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Navratra Special: घट स्‍थापना से करें मां आदिशक्ति का आहवान, जानें कैसा रहेगा नववर्ष

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 6 अप्रैल शनिवार से नव संवत्सर विक्रम संवत 2076 और शालिवाहन शक संवