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शख्सियत: धरती को स्वर्गिक आभा से प्रकाशित करती है कविता

साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित डॉ. विजय रंजन ने जागरण से साझा किए विचार। साहित्य के वर्तमान परिवेश पर रखी बेबाक राय।

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Jul 2018 04:33 PM (IST)Updated: Wed, 04 Jul 2018 04:33 PM (IST)
शख्सियत: धरती को स्वर्गिक आभा से प्रकाशित करती है कविता

आगरा(जागरण संवाददाता): साहित्य अच्छे विचारों को जन्म देता है और अच्छे विचार बेहतर दुनिया बना सकते हैं। इसलिये साहित्य का सृजन होना जरूरी है। साहित्य और अध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं या कहें कि एक दूसरे के पूरक हैं। साहित्य सृजन पर यह विचार थे राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार डॉ. विजय रंजन ने। उप्र हिंदी संस्थान से साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित डॉ. विजय रंजन दो दिवसीय साहित्यिक यात्रा पर ताजनगरी आए हुए हैं। उप्र हिंदी संस्थान द्वारा जयशंकर पुरस्कार प्राप्त शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ के सुलभ बिहार, गैलाना रोड स्थित आवास पर जागरण ने उनसे मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने अपने कृतित्व के साथ सामाजिक सरोकारों पर भी प्रकाश डाला। डॉ. रंजन पेशे से अधिवक्ता हैं। उनका मानना है कि साहित्य और न्याययिक कार्य, दोनों में ही सत्य की खोज की जाती है।

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ऋगवेद में है कविता की पहली परिभाषा:

विजय रंजन का मानना है कि कविता की पहली परिभाषा ऋगवेद में दी गई थी। उसमें साफ लिखा है कि कविता वो है जो अपनी आभा से धरती को स्वर्गिक प्रकाश से भरे। वाल्मिकी हैं आदि महा कवि:

डॉ. रंजन के अनुसार वाल्मिकी विश्व के महान कवि हैं। उन्होंने महाकाव्य रामायण का सृजन किया था। पहली कृति वाल्मिकी रामायण का तुलनात्मक अध्ययन की जब रचना की तो कई गूढ़ रहस्य समझ आए। वाल्मिकी रामायण में नौ अप्रतिम अवधान जैसे नारीवाद, लोकवाद, विंबवाद आदि हैं। यह सभी जीवन की प्रासंगिकता का वर्णन करते हैं।

पांच दर्जन कृतियों पर कार्य कर रहे हैं डॉ. रंजन:

साहित्य भूषण डॉ. विजय रंजन मूलत: गौंडा के निवासी हैं लेकिन वर्तमान में फैजाबाद में रह रहे हैं।

1965 से साहित्य सृजन में जुटे डॉ. रंजन की अब तक आठ कृतियां, जिनमें दो काव्य संग्रह, दो कहानी संग्रह और चार समालोचना कृतियां हैं, प्रकाशित हो चुके हैं। अवधअर्चना पत्रिका के संपादक डॉ. रंजन वर्तमान में पांच दर्जन पुस्तकों पर एक साथ कार्य कर रहे हैं।

साहित्यकार भी बना रहे बच्चों को मशीन:

डॉ. रंजन वर्तमान परिवेश की समस्याओं से व्यथित भी दिखे। उनका कहना कि विकास का अर्थ बौद्धिक, शैक्षिक और अध्यात्मिक विकास से होना चाहिए लेकिन आज एकांकी मान लिया गया है। भौतिकवाद पर बल दिया जा रहा है, जिसमें सारा जोर आर्थिक विकास में है। विडंबना है कि अच्छे साहित्यकार भी अब इस समस्या से ग्रसित होकर अपने बच्चों को प्रतिस्पर्धा में ढकेल रहे हैं। उन्हें मशीन बना रहे हैं।

हर पुरस्कार देता हैं अंदर के लेखक को प्रेरणा:

साहित्य भूषण, सरस्वती सम्मान सहित करीब ढाई दर्जन अन्य सम्मानों से सम्मानित हो चुके डॉ. रंजन का मानना है कि सम्मान अंदर के लेखक को बल और ऊर्जा प्रदान करते हैं, जिससे साहित्य सृजन की प्रेरणा मिलती है।


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