Pitra Paksha 2020: पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध कल, जानिए विधान एवं तिथियां
Pitra Paksha 2020 2 सितंबर से 17 सितंबर तक है श्राद्ध पक्ष। श्राद्ध का आरंभ होते ही पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं।
आगरा, जागरण संवाददाता। हिंदुओं में व्यक्ति के गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक अनेक प्रकार के संस्कार किए जाते हैं। उसके बाद अपने पितृों के लिए श्राद्ध करने का दायित्व उनके परिजनों का होता है। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितृों की पुण्य तिथि पर श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्रद्ध करने का विधान है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध पक्ष कहते हैं। इस वर्ष से पक्ष 2 सितबंर से आरंभ होकर 17 सितंबर तक रहेगा। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवपूजा से पहले व्यक्ति को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। पितृों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गो का सम्मान और मृत्यु के उपरांत श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि यदि विधि अनुसार पितृों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। शुभ कार्य करने से पहले पितृों का आह्वान किया जाता है।
क्या है मान्यता
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि माना जाता है कि श्राद्ध का आरंभ होते ही पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए जिस दिन उनकी तिथि होती है उससे एक दिन पहले संध्या समय में दरवाजे के दोनों ओर जल दिया जाता है जिसका अर्थ है कि आप अपने पितर को निमंत्रण दे रहे हैं और अगले दिन जब ब्राह्मण को उनके नाम का भोजन कराया जाता है तो उसका सूक्ष्म रुप पितरों तक भी पहुंचता है। बदले में पितर आशीर्वाद देते हैं और अंत में पितर लोक को लौट जाते हैं। ऎसा भी देखा गया है कि जो पितरों को नहीं मनाते वह काफी परेशान भी रहते हैं।
क्या है विधान
पितृ पक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले 16 ग्रास अलग-अलग चीजों के लिए निकाले जाते हैं जिसमें गौ ग्रास तथा कौवे का ग्रास मुख्य माना जाता है। मान्यता है कि कौवा आपका संदेश पितरों तक पहुंचाने का काम करता है। भोजन में खीर का महत्व है इसलिए खीर बनानी आवश्यक है। भोजन से पहले ब्राह्मण संकल्प भी करता है। जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है तो उसके हाथ में जल देकर संकल्प कराया जाता है कि वह किस के लिए श्राद्ध कर रहा है। उसका नाम, कुल का नाम, गोत्र, तिथि, स्थान आदि सभी का नाम लेकर स्ंकल्प कराया जाता है। भोजन के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को वस्त्र तथा दक्षिणा भी दी जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की तिथि नहीं पता है तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपनी सामर्थ्यानुसार एक या एक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकता है। कई विद्वानों का यह भी मत है कि जिनकी अकाल मृत्यु हुई है या विष से अथवा दुर्घटना के कारण मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए।
श्राद्ध की तिथियां
01 सितंबर- पूर्णिमा
02 प्रतिपदा
03- द्वितीया
04- तृतीया
05- रिक्त
06- चतुर्थी
07- पंचमी
08- षष्ठी
09- सप्तमी
10- अष्टमी
11- नवमी
12- दशमी
13- एकादशी
14- द्वादशी
15- त्रयोदशी
16- चतुर्दशी
17- अमावस्या