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Sawan 2020: इतिहास में पहली बार रह जाएगी अधूरी बिहारी जी के भक्‍तों की ये आस

sawan 2020 सावन में हिंडोला दर्शन भी भक्तों को न होंगे सुलभ और न मिलेगा रासलीला का दर्शन।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 04:31 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 04:31 PM (IST)
Sawan 2020: इतिहास में पहली बार रह जाएगी अधूरी बिहारी जी के भक्‍तों की ये आस
Sawan 2020: इतिहास में पहली बार रह जाएगी अधूरी बिहारी जी के भक्‍तों की ये आस

आगरा, जेएनएन। ब्रज में एक कहावत किवदंती के रूप में प्रचलित है सावन हरे न भादौं सूने....। जब किसी ने इस कहावत की शुरुआत की होगी तो सोचा न होगा कि इतिहास में कोई सावन का महीना ऐसा भी आएगा जबकि वृंदावन में वीरानी छाई होगी और न ही भादौं का महीना। जबकि सावन-भादौं के महीने में सालभर से सबसे अधिक पर्व-उत्सव वृंदावन में मनाए जाते हैं। जो हरियाली तीज से ठा. बांकेबिहारी जी के स्वर्ण-रजत हिंडोला उत्सव से शुरू होकर रक्षाबंधन, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीराधाष्टमी जैसे बड़े उत्सव ब्रज में मनाए जाते हैं। इसमें शामिल होने को देश दुनिया के लाखों भक्त वृंदावन में डेरा डालते हैं।

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दुनियाभर में सावन का महीना भगवान भोलेनाथ की साधना का माना जाता हो, लेकिन यहां भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाओं से जोड़कर इस महीने को देखा जाता है। लेकिन कोरोनाकाल में सावन का महीना भी पूरी तरह सूना नजर आने की उम्मीद है। कोरोनाकाल ने न केवल लोगों की जिंदगी बल्कि परंपराओं को भी बदलकर रख दिया। ब्रज में पिछले चार महीने से ठा. बांकेबिहारी के दर्शन भक्तों को नहीं हो रहे। तो भक्त अब विचलित हो रहे हैं। लेकिन ब्रज के सबसे पवित्र माने जाने वाले सावन के महीने में भी श्रद्धालुओं के हाथ निराशा ही लगेगी। सावन के महीने में हरियाली अमावस से लेकर भादौं की राधाष्टमी तक मंदिर, मठ और आश्रमों में हर दिन उत्सव मनाए जाते हैं। आश्रमों में भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाओं का मंचन देखने को देश दुनिया से लाखों श्रद्धालु वृंदावन में डेरा डालते हैं।

लेकिन कोरोनाकाल का ये सावन इतिहास में दर्ज होगा। जबकि भक्तों को न तो आराध्य बांकेबिहारी सहित सभी मंदिरों में हिंडोला दर्शन सुलभ नहीं होंगे। भक्तों को आराध्य के हिंडोले में छोटे देने का अवसर भी नहीं मिलेगा। 23 जुलाई को पड़ रही हरियाली तीज के दिन ठा. बांकेबिहारी मंदिर में स्वर्ण-रजत हिंडोले में बैठ भगवान अपने भक्तों को जब दर्शन देते हैं, तो इस विलक्षण पल का साक्षी बनने को सात समंदर पार से भी श्रद्धालु वृंदावन में डेरा डाल लेते हैं। लेकिन कोरोना ने परंपराओं पर ऐसा प्रहार किया कि पूरे सावन और भादौं के महीने में भगवान और भक्तों में ऐसी दूरी बना दी कि इतिहास में पहली बार भक्त अपने आराध्य को हिंडोले में झूलते नहीं देख सकेंगे।

रासलीला मंडलियों में छाई निराशा

सावन के महीने में न केवल ब्रज बल्कि दुनियाभर के अनेक शहरों में ब्रज की रासलीला मंडलियां भगवान श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं का मंचन करते हैं। लेकिन इस बार कोरोनाकाल में देश के दूसरे शहर तो दूर वृंदावन में भी रासलीला का मंचन संभव नहीं हो सकेगा। 


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