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    Freedom Fighter: बाईसी की शान हैं देशभक्त श्रीराम सिंह चौहान, पढ़ेंगे तो आपको भी होगा गर्व

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 09 Dec 2020 05:55 PM (IST)

    Freedom Fighter महज 12 वर्ष की उम्र में कांतिकारियों की टोली में हो गए थे शामिल। कई बार जेल भी गए श्रीराम सिंह चौहान मगर नहीं टेके घुटने। आंवलखेड़ा में 1920 में किसान रामचंद्र सिंह चौहान के घर जन्मे श्रीरामकी वीरता के किस्से आज भी लोगों की जुबां पर हैं।

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    महज 12 वर्ष की उम्र में कांतिकारियों की टोली में हो गए थे शामिल।

    आगरा, पंकज चौहान। आजादी आज तुझसे दो बात कर लें, जो मिटे तेरी डगर में उन्हें आज याद कर लें...। इन पंक्तियों को साकार करने वाले बाईसी (चौहानों के 22 गांव) के आजादी के दीवाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्रीराम सिंह चौहान की शौर्य गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

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    आंवलखेड़ा में 1920 में किसान रामचंद्र सिंह चौहान के घर जन्मे श्रीराम सिंह चौहान की वीरता के किस्से आज भी लोगों की जुबां पर हैं। क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि श्रीराम सिंह जब 14 वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उनके ताऊ हकीम ज्ञान सिंह ने उन्हें गोद ले लिया और वे कचहरी घाट, आगरा में आकर रहने लगे। शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही श्रीराम सिंह चौहान साइमन कमीशन का विरोध करने के लिए गठित बाल सेना व देश भक्ति पूर्ण कार्यकलापों में संगठन आर्य कुमार सभा में शामिल हो गए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बनकर ठाकुर जोरावर सिंह की देख-रेख में उन्होंने हथियार चलाना सीखा। इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में हिस्सा लिया। 15 जून 2002 को श्रीराम सिंह चौहान परमात्मा में विलीन हो गए। वह अपने पीछे दो पुत्र हरीश प्रताप सिंह चौहान और प्रताप सिंह चौहान छोड़ गए।

    अनाज से भरी ट्रेन लुटवाई थी

    24 जनवरी 1941 को एक वर्ष की कैद का आदेश देकर फतेहगढ़ जेल में राम सिंह चौहान को भेज दिया गया। इसी बीच उनके ताऊ हकीम ज्ञान सिंह का निधन हो गया। राम सिंह चौहान ने उल्फत सिंह चौहान के नेतृत्व में 14 अगस्त 1942 को बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा बोलकर स्टेशन को जला दिया, और अनाज से भरी टे्रन को जनता द्वारा लुटवा दिया था। बरहन कांड के बाद अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों पर गोलियां चलवाई, जिसमें बाईसी के चार सपूत शहीद हो गए थे।

    सात साल की हुई थी सजा

    1931 में लगान बंदी का आंदोलन में अंगे्रजों की क्रूरता देख श्रीराम सिंह के मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा जाग गई। सन 1932 में आंदोलनकारियों ने एक गोदाम में डकैती डाली। जिसमें एक अंग्रेज मार गिराया। इस घटना के बाद सभी आंदोलनकारियों पर मुकदमा चलाया गया। जिसमें श्रीराम सिंह सिंह को सात वर्ष की सजा हुई। सन 1940 में श्रीराम सिंह महात्मा गांधी सत्याग्रह में शामिल हो गए।