जज्बे की कुदाल से पत्थर पर खींची स्वालंबन की रेखा, अब मकानाें में भरती हैं महिलाओं के संग खुशियाें के रंग
तांतपुर में पढाई के साथ 16 वर्ष की आयु में माता-पिता के साथ पत्थर तोड़ती थीं रेखा। शादी के बाद कौशल विकास का प्रशिक्षण लेकर अपने साथ गांव की महिलाओं को दिखा रहीं खुशहाली की राह। महिलाओं की टीम करती है अब वॉल पुट्टी और पेटिंग का काम।
आगरा, अली अब्बास। वह तोड़ती पत्थर, देखा मैने उसे इलाहाबाद के पथ पर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की इस कालजयी रचना के पात्र वही थे, सिर्फ स्थान इलाहाबाद की जगह तांतपुर हो गया था। स्कूल से पढाई के बाद माता-पिता के साथ पत्थर तोड़ने वाली 33 वर्षीय रेखा ने जज्बे की कुदाल से पत्थर पर न सिर्फ अपने लिए स्वालंबन की रेखा खींची, गांव की अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखा रही हैं।
पहाड़ पर पत्थर तोड़ती थी रेखा
जगनेर के तांतपुर की रहने वाली रेखा ने बताया 16 वर्ष की उम्र में स्कूल से छुट्टी के बाद पिता लोहरे राम और मां चंद्रवती के साथ पहाड़ पर पत्थर तोड़ने जाती थीं। जिसके बदले उन्हें और माता-पिता को 60-60 रुपये मजदूरी मिलती थी। जिससे परिवार का खर्चा चलता था। वह इस तस्वीर को बदलना चाहती थीं, इसलिए पढ़ाई जारी रखी, हाई स्कूल और इंटर मीडिएट प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा देने के कुछ महीने बाद ही वर्ष 2009 में उनकी फतेहपुर सीकरी के मंडी मिर्जा खां निवासी राकेश से शादी हो गई।
पति ने दिया साथ
पति और सास-ससुर भी पत्थर तोड़ने का काम करते थे। वह उन्हें अक्सर खाना देने जाती थीं। यहां पर वर्ष 2011 में वह उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के संपर्क में आईं। संस्था के सदस्य गांवों में जाकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जागरूक करते हैं।। सदस्यों को रेखा के स्नातक होने का पता चला, उन्हें गांव की महिलाओं काे शिक्षा और आत्मनिर्भर बनाने को जागरूक करने की जिम्मेदारी सौंपी। रेखा बताती हैं कि शुरूआत में ससुराल वालों ने उनका विरोध किया, लेकिन पति ने उनका साथ दिया।
बंद हो गया पत्थर तोड़ने का काम
उनके ससुराल पहुंचने के कुछ वर्ष बाद ही पत्थर का काम बंद हो गया। इसका नतीजा ये हुआ कि तांतपुर और मंडी मिर्जा खां के सैकड़ों मजदूरों से काम छिन गया। पुरुष मजदूर काम की तलाश में गांव छोड़ दूसरे शहरों में चले गए। मगर, महिला मजदूर गांव में ही रह गईं, वह बच्चों को छोड़ कर नहीं जा सकती थीं। अधिकांश के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी थी, महिलाओं की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी।
सीखा वॉल पुट्टी करना
रेखा बताती हैं वह अपने साथ ही इन महिलाओं की तस्वीर भी बदलना चाहती थीं। संस्था की परामर्श पर उन्होंने वर्ष 2019 में दिल्ली में नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल की काेर काउंसिल पेंट एंड कोट्स स्किल काउंसिल से प्रशिक्षण लिया। यहां भी ससुराल के कई रिश्तेदार उनके दिल्ली जाकर उनके प्रशिक्षण लेने के खिलाफ था। मगर,पति ने कहा कि वह भी प्रशिक्षण लेने उनके साथ जाएंगे। जिसके बाद विरोध नहीं हुआ। करीब सवा महीने प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने वाल पुट्टी और घरों में पेटिंग का काम सीखा।
रेखा ने बताया कि गांव लौटने के बाद मंडी मिर्जा खां में कौशल विकास केंद्र में कार्यकत्री के रूप में काम कर रही हैं। यहां ग्रामीण महिलाओं को घरों में वाल पुट्टी और पेटिंग का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने की राह दिखा रही हैं। वर्ष 2020 से 2022 के दौरान 33-33 महिलाओं के तीन बैच को प्रशिक्षण दे चुकी हैं। कौशल विकास प्रशिक्षण ने उनके जीवन में काफी बदलाव आया, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ ही बच्चों को भी बेहतर शिक्षा दे रही हैं। वहीं, प्रशिक्षण हासिल करने के बाद कई महिलाओं को अब गांवों में बनने वाले मकानों में काम मिलने लगा है।