्रमा, दण्डवती परिक्रमा, दुग्धधार और धूप परिक्रमा लगाकर प्रभु से आशीर्वाद मांग रहे हैं। गिरिराज के धाम में रात-दिन लोग परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें दंडवती परिक्रमा सबसे कठिन परिक्रमा है। 21 किमी लंबी परिक्रमा लेटकर लगाई जाती है। एक बार लेटकर श्रद्धालु ब्रजरज से सिर और आंखों को स्पर्श कर प्रभु का नमन करते हैं। बतौर निशान हाथों में पत्थर का टुकड़ा, नारियल रखकर परिक्रमा करते हैं। लंबा हाथकर लेटने के बाद निशान को वहीं छोड़ देते हैं। फिर निशान के बाद अगली दंडवती करते हैं। परंपरा के तहत दंडवती के निशान से आगे वह पैदल नहीं जाते हैं। 21 किमी क्षेत्रफल में फैले गोवर्धन पर्वत की दंडवती परिक्रमा में कितने दंडवत करते हैं? इस प्रश्न का जबाब पाने को नासिक के ईश्वर भाई पटेल ने प्रत्येक दंडवत पर एक रूपए का सिक्का रखा। पूरी परिक्रमा के बाद यह धनराशि 17,300 रुपये हुई। यानी 21 किमी की दंडवती परिक्रमा में 17, 300 बार दंडवत होता है। हालांकि व्यक्ति की लंबाई के अनुपात में इस संख्या में थोड़ा बहुत अंतर आ सकता है। यह दंडवती परिक्रमा सामान्यतः सात से आठ दिन में पूरी हो पाती है। कुछ भक्त तो ऐसे हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन गिरिराजजी पर न्यौछावर कर रखा है। बड़ी परिक्रमा शुरू करते ही चंद कदमों की दूरी पर एक संत मौन रहकर 1161 निशान लेकर दंडवती परिक्रमा कर रहे हैं। यानी एक ही जगह 1161 दंडवत कर अगला कदम बढ़ाते हैं। उनकी एक दंडवती करीब 2 करोड़ 85 हजार 3 सौ दंडवत के बाद पूर्ण होगी। उन्होंने बात करने से तो इंकार कर दिया, कितने निशान की दंडवती है पूछने पर जमीन पर 1161 लिख दिया। स्वास्थ्य पर्यवेक्षक पर तैनात रहे रूप किशोर शर्मा (71) पूर्व में 21 और 42 निशान की दंडवती पूर्ण कर चुके हैं, फिलहाल वह 131 निशान की दंडवती लगा रहे हैं। वह एक दिन में करीब चार कदम ही चल पाते हैं। राजाराम दास 108 निशान की दंडवती लगा रहे हैं। भगौसा के रहने वाले नंदराम (72) भी 108 निशान के साथ अपना धार्मिक सफर पूरा कर रहे हैं।

यूं भी होती है परिक्रमा

पैदल परिक्रमा-

भक्त नंगे पैर परिक्रमा करते हैं। अधिकतर भक्त इस तरीके से ही परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा सामान्यतः 7 से 8 घंटे में पूरी हो जाती है।

दुग्धाधार परिक्रमा-

भक्त हाथों में मिट्टी के बर्तन में दूध भरकर चलते हैं। मिट्टी के बर्तन में नीचे की तरफ छेद होता है, जिसमें कुशा (एक तरह की घास) लगी होती है। छेद से दूध की धार निकलती रहती है। दूध की धार सहित सात कोस परिक्रमा लगाई जाती है। इस परिक्रमा में 40 से 45 लीटर दूध गिरिराज जी को चढ़ाया जा रहा है।

धूप परिक्रमा-

मिट्टी के बर्तन में सुलगते उपले पर हवन में प्रयुक्त होने वाली सुगंधित धूप डाल कर परिक्रमा करते हैं। इससे यहां का वातावरण शुद्ध हो रहा है। कुछ लोग तो अगरबत्ती सुलगाकर परिक्रमा पूरी कर रहे हैं। 


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