इस संसदीय क्षेत्र में रेल के सफर को न मिली सियासी रफ्तार
मैनपुरी में नाममात्र को हैं रेल यात्रा की सुविधाएं। बड़े शहरों तक जाने के लिए हैं ही नहीं पर्याप्त ट्रेनें।
आगरा, दिलीप शर्मा। सूबे की सियासत में अहम जगह रखने वाली मैनपुरी, रेलवे के नक्शे पर कभी भी महत्व हासिल नहीं कर सकी। ब्रिटिश शासनकाल में रेल संपर्क से जुड़ने वाला जिला आजादी के 72 साल बाद भी इस मामले में तरक्की से कोसों दूर है। यहां के रहने वाले देश के दूसरे शहरों में जाना चाहें तो ट्रेन ही उपलब्ध नहीं हैं। चुनावों के दौरान और चुनावों के बाद भी यह मांग गूंजती रही, लेकिन सियासतदानों ने कभी इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत ही नहीं समझी।
मैनपुरी में ब्रिटिश काल में रेलवे लाइन डाली गई थी। यह शिकोहाबाद से मैनपुरी होते हुए फरुखाबाद तक जाती थी। उस समय सुबह और शाम दो पैसेंजर ट्रेन चलती थीं। तब यहां भोगांव, मैनपुरी, मोटा, कोसमा और टिंडौली स्टेशन बनाए गए थे। देश आजाद हुआ तो लोगों को रेल सुविधाओं में बढोतरी की उम्मीद बढ़ी। लगा अब और ट्रेनें चलेंगी। कारोबार को नये अवसर पैदा होंगे, परंतु ऐसा कुछ हो नहीं पाया। वक्त तेजी से बदलता गया तो सो कारोबार को रफ्तार के लिए साधनों की जरूरत भी बढ़ी। ऐसे में मांग ने जोर पकड़ा। स्थानीय कारोबारी और लोगों ने राजनेताओं के दरवाजे खटखटाए, चुनावों में भी यह मांग उठाई। लेकिन आश्वासन के सिवा उनके हाथ कुछ नहीं लग सका। मैनपुरी हमेशा इंतजार ही देखती रही लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा।
करीब डेढ़ दशक पहले दिल्ली और कानपुर के बीच ट्रेन की मांग उठी तो कालिंदी एक्सप्रेस शुरू की गई। यह कानपुर से चलकर रात दस बजे मैनपुरी आती है और फिर दिल्ली जाती है। जबकि दिल्ली से चलकर यह सुबह करीब चार बजे मैनपुरी पहुंचती है और कानपुर के लिए रवाना होती है। लोकल सवारियों के लिए फरुखाबाद से शिकोहाबाद तक सुबह शाम दो पैसेंजर गाड़ियां चलती हैं। लेकिन ट्रेन का उपयोग व्यापारियों के लिए बहुत अधिक नहीं है।
आनंद विहार भी तोड़ गई उम्मीद
काफी मांग के बाद 2017 में आनंद बिहार एक्सप्रेस का रूट शिकोहाबाद से बदल कर फरुखाबाद होकर कानपुर तक किया गया। इस तरह यह ट्रेन मैनपुरी को मिली, लेकिन यह केवल रविवार को ही आती है। ये ट्रेन दैनिक नहीं हो पाई
आगरा-इटावा रेल ट्रैक को किया 20 साल इंतजार
मैनपुरी को मुख्य रेल मार्ग से जोड़ने के लिए मैनपुरी-इटावा-बाह-आगरा रेल लाइन का तोहफा वर्ष 1997 में मिला। रेल लाइन के निर्माण में इस कदर लापरवाही बरती गई कि इसका निर्माण 20 साल बाद 2017 में पूरा हो पाया। इसके बाद इस पर एक पैसेंजर ट्रेन चल रही है, लेकिन यह मैनपुरी के लिए उपयोगी साबित नहीं हो रही है।
यह हैं मांग
- आगरा से फरुखाबाद तक मैनपुरी होकर पैसेंजर ट्रेन चलाई जाए।
- आनंद विहार एक्सप्रेस को दैनिक किया जाए।
- दक्षिण भारत से जोड़ने के लिए ट्रेन चलें।
- स्टेशनों पर यात्री सुविधाएं बढ़ें।
ट्रेनों की कमी लील गई जिले के कई उद्योग
ट्रेनों की कमी का असर सीधे-सीधे जिले के उद्योगों और व्यापर पर पड़ रहा है। जिले का चावल उद्योग कोलकाता से जुड़ा था, लेकिन ट्रेन न होने के कारण धीरे-धीरे इस उद्योग पर ग्रहण लग गया। रेल संपर्क न होने के कारण ही बनारस और सूरत से जुड़ा साड़ी उद्योग भी अब दुकानदारों के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है।