आमेर की राजकुमारी ने अकबर को पढ़ाया था महानता का पाठ, आज भी हैं महल में साक्ष्य
सीकरी के किले में जोधाबाई के महल में राजपूताना आन रसूख दूरदृष्टिता ब्रज की संस्कृति कान्हा की भक्ति और समृद्ध राजस्थानी और गुजराती शिल्पकला आज भी है मौजूद।
आगरा, अजय शुक्ला। ऐतिहासिक धरोहरें 'टाइम मशीन' की तरह होती हैं, जहां खड़े होकर कल्पना के झरोखे से अतीत में झांकने पर सोच की नई परतें खुलती हैं और समझ के विविध आयाम नजर आते हैं। विवादित इतिहास के तथ्यों पर मौलिक चिंतन को विवश करते हैं। फतेहपुर सीकरी का किला भी ऐसी ही टाइम मशीन है। इस टाइम मशीन में अकबर महान के बरक्स कोई अजीमुश्शान चेहरा दिखता है तो वह है आमेर की राजकुमारी हीर कंवर का, जिन्हें इतिहास ने जोधाबाई के रूप में अमर किया। सीकरी के किले में जोधाबाई के महल में राजपूताना आन, रसूख, दूरदृष्टिता, ब्रज की संस्कृति, कान्हा की भक्ति और समृद्ध राजस्थानी और गुजराती शिल्पकला के साथ इस बात का मौन प्रमाण मिलता है कि अनपढ़ मुगल बादशाह अकबर को भारतीयता और भारतीय संस्कृति में दक्ष करने में इस राजपूतानी का कितना बड़ा योगदान रहा।
जोधाबाई लोक संवाद में जितना चर्चित रहीं उसकी मिसाल किसी दूसरी मुगल मलिका में नहीं मिलती। इसके बाद सिर्फ शाहजहां की बेगम मुमताज महल ने शोहरत पायी, लेकिन वाह्य खूबसूरती के सिवा इतिहास और लोकसंवाद में उनका कोई दूसरा स्पष्ट उल्लेख या योगदान नहीं मिलता। मुगल सल्तनत में जोधाबाई उर्फ हीर कंवर उर्फ हरकाबाई के इसी रसूख की बानगी आज भी देता है, सीकरी के किले में स्थित जोधा का महल।
जोधाबाई के बारे में मेरी जानकारी फिल्म और टीवी धारावाहिकों से अधिक पहले कभी नहीं थी। कुछ किताबों में पढ़ा। जिज्ञासा बढ़ी तो कुछ और जानकारी जुटाई। एक कॉमन जिक्र यह मिला कि अकबरनामा, जहांगीरनामा और आइने अकबरी में कहीं अकबर की पत्नी के रूप में जोधाबाई का उल्लेख नहीं है। इस आधार पर यह खारिज करने की कोशिश हुई है कि जोधाबाई का चरित्र काल्पनिक है। यदि फतेहपुर सीकरी का किला देखने का अवसर न मिलता तो शायद मैं इन्हीं जानकारियों तक सीमित रहता। इसलिए मुझे यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं कि जोधाबाई न केवल ऐतिहासिक चरित्र थीं, बल्कि उनका किरदार बेहद प्रभावशाली था। अकबर को महानता के गुर सिखाने और मुगल सल्तनत को भारत में सर्वधर्म समभाव के मंत्र से स्वीकार्य बनाने में जिस एक महिला का सर्वाधिक योगदान रहा, वह जोधाबाई ही थीं।
जोधा का महल शानदार दो मंजिला इमारत है। मुख्य दरवाजा दक्षिण की ओर खुलता है। जोधा ऐसी रानी थीं जिसने एक मुस्लिम बादशाह से शादी की लेकिन पूरा जीवन हिंदू परंपरा, पूजा और आस्था के साथ व्यतीत किया। यदि उस समय के सबसे ताकतवर बादशाह के हरम में वह अपने धार्मिक स्वतंत्रता के साथ रहीं तो इसे अकबर की उदारता से अधिक जोधा का प्रभाव मानना चाहिए। क्योंकि अकबर उस समय तक इतना परिपक्व नहीं रहे होंगे कि गैर धर्मों के प्रति सहिष्णुता का ऐसा भाव में उनमें स्वाभाविक रूप से आ गया हो।
जोधा महल में हिंदू प्रतीक
