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Rotiwali Amma In Agra: उलझनों को आटे संग गूथ रहीं आगरा की 'रोटी वाली अम्मा'

दिल्ली के ढाबा वाले बाबा की तरह सेंट जोंस चौराहे के पास शहर की लाइफलाइन एमजी रोड के फुटपाथ पर मिट्टी का चूल्हा सुलगता नजर आता है। ये रोटी वाली अम्मा का चूल्हा है। रोटी बेलने से लेकर सेंकने में गजब की फुर्ती। तुंरत ही थैली में सब्जी भरना।

By Edited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 07:40 AM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 07:16 PM (IST)
Rotiwali Amma In Agra: उलझनों को आटे संग गूथ रहीं आगरा की 'रोटी वाली अम्मा'
ये रोटी वाली अम्मा का चूल्हा है।

आगरा, जेएनएन। न जिंदगी से कोई शिकवा और न अपनों से कोई गिला। न कभी इमदाद की फरियाद की और न ही हालात से हार मानी। हर उलझन से ही निकाला मुश्किल का हल। चेहरे की झुर्रियां भले ही उम्र की चुगली कर देती हैं, मगर सम्मान से जीने का जज्बा 80 साल की उम्र में भी जवां है। जिस उम्र में शरीर शिथिल हो जाता है, हाथ कांपते हैं और पैर लड़खड़ाते हैं और हृदय की धड़कन तेज होती है, रोटी वाली अम्मा आयु की इस बाध्यता को कतई नहीं मानतीं।

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दिल्ली के ढाबा वाले बाबा की तरह सेंट जोंस चौराहे के पास शहर की लाइफलाइन एमजी रोड के फुटपाथ पर मिट्टी का चूल्हा सुलगता नजर आता है। ये रोटी वाली अम्मा का चूल्हा है। रोटी बेलने से लेकर सेंकने में गजब की फुर्ती। तुंरत ही थैली में सब्जी भरना। चार रोटी और सब्जी का पैकेट तैयार। कीमत 20 रुपये। अम्मा क्या नाम है? भगवान देवी। इसके बाद जैसे-जैसे झिझकते हुए बातें आगे बढ़ीं, अम्मा ने जिंदगी के सफर की बयानी, उससे कहीं ज्यादा बेबाकी से सुना दी।

दैनिक जागरण से इस 'इंटरव्यू' में अम्मा के अंदाज और अल्फाज में कतई ऐसा नजर नहीं आया जिसमें उन्हें जिंदगी से कोई शिकायत है या अपनों की बेरुखी पर कोई व्यथा। कहा कि मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। किसी ने मदद नहीं की? सवाल पर उनका चेहरा तमतमा गया। बोलीं, क्यों? हम यहां मेहनत करते हैं और अपना पेट भर लेते हैं। किसी के भरोसे क्यों रहें?

नौकरी से मालिक का सफर : भगवान देवी बताती हैं कि करीब 15 वर्ष पहले उनके पति चरण सिंह ने बीमारी की हालत में चारपाई पकड़ ली। दोनों बेटे अपने बच्चों सहित किनारा कर गए। तब हम 15 रुपये रोज पर एक जगह रोटी बनाने लगे। पति के लिए दवा और दो जून की रोटी भी न होने पर कुछ दिन बाद ही यहां अपना चूल्हा रख लिया। इसी बीच, पति गुजर गए। मैं अकेली रह गई। तब से यही चूल्हा जलाकर गुजारा कर रही हूं। लोग उन्हें रोटी वाली अम्मा पुकारने लगे।

लाकडाउन में कर्जा लेकर भरा पेट : बकौल भगवान देवी, रोज पांच-छह सौ रुपये कमा लेते थे। लाकडाउन में चूल्हा उठाना पड़ा। तब कर्जा लेकर पेट भरा था। अब धीरे-धीरे ग्राहक आने लगे हैं। 20 रुपये में वे चार रोटी और एक सब्जी देती हैं। सब्जी हर रोज अलग-अलग होती है। चावल और अचार होता है। अम्मा ने बताया कि पहले गुथा हुआ आटा और सब्जी फेंकनी पड़ती थी, अब खूब ग्राहक आ रहे हैं। अपने जज्बातों को दबाए अम्मा मानो कह रही थीं - बहुत सा पानी छिपाया है अपनी पलकों में। जिंदगी लंबी है पता नहीं कब प्यास आए।।


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