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जानिये कहां कांग्रेस के लिए कांटों भरी है सियासी जीत की राह

35 साल से किसी प्रत्याशी ने नहीं चखा मैनपुरी लोकसभा में जीत का स्वाद। हजारों तक सिमटे वोट बीते तीन चुनावों में तो उतरी ही नहीं मैदान में।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 03:05 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 03:05 PM (IST)
जानिये कहां कांग्रेस के लिए कांटों भरी है सियासी जीत की राह
जानिये कहां कांग्रेस के लिए कांटों भरी है सियासी जीत की राह

आगरा, दिलीप शर्मा। सपा- बसपा के झटका देने के बाद भले ही कांग्रेस अकेले दम पर 80 सीटों पर चुनाव लडऩे का खम ठोक रही हो, लेकिन मैनपुरी के लिहाज से यह दावा बेमानी ही दिखता है। मैनपुरी के सियासी ट्रैक पर कांग्रेस के लिए जीत की रेस लगभग नामुमकिन है। बीते 35 साल में पार्टी कभी सीधे मुकाबले तक भी नहीं पहुंच पाई है। जमीनी मजबूती का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि बीते चुनावों में पार्टी चुनाव मैदान में ही नहीं उतरी।

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मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के वर्चस्व की बात करें तो शुरूआत में भी यह लडख़ड़ा कर आगे बढ़ती रही। फिर वर्ष 1984 के बाद मतदाता ने ऐसी दूरी बनाई की पार्टी कभी जीत की दहलीज तक नहीं पहुंच सकी। 1986 में कांग्रेस से बलराम ङ्क्षसह यादव सांसद बने थे। इसके बाद पहले जनता दल और उसके बाद जनता पार्टी जीती। फिर शुरू हुआ सपा की जीत का सिलसिला तो बीते 22 साल से जारी है। इन बीते सालों में कांग्रेस का संगठन भी कमजोर होता गया और मतदाताओं के समर्थन का ग्राफ भी नीचे गिरा।

यहां कांग्रेस की कमजोरी का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पार्टी ने आखिरी बार वर्ष 2004 के लोकसभा उप चुनाव में सुमन चौहान को प्रत्याशी के रूप लड़ाया था। तब पार्टी को केवल 11 हजार 391 वोट ही हासिल हुए थे। जबकि उस चुनाव में सपा के धर्मेंद्र यादव 3.48 लाख वोट हासिल कर जीते थे और बसपा के प्रत्याशी अशोक शाक्य को 1.69 लाख वोट मिले थे। उस चुनाव में भाजपा भी केवल साढ़े 14 हजार वोटों पर ही सिमट गई थी। इसके बाद हुए तीन लोस चुनावों में पार्टी ने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा। हालांकि पार्टी इसे बिना गठबंधन के सपा के छोडऩे की बात कहती रही। हालांकि अब चुनाव की तैयारी में संगठन जुटा हुआ है और सभी बूथों पर समितियों के गठन का दावा भी कर रहा है।

18 चुनाव, केवल पांच बार ही जीता पंजा

आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में ही पार्टी की टिकट पर बादशाह गुप्ता ने जीत हासिल की थी। इसके बाद अगले चुनाव में ही प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी बनारसी दास गुप्ता ने कांग्रेस को पराजित कर दिया था। इसके बाद लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस अजेय रही। वर्ष 1962 के चुनाव में बादशाह गुप्ता फिर जीते। उनके बाद 1971 और 77 में महाराज ने कांग्रेस के टिकट पर विजय पाई। परंतु आपातकाल के बाद कांग्रेस का आधार दरकता चला गया। इसके बार रघुनाथ ङ्क्षसह 1977 में भारतीय लोकदल से और 1980 में जनता पार्टी सेकुलर से सांसद बने। 1984 में कांग्रेस ने बलराम ङ्क्षसह को लड़ाया और जीत कर वापसी की, परंतु इसे बरकरार नहीं रख सके। इसके बाद 1989 में जनता दल से और 91 में जनता पार्टी से उदय प्रताप ङ्क्षसह जीते। 1996 में मुलायम ङ्क्षसह ने विजय हासिल कर लोकसभा में सपा का वर्चस्व कायम कर दिया। इसके बाद बीते सात चुनावों में भी सपा ही जीती।

यहां कब- कब जीती कांग्रेस

1952 बादशाह गुप्ता

1962 बादशाह गुप्ता

1967 महाराज सिंह

1971 महाराज सिंह

1984 चौ. बलराम सिंह

बीते चुनावों में कांग्रेस का हाल

वर्ष 2004 - 9896 वोट मिले

वर्ष 2004 उपचुनाव - 11, 391 वोट मिले

वर्ष 2009 - प्रत्याशी नहीं उतारा

वर्ष 2014 - प्रत्याशी नहीं उतारा

वर्ष 2014 उप चुनाव - प्रत्याशी नहीं उतारा

इस बाद भी शायद न उतरे प्रत्याशी

पार्टी सूत्रों की माने तो इस बार भी मैनपुरी लोकसभा सीट को खाली छोड़ जा सकता है। सपा से अघोषित सहमति के कारण बीते तीन चुनावों में यही किया गया था। इस बार सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस संरक्षक सोनिया गांधी और अध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी न लड़ाने की बात कही है। यदि मुलायम यहां से लड़ते हैं तो कांग्रेस भी यहां शिष्टाचार दिखा सकती है।

भाजपा को नहीं मिलेगा कोई लाभ

कांग्रेस यदि अपना प्रत्याशी उतारती भी है तो भी उसका सपा-बसपा गठबंधन के लिए वोट कटवा साबित होने की उम्मीद कम ही है। भाजपा से जुड़े सूत्रों की माने तो कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में आने पर भी उसको कोई फायदा नहीं होना है। ऐसे में पार्टी हर पहलू को ध्यान में रखकर ही रणनीति तैयार कर रही है।

पार्टी की तैयारी है पूरी

पार्टी हाईकमान के निर्देशानुसार चुनाव में काम करेगी। तैयारी पूरी है। चुनाव को लेकर बुधवार को लखनऊ में बैठक होगी, इसमें ही अग्रिम निर्देश मिलेंगे।

- संकोच गौड़, जिलाध्यक्ष कांग्रेस


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