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तीन तलाक के खिलाफ सात साल किया संघर्ष, अब इंसाफ की आस Agra News

तीन तलाक बिल से इरादतनगर की शिल्पी को हुई न्याय की उम्मीद। निकाह के तीन महीने बाद शौहर ने तीन तलाक बोल घर से था निकाला।

By Edited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2019 09:53 AM (IST)
तीन तलाक के खिलाफ सात साल किया संघर्ष, अब इंसाफ की आस Agra News
तीन तलाक के खिलाफ सात साल किया संघर्ष, अब इंसाफ की आस Agra News
आगरा, जेएनएन। तीन तलाक बिल को मंजूरी ने तीन तलाक के खिलाफ सात साल से संघर्ष कर रही शिल्पी को इंसाफ की आस बंध गई है। बुधवार को विधेयक को मंजूरी मिलने पर मुस्लिम महिलाओं में खुशी की लहर देखने को मिली। कस्बा इरादतनगर में रहने वाली शिल्पी खान तीन तलाक की लड़ाई पिछले सात साल से लड़ रही हैं। निकाह के तीन महीने बाद ही पति ने मारपीट कर तीन तलाक बोल घर से बाहर निकाल दिया था। कई सालों के संघर्ष के बाद शिल्पी को इंसाफ नहीं मिला है। शिल्पी के मुताबिक 18 जनवरी 2013 में उनका निकाह आगरा निवासी मुशीर के साथ हुआ। दो महीने के बाद ससुराल में उनका शोषण किया जाने लगा। चार पहिया गाड़ी और रुपये की माग की जाने लगी, जिसका विरोध करने पर आए दिन उनसे मारपीट होने लगी। एक दिन मुशीर के बड़े भाई ने उनसे हद दर्जे की अभद्रता कर दी। विरोध किया तो पूरे परिवार ने उसके साथ मारपीट की। पति से शिकायत की तो पति ने तीन तलाक बोल कर उसे घर से बाहर निकाल दिया। मामले को लेकर बुजुर्गो द्वारा दो साल तक राजीनामा का प्रयास किया। मगर, पंचायतों का वह दौर शिल्पी की जिंदगी को रोशन न कर सका। वर्ष 2015 में जनवरी में महिला थाना में शिल्पी ने अपने साथ हुए शोषण और तीन तलाक को लेकर शिकायत दर्ज कराई। कई चक्कर लगाने के बाद वहा से भी खाली हाथ लौटाया गया। इंसाफ की राह में शिल्पी भटकती रही। चार साल से कई अधिकारियों और पुलिस के चक्कर काटने के बाद भी शिल्पी को इंसाफ नहीं मिल सका। बुधवार सुबह तीन तलाक विधेयक की मंजूरी की खबर अखबार में देख कर शिल्पी को इंसाफ की एक उम्मीद नजर आयी है। मोदी सरकार यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और शोषण के लिए है। ये विधेयक रामबाण साबित होगा और मुस्लिम महिलाएं चहारदीवारी में बंद आवाज उठा सकेंगी। शिल्पी ने बताया कि आज सात साल के संघर्ष और तीन महीने में केवल तीन बार तलाक बोल कर किसी की जिंदगी को बर्बाद करने का किसी को हक नहीं है। उसे तमाम अधिकारियों ने कोई कार्रवाई न करके, केवल आश्वासन देकर लच्जा की जिदंगी जीने पर मजबूर कर दिया था। पर संसद ने महिलाओं को रोशनी की एक किरण दी है।

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