बाल स्वरूप ने दिखाया अग्निपथ पर रास्ता, पढ़ें दस पग में धधकते अंगारे पार करने वाले मोनू पंडा का अनुभव
होलिका दहन की अनूठी परंपरा को साझा किया फालैन के पंडा ने। कहा बेहद महत्वपूर्ण क्षण था एक माह के तप के बाद का।
मथुरा, जेएनएन। होलिका के दहकते अंगारों से गुजरे मोनू पंडा बेहद खुश हैं। उन्हें महसूस ही नहीं हुआ कि कितने कदम वह अंगारों के ऊपर चले। मगर, जितना भी सफर रहा बेहद खास था। प्रह्लाद कुंड में स्नान करते ही बाल स्वरूप अग्नि में प्रवेश करते दिखे। बस उसी छवि का ध्यान रखकर होलिका के बाहर पहुंचा। ध्यान से मन पावन और प्रभु से निकटता का आनंद अनुभव हो रहा है।
जलती होलिका से निकलने के लिए एक माह पूर्व ग्रामीणों ने उन्हें जिम्मेदारी दी तो वह बेहद रोमांचित थे। नौ फरवरी को प्रह्लाद के मंदिर में पूजा अर्चना कर एक माह का तप किया। घर त्यागकर फलाहारी जीवन अपनाने से उन्हें एक अलग अनुभूति हो रही थी। प्रह्लाद महाराज के सन्निकट होने का भाव उन्हें हर पल रोमांचित रखता था। सुबह एवं रात में ध्यान के समय में उन्हें अदृश्य शक्ति का आभास होता। नौ मार्च को होली के दिन अक्सर गर्म लगने वाली अखंड ज्योति की लौ पर हाथ रखने का मन होता रहा। मुहूर्त अगले दिन यानी मंगलवार की सुबह साढ़े चार बजे का था, लिहाजा वे अपने आपको रोके रहे। सुबह हुई तो दीपक की लौ की उस शीतलता को महसूस करने की जिज्ञासा और बढ़ गई। ध्यान के साथ वे उसे महसूस करने का प्रयास कर रहे थे। उनके हाथ को लौ पर काफी समय हो गया तो ग्रामीणों के जयकारों से ध्यान टूटा। उन्होंने होलिका में अग्नि प्रवेश का इशारा किया। मोनू पंडा ने होलिका में रखे अपने दस कदमों के बारे में बताया कि कुंड में स्नान के दौरान जब जल चढ़ाया तो होलिका के पास मुस्कुराते बाल स्वरूप ने इशारा कर होलिका में प्रवेश किया। मैंने उसी छवि का अनुसरण किया। वे कब होलिका में पहुंचे और कब निकले पता ही नहीं चला। बता देंं कि मोनू पंडा विगत एक माह से कठोर तप पर बैठे थे। सुबह और शाम पांच- पांच घंटे तक जाप करते थे। इस दौरान उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया था।