जोधाबाई कृष्ण भक्त थीं। महल में उनका एक पूजाघर था जिसमें कभी कृष्ण प्रतिमा रही होगी। पूजाघर की बनावट में यह दिखता है। पूजाघर में कृष्ण लीलाओं के चित्रण मिलते हैं। वेजीटेबल कलर से तैयार किये गए यह चित्र अब बेहद धुंधले दिखते हैं, लेकिन बुजुर्ग गाइड मोहम्मद चांद (ज्ञान और अनुरागवश इन्हें लोग 'भारत सरकार' कहते हैं) बताते हैं कि दो दशक पहले तक पहले यह चित्र स्पष्ट थे, नमी व साल्टी हवा के प्रभाव से धीरे-धीरे मिटते जा रहे। महल पर हिन्दू स्थापत्य का प्रभाव है, चाहे कारीगरी हो या दीवारों पर की गई चित्रकारी। पूजाघर सहित पूरे महल की सजावट में दक्षिण की शैली और गुजराती कारीगरी का प्रभाव दिखाई पड़ता है। खंभों के शहतीर एवं उनकी घंटियों की सांकरों जैसी उमड़ी डिजाइनें पूर्णत: हिंदू मदिरों जैसी हैं। खास बात ये कि यह अकेला ऐसा महल है जिसमें मुल्तान से लाये गए नीली टाइलों का प्रयोग है। यूं सीकरी के किले में हिंदू ही नहीं अन्य धर्मों के प्रतीकों का खूब इस्तेमाल है, किंतु जोधा के महल में इसका चरम दिखता है।
पूजाघर और तुलसी का पौधा
महल में आज भी जोधा का वह पूजाघर मौजूद है जहां जोधा कृष्णभक्ति में लीन होती थीं। यहीं कृष्ण का गाय चराते ग्वाले के रूप में चित्रण है। विशाल आंगन में वह स्थान, जहां तुलसी का पौधा था, अब भी पूरी गरिमा के साथ पवित्रता के भाव जाग्रत करता है। सबसे खास चीज जो हमे गाइड 'भारत सरकार' ने दिखाई वह थी जोधा के महल के बाहरी हिस्से में गढ़ी मां लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमा। ऊंचाई पर होने और समय के साथ जीर्ण होने के कारण यह आमतौर पर पर्यटकों की दृष्टि में नहीं आ पाती।
ग्रीष्म व शरद विलास
जोधा का महल न केवल भव्य और विशाल है बल्कि उसका डिजाइन इस तरह है कि गर्मी और सर्दी में रहने के लिए अलग-अलग आरामगाहें हैं। इन्हें शरद विलास और ग्रीष्म विलास कहते हैं। इसके लिए इनके निर्माण में इस क्षेत्र विशेष में सूरज के मूवमेंट और हवाओं के रुख को ध्यान में रखा गया। इसलिए महल के एक हिस्से में गर्मी और दूसरे में ठंडक महसूस होती है।
पृथक पाकशाला
जोधाबाई न केवल हिंदू धर्म के प्रति पूर्ण अनुरागी और समर्पित थीं, बल्कि मांसाहार से भी उन्हें पूर्ण परहेज था। इसलिए महल के बाहर जोधा की पृथक पाकशाला थी जो आज भी मौजूद है। जोधा के महल के समीप ही मरियम की कोठी है। कुछ लोग इसे भी जोधा का महल समझने की भूल करते हैं। कारण, अकबर ने जोधाबाई को मरियम उज जमानी का खिताब दिया था जिसका अर्थ है, संपूर्ण विश्व के लिए दयालुता और ममत्व का भाव रखने वाली। जबकि जोधा के महल के समीप स्थित मरियम की कोठी के बाहर बनी मांसाहार की पाकशाला और इसका छोटा आकार यह न मानने को विवश करता है कि यह जोधा का महल नहीं।
मरियम की कोठी
जोधा के महल के सामने जो मरियम की कोठी है, उसके बारे में कहा जाता है और बात समझ में भी आती है कि यह पुर्तगाली महिला डोना मारिया मास्करेन्हस की कोठी थी जिसे मारिया से मरियम बना दिया गया। इसे एक पुर्तगाली जहाज से पकड़कर लाया गया था और उसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर अकबर ने उसे अपने हरम में स्थान दिया। हालांकि, जोधा के अस्तित्व को अस्वीकारने वाले इसी पुर्तगाली महिला को जोधाबाई और उनके खिताब मरियम उज जमानी से जोड़ते हैं। गोवा के लेखक लुइस डी असिस कोरिआ ने अपनी किताब 'पोर्तुगीज इंडिया एंड मुगल रिलेशंस' में यही दावा किया है। हालांकि, तर्क बेहद कमजोर हैं।
अकबर की तीन बेगमों का जिक्र आता है, लेकिन सच यह है कि केवल जोधाबाई और रुकैया बेगम जो अकबर की पहली पत्नी और चचाजात बहन थीं। रुकैया बेगम के कोई औलाद नहीं थी और कहा जाता है कि जब अकबर और सलीम के बीच तकरार बगावत तक बढ़ी तो रुकैया बेगम ने ही सुलह कराई।
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