National Chambal Sanctuary: चंबल में बढ़ेगा कछुओं का कुनबा, नदी का आनंद लेते हुए सैलानियों को दिखेंगी दुर्लभ प्रजातियां
संकटापन्न प्रजाति के कछुओं के संरक्षण पर चंबल जीव विहार क्षेत्र में काम चल रहा है। सात प्रजातियों के कछुओं के अंडों को निगरानी और हैचिंग के बाद शिशु होने पर नदी में छोड़ दिए जाएगे। चंबल में घड़ियाल मगरमच्छ का भी संरक्षण चल रहा है।
आगरा, सतेंद्र दुबे। चंबल नदी के क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के संकटापन्न स्थिति में पहुंचे कछुओं का कुनबा बढ़ाने की तैयारी चल रही है। वन विभाग इस काम में लगा हुआ है। कई सालों से चल रही वन विभाग की संरक्षण की पहल रंग ला रही है। आने वाले दिनों में चंबल नदी में कछुओं का विचित्र संसार भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होगा। चंबल नदी के आस-पास के इलाकों में कछुओं के अंडों की निगरानी हो रही है। हैचिंग की वन विभाग ने तैयारी पूरी कर ली है।
तस्करों के जाल से बचाएंगे
कछुओं के मांस की मांग विदेशों में तक है। इसकी खाल का इस्तेमाल दवाओं के उत्पादन में किया जाता है। नतीजतन नदियों में पाई जाने वाली प्रजाति तस्करों की निगाह से नहीं बच सकी। गांव के तालाबों तक तस्करों के हाथ पहुंच गए। नेस्टिंग के बाद अब इनकी हैचिंग की तैयारी में वन विभाग लगा हुआ है। जल्द ही नदी में कछुओं की सात प्रजातियों के शिशु नदी में पहुंचेंगे।
जीव जंतु विशेषज्ञ सतेंद्र शर्मा ने बताया संकटापन्न प्रजाति के कछुओं के संरक्षण पर चंबल जीव विहार क्षेत्र में चल रहा है। चंबल में सात प्रजातियों के अंडों को निगरानी के बाद हैचिंग के बाद शिशु नदी में छोड़ दिए जाएगे। चंबल नदी में घड़ियाल, मगरमच्छ की तर्ज पर कछुओं की तरह ही संरक्षण चल रहा है।
चंबल में मौजूद हैं ये सात प्रजाति
चंबल जीव विहार का क्षेत्र राजस्थान के रेहा बार्डर से पचनदा इटावा तक है। इस पूरे क्षेत्र में चल रही परियोजना के तहत नदी में धमौका, धोंड, साल, पचेडा, कटहेवा, इंडियन स्टार, सुंदरी प्रजाति के कछुए शामिल हैं। इनमें सुंदरी प्रजाति की कीमत लाखों में है। इसके पीछे वजह तंत्र-मंत्र के बाजार में इसकी जबरदस्त मांग होना बताते हैं। 20 नाखून वाले कछुआ की कीमत भी अधिक है।
घड़ियाल, मगरमच्छ के अंडों की निगरानी
जून माह से घड़ियाल व मगरमच्छ की होने वाली हैचिंग के लिए भी वन विभाग पूरी तरह से सजग है। मादा घड़ियाल एक बार में 20 से 40 अंडे देती है। मादा मगरमच्छ 40 से 70 अंडे तक देती है। 70 से 90 दिन में अंडों से बच्चे निकलने शुरू हो जाते हैं। अंडों से सर-सर की आवाज आने पर मादा घड़ियाल व मगरमच्छ, अंडे को पानी की ओर नदी में ले जाती है। वनकर्मियों की मानें तो शिशु तीन माह तक बिना खाए जीवित रह सकता है। इनके पेट में तीन माह का पोषण होता है। एक ही घोंसले से नर और मादा बच्चे निकलते हैं।