पंचगव्य, अद्भुत द्रव्य, निरोगी कर रहा काया, जानिए कैसे
-बीते पांच साल से निश्शुल्क वितरित कर रहे हैं गो रसायन - देसी गीर नस्ल के महंगे गोवंश खरीद स्थापित कर डाली गोशाला
आगरा, आशीष भटनागर। पूर्व बैंककर्मी अशोक अग्रवाल ने बड़े अरमान से सीए युवक के साथ बेटी का विवाह किया। महज दो साल बीते थे कि दामाद को गले का कैंसर हो गया। उपचार के लिए जतन करते-करते उन्हें बलसाड (गुजरात) के एक आयुर्वेदिक कैंसर औषधालय में उम्मीद की किरण दिखाई दी। वहां पंचगव्य से इलाज होने पर चमत्कारिक परिणाम आए। लगभग दो साल बाद दामाद स्वस्थ हो गए। छह बरस बीत गए वह सामान्य जीवन जी रहे हैं। दामाद को निरोगी बनाने के बाद अग्रवाल अन्य पीड़ितों को रोग से स्वतंत्रता दिलाने के सारथी बन गए। पांच वर्ष से पीड़ितों को पंचगव्य बनवाकर निश्शुल्क बांट रहे हैं। पंचगव्य की सहज उपलब्धता के लिए समाज के सहयोग से गोशाला तक स्थापित कर डाली।
सुबह सात बजने से पहले ही कमलानगर के बालाजी नगर में स्थित गायत्री शक्तिपीठ पर लोगों का आना शुरू हो गया है। सभी किसी न किसी असाध्य रोग से पीड़ित। थोड़ी देर में ही गायत्री मंत्र जाप के साथ शुरू होता है पंचगव्य रसायन का निर्माण। विनोद विश्वकर्मा देसी गाय के गोमूत्र, गोरस (गोबर का अर्क), ताजा कच्चा दूध और दही को एकरस कर उसे कपड़छन करने में जुटे हैं। द्रव्य 80 बार कपड़े की छलनी से गुजरता है। रसायन तैयार होने के साथ जाप का स्वर बदल जाता है। महामृत्युंजय मंत्र के जाप के साथ शुरू होता है वितरण। प्रत्येक व्यक्ति को 200 ग्राम रसायन और पंचम तत्व चार चम्मच गर्म घी।
पंाच साल से पंचगव्य का सेवन कर रहे प्रोस्टेट कैंसर पीड़ित मोतीलाल उर्फ चंदा पंसारी बताते हैं कि इसका सेवन शुरू किया तब से आराम है। आहारनली के कैंसर से जूझ रहे उमेश तिवारी, ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित किशन और मुख कैंसर के रोगी राकेश का भी दावा समान्य जीवन जीने और कैंसर की गांठ का आकार स्थिर होने का है। मधुमेह रोगी वीना गोयल का दावा है कि इसके सेवन से पहले उन्हें सुबह-शाम 30-30 इंसुलिन इंजेक्शन लगाने पड़ते थे, जिसकी मात्रा अब सिर्फ पांच-पंाच रह गई है।
शहर के प्रमुख एलोपैथिक फिजीशियन नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि पेट में ट्यूमर हो गया था। खुद की चिकित्सा पद्धति काम नहीं आई, लेकिन पंचगव्य सेवन ने चमत्कार कर दिया। अब एक वर्ष से स्वस्थ हूं।
हाथरस रोड पर उजरई कलां में स्थापित सुरभि गोशाला का प्रबंधन अरुण गर्ग देखते हैं। बताते हैं कि रोगियों को गुणवत्तापूर्ण रसायन मिले, इसके लिए देसी गीर नस्ल की 27 गोवंश खरीदे गए हैं। प्रत्येक की कीमत 70 से 75 हजार के बीच है।
समस्त गतिविधि के सफलतापूर्वक संचालन के लिए बनाए गए कामधेनु पंचगव्य शोध संस्थान के संरक्षक मुरारी प्रसाद अग्रवाल बताते हैं कि गोशाला से सटे खाली स्थान पर औषधीय गुण वाले पौधों की खेती की योजना है। जल्द ही कैंसर रोगियों के लिए पंचगव्य चिकित्सा शिविर भी आयोजित होंगे।
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अशोक अग्रवाल बताते हैं कि पंचगव्य रसायन में 70 फीसद गोमूत्र, 5 गोरस, 15 कच्चा दूध, और 10 फीसद दही का प्रयोग किया जाता है। सेवन करने के लिए निराहार आना होता है और एक घंटे बाद तक कुछ खाना नहीं होता है। प्रतिदिन प्रात: सात से आठ बजे तक रसायन का निश्शुल्क वितरण किया जाता है।