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वादों का खेल, स्टेडियम फेल, जानिए यहां क्‍यों संसाधनों को तरस रहा खेल का मैदान

महिला कोच ही नहीं कौन तराशे खिलाड़ी। शहर से कोसों दूर मैदान तक आने में हिचकते हैं खिलाड़ी।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 11:48 AM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 11:48 AM (IST)
वादों का खेल, स्टेडियम फेल, जानिए यहां क्‍यों संसाधनों को तरस रहा खेल का मैदान

आगरा, वीरभान सिंह। सियासत की पिच पर अलग पहचान रखने वाला मैनपुरी जिला खेल के मैदान में वादों के 'खेल' में ही उलझा रहा। राजकीय स्टेडियम में खेल सुविधाओं को संवारने के नाम पर लाखों रुपये का 'खेल' कर दिया गया लेकिन हाल और हालात और बदतर होते गए। द्रोणाचार्य तो यहां आने को ही तैयार नहीं हैं। फुटबाल में किक और हॉकी में हिट करने की ख्वाहिशों को समेटे मैनपुरी की खेल प्रतिभाएं सुविधाओं के अभाव में निखर नहीं पा रही हैं। अब कड़वी हकीकत यह है कि पूरे जिले में खेल मैदान के नाम पर एक भी ऐसा स्थान नहीं है जहां महिला और पुरुष खिलाड़ी खेल सकें। मैनपुरी जिले में महिला खिलाडिय़ों के प्रोत्साहन के लिए किसी भी जनप्रतिनिधि ने कोई रुचि नहीं दिखाई।

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कौन मथे महारथी, गुरु ही नहीं

राजकीय स्टेडियम में विभिन्न स्तर के 19 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 13 पद खाली हैं। इतना ही नहीं, यहां किसी भी खेल में एक भी खिलाड़ी तक पंजीकृत नहीं है।

पद, स्वीकृत, तैनाती

क्रीड़ाधिकारी, 1, 1

उप क्रीड़ाधिकारी-कोच, 4, 1

महिला कोच, 5, 0

ग्राउंड मैन, 4, 0

लाइफ सेवर, 1, 1

बाबू, 0, 1

चौकीदार, 4, 1

स्वीपर, 2, 1

शासन ने भेजी थी महिला कोच, करा गईं तबादला

पिछले पांच-छह वर्षों में जिले में बैडङ्क्षमटन, वालीबॉल, बास्केट बॉल और क्रिकेट के खेल में महिला खिलाडिय़ों का रुझान बढ़ा है। कई महिला खिलाडिय़ों ने अपना दबदबा दूसरे प्रांतों में भी बनाया है लेकिन इन्हें खेल की बारीकियां सिखाने के लिए आज तक कोई महिला कोच यहां नहीं आईं। 2016 में शासन ने महिला कोच को भेजा था लेकिन उन्होंने यहां आने से पहले ही अपना तबादला करा लिया।

सिर्फ 10 लड़कियां ही खेलने आती हैं

एक तो शहर से करीब चार किमी की दूरी, उस पर सुविधाओं और संसाधनों का अभाव। यही वजह है कि स्टेडियम से महिला खिलाडिय़ों ने दूरी बना ली है। यहां वालीबॉल, क्रिकेट, एथलेटिक्स, फुटबाल और हॉकी के अलावा बैडङ्क्षमटन खेल की व्यवस्था है लेकिन, खिलाड़ी बगैर मैदान और कोर्ट सूने रहते हैं। सिर्फ पांच लड़कियां वालीबॉल में और पांच क्रिकेट में रुचि ले रही हैं। वह भी कभी- कभी ही आती हैं। कारण, यहां महिला कोच ही नहीं हैं।

उखड़ गई इंटरनेशनल पिच की सोच

वर्ष 2015 में स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय स्तर की क्रिकेट पिच का कांसेप्ट तैयार किया गया था। तमाम सरकारी संस्थाओं से अनुमति के बाद बाहर के कारीगरों द्वारा पिच तैयार कराई गई, लेकिन आज तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने यहां खेल की पैरवी नहीं की। स्थिति यह है कि मौजूदा समय में इस पिच की मिट्टी उखड़ चुकी है। आज तक यहां राजकीय स्तर की प्रतियोगिता भी नहीं कराई गई।

अपने बूते प्रतिभा ने भरी उड़ान

जिले में खेल की सुविधा न होने के बाद भी कई प्रतिभाएं अपने स्तर से देश में नाम रोशन कर रही हैं। इनमें घिरोर निवासी पारितोष यादव भारतीय महिला क्रिकेट टीम तक पहुंच चुकी हैं। मैनपुरी के अमर पचौरी और पूजा भदौरिया वॉलीबाल में तथा पलक तिवारी बैडङ्क्षमटन में राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुकी हैं।

ये है खिलाडिय़ों की मुख्य मांगें

- शहर में ऐसे मैदान विकसित कराए जाएं जहां युवा प्रैक्टिस कर सकें।

- खिलाडिय़ों के लिए समय-समय पर कैंपों का आयोजन कराया जाए।

- महिला खिलाडिय़ों के लिए विशेष कोच और सुरक्षित स्थान के प्रबंध हों।

- जिले में भी राजकीय और राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन कराए जाएं।

सुरक्षा- सुविधा के अभाव से बन रही दूरी

यह सच है कि हमारे पास फिलहाल कोई कोच नहीं है। महिला खिलाड़ी सुरक्षा और सुविधा के अभाव में मैदान से दूरी बना रही हैं। यदि कोच की व्यवस्था कराई जाए तो खिलाडिय़ों को निखारने में भी कसर बाकी नहीं रहेगी।'

केपी सिंह, जिला क्रीड़ा अधिकारी। 


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