गूगल ने छीनी हाथों से किताब, ऐसे कैसे होगा बच्चों की भाषा का विकास Agra News
आज बच्चों को नहीं आती अपनी मातृभाषा। किताबों से गायब हो गए छंद और साहित्यकार। साहित्योत्सव में इस समस्या पर हुआ गहन चिंतन।
आगरा, जागरण संवाददाता। आज के बच्चों का स्कूल और विश्वविद्यालय गूगल है। बच्चों को बीस का पहाड़ा तक नहीं आता है। हर साल प्रदेश में 12 लाख बच्चे हिंदी में फेल होते हैं। विचार और वादों के जंगल में ङ्क्षहदी खो गई है। साहित्य के ब्रह्माांंड में सभी की घुसपैठ होनी चाहिए। यह विचार आगरा कॉलेज मैदान में आयोजित साहित्य उत्सव में दिल्ली से आए कवि ओम निश्चल ने रखे।
बुधवार को आगरा कॉलेज ग्राउंड एक कवि की वेदना से गूंज रहा था। आने वाली पीढ़ी की सोच से रो रहा था। बाल साहित्य की सामाजिक परिवर्तन और विकास में भूमिका पर आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए ओम निश्चल ने कहा जो बाल साहित्य में प्रवीण नहीं, उसे साहित्यकार नहीं माना जा सकता है। आज प्राइवेट स्कूलों की किताबों में छंद, तुकबंदी भी ठीक से नहीं होती हैं। कोर्स से माहेश्वरी जी गायब हैं। बच्चों के लिए किताबें मतलब हाथ में मोबाइल है। एक कमरे में होते हुए भी सभी अपने कोनों में बैठते हैं। आधुनिकता की आंधी में बच्चे भटक गए हैं। लखनऊ से आए डा. सुरेंद्र विक्रम ने 'मैं खिलौने की किताबों का पता पूछता रहा, मेरे फूल से बच्चे सयाने हो गएÓ पंक्तियों के साथ अपने दर्द को बयां किया। डा. गीता यादवेंदू, डा. अरूणा गुप्ता ने भी विचार रखे। मुख्य रूप से आगरा कालेज के प्राचार्य डा. विनोद कुमार माहेश्वरी, डा. रेखा पतसरिया, डा. अपर्णा पोद्दार, डा. एमसी गुप्ता, डा. दीपा रावत, राजेंद्र मिलन, सुशील सरित आदि मौजूद रहे।
करवाचौथ के मंगल गीतों से गूंजा पंडाल
साहित्य उत्सव व राष्ट्रीय पुस्तक मेले में आगरा महानगर लेखिका समिति की काव्य गोष्ठी में करवाचौथ व दीवाली के मंगल गीत गाए गए। कार्यक्रम का शुभारंभ डा. शशि तिवारी ने किया। शैलजा अग्रवाल, डा. शैलबाला अग्रवाल, डा. शशि गोयल, डा. अरूणा गुप्ता, डा. रूचि चतुर्वेदी, किरण शर्मा, विजय तिवारी, संगीता अग्रवाल, डा. प्रभा गुप्ता, डा. पारुल अग्रवाल, नेहा अग्रवाल, मधु भदौरिया ने काव्य पाठ किया। संचालन डा. मधु भारद्वाज ने किया।
मेले में सेनाभ्यास भी हो रहा
पुस्तक मेले में इस साल एक स्टॉल युवाओं का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। इस स्टॉल में सेना में जाने के इच्छुक युवा अपना रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं। एक प्रैक्टिस स्टॉल भी लगाया गया है, जहां युवा अपनी ताकत का अंदाजा लगा रहे हैं। को-आर्डीनेटर चंद्रभान सिंह ने बताया कि अब तक सौ से ज्यादा युवा अपना रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं।
ओशो के प्रेमी तो हैं, खरीदार नहीं
दिल्ली से पुस्तक मेले में अपना स्टॉल लगाने आए दुर्गेश बताते हैं कि आज भी ओशो के लिए लोगों की दीवानगी वैसी ही है। लेकिन खरीदार जरूर घट गए हैं। अब लोग ओशो की किताबें पढऩे से ज्यादा यू-ट्यूब पर वीडियो और गूगल पर पढऩा पसंद करते हैं।
बच्चों को नहीं चाहिए किताबें
फरीदाबाद से आए ताराचंद ठाकुर बताते हैं कि हमारे पास बच्चों के लिए हर तरह की किताब है। पंचतंत्र भी है तो अंग्रेजी की स्टोरीज भी हैं। इसके बावजूद आज बच्चे हाथ में किताब नहीं मोबाइल पकडऩा पसंद करते हैं। माता-पिता किताब खरीदने को कहें भी तो बच्चे रूचि नही दिखाते हैं।
बच्चों को पसंद आ रहे स्टेशनरी उत्पाद
मेले में बच्चों की किताबों के अलावा स्टेशनरी का सामान भी है। इस सामान में इंक गायब करने वाला पेन, रंग-बिरंगी पेंसिल, डिजायनर इरेजर, लाइट वाला पेन आदि काफी पसंद किया जा रहा है।