हिंदी दिवस 2020: विश्व में हिंदी की पताका फहरा रहे ताजनगरी के दो संस्थान, शोध और शब्दकोष से अनूठी बनी पहचान
केएमआई में अप्रवासी साहित्यकारों पर हो रही शोध। केंहिंसं प्रकाशित कर रहा हिंदी प्रेमियों के लिए शब्दकोश।
आगरा, जागरण संवाददाता। हिंदी की पताका को देश-विदेश में फहराने में आगरा के दो संस्थान कई सालों से सहयोग कर रहे हैं। एक संस्थान ने हिंदी प्रेमियों के लिए शब्द-कोश प्रकाशित करने की जिम्मेदारी उठा रखी है तो दूसरे ने अप्रवासी साहित्यकारों की हिंदी सेवा को शोध के रूप में सबके सामने लाने का बीड़ा उठाया है।
केएमआई में चल रही हैं अप्रवासी साहित्यकारों पर शोध
डा. भीमराव आंबेडकर विवि में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ(केएमआई) हिंदी भाषा और भाषाविज्ञान के उच्चतर अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में उत्तर भारत के सर्वप्रथम संस्थान के रूप में सन 1953 से कार्य कर रहा है।यहां हिंदी के कई पाठ्यक्रम संचालित हैं। संस्थान में पिछले सालों में लगभग 20 से ज्यादा अप्रवासी साहित्यकारों पर शोध और लघु शोध कार्य कराए हैं। वर्तमान में भी पांच अप्रवासी साहित्यकारों पर शोध चल रहे हैं। संस्थान के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर का कहना है कि भारत से दूर विदेशों में रहने वाले हिंदी की जो सेवा अपने साहित्य से कर रहे हैं, उनके बारे में हिंदी प्रेमियों और शोधार्थियों को बताना ही हमारा उद्देश्य है। संस्थान कोरोना काल से पहले कई बार अंतरराष्ट्रीय सेमीनार और अब वेबीनार हिंदी साहित्यकारों के साथ करा चुका है।
हिंदी शब्दकोश को समृद्ध बना रहा केंद्रीय हिंदी संस्थान
केंहिंसं हिंदी विश्वकोश परियोजना के अंतर्गत शिषणोपयोगी विषय क्षेत्रों पर आधारित 16 खंडीय विश्वकोश का निर्माण कर चुका है।गणित, भूगोल व विज्ञान के विश्वकोष प्रकाशित हो चुके हैं। पूर्वोत्तर भारत एवं अन्य हिंदीतर राज्यों की भाषाओं के द्विभाषी अध्येताकोशों की 50 योजाओं पर कार्य चल रहा है। अब तक 40 कोश प्रकाशित हो चुके हैं। 10 कोश प्रकाशित हो चुके हैं।चार भाषाओं के लोक साहित्य प्रकाशित हो चुके हैं, सात पर कार्य चल रहा है। हिंदी के अखिल भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय संवर्धन के लिए आठ त्रैमासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। यूजीसी केयर की सूची में चार हिंदी की शोध पत्रिकाएं भी प्रकाशित की जाती हैं। अब तक 80 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।गुलाम कश्मीर में बोली जाने वाली संस्कृत की छोटी बहन कही जाने वाली शीना का पहली पुस्तक भी प्रकाशित की गई। दुर्लभ हो चुकी बल्ती भाषा का कोश भी संस्थान द्वारा ही तैयार किया गया है।संस्थान के कुलसचिव डा. चंद्रकांत त्रिपाठी ने बताया कि 80 लोक भाषाओं के कोश तैयार करने की भी योजना है।