वातावरण का धुंआ बदल रहा वानरों का मिजाज, जानिये आखिर क्या है वजह
उखड़ रही सांस, हो रहा जुकाम। खाना न मिलने से भी हो रहे चिड़चिड़े।
आगरा [ऋषि दीक्षित]: वातावरण में बढ़ते प्रदूषण के चलते जब आदमी की सांस उखड़ सकती है और स्वभाव चिड़चिड़ा हो सकता है तो बंदरों का क्यों नहीं। बंदरों के हावभाव और शारीरिक संरचना मनुष्यों से 99.99 फीसद मेल खाती है, इसी तरह खान- पान में भी लगभग समानता है और कई बीमारियां भी बंदरों और मनुष्यों में समान पाई जाती हैं। उत्तर भारत में बड़ी संख्या में बंदर टीबी रोग के भी शिकार हो रहे हैं।
भारतीय पशु चिकित्सा परिषद के चेयरमैन डॉ. रविंद्र चौधरी के अनुसार दीपावली के बाद आगरा जैसे बड़े शहरों में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। अस्पताल अस्थमा और सांस के रोगियों से भरे पड़े हैं। हवा में सूक्ष्मकणों की अधिकता के चलते बंदरों को भी सांस लेने में दिक्कत हो रही है। गौर से देखने पर साफ पता चल जाता है कि कई बंदरों को जुकाम भी हो रहा है। मनुष्य तो डॉक्टर से दवा ले लेता है। नेबुलाइजर का प्रयोग कर लेता है, लेकिन बंदर क्या करें उन्हें जब कुछ नहीं दिखता और परेशान होते हैं तो वे मनुष्यों पर हमला बोलते हैं। बंदर जंगली जानवर अवश्य है लेकिन वह आदिकाल से मनुष्यों के आसपास और संपर्क में रहा है। वर्तमान में भी वैज्ञानिक कई घातक बीमारियों की दवाइयों का प्रयोग सबसे पहले बंदर पर ही करते हैं। अच्छे परिणाम मिलने के बाद ही वह मनुष्यों को दी जाती हैं। अभी हाल ही में एचआइवी (एड्स) जैसी घातक बीमारी के खात्मे के लिए जो दवा ईजाद की गई है उसका पूरा परीक्षण ही बंदरों पर किया गया है।
ऋतु परिवर्तन के चलते सभी पशु-पक्षियों के स्वभाव में बदलाव आता है। कई पशु-पक्षी तो अपने ठिकाने तक बदल लेते हैं, उन्हें प्रवासी कहा जाता है, लेकिन बंदर ही एक ऐसा जानवर है जो मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। बंदर किसी को काटते हैं या छीना झपटी करते हैं तो उसके पीछे इन कारणों पर गौर नहीं किया जाता। यह बिल्कुल सही है कि बंदरों को खाना न मिलने और जंगली क्षेत्र कम होने के कारण उनका उत्पात बढ़ रहा है। इन्हें कहीं भी पकड़ कर छोड़ दिया जाए लेकिन वे अपने स्वभाव के चलते बस्तियों के आसपास ही डेरा जमा लेंगे।
आगरा हेल्प के संस्थापक सदस्य एवं समाज सेवी मुकेश जैन ने 6 वर्ष पूर्व वन विभाग के सहयोग से बंदरों को पकड़वाकर बाह के जंगलों में छुड़वाया था। उन्होंने बताया कि यह प्रयोग भी सफल नहीं रहा था।
चाल्र्स डार्विन की थ्योरी के अनुसार बंदर मनुष्य के पूर्वज हैं। बेशक यह तथ्य सर्वमान्य नहीं है लेकिन बंदर मनुष्य से ज्यादा दूर नहीं रह सकते यह पूरी तरह सत्य है। बंदरों की संख्या कम करने के लिए नसबंदी ही एक उपाय है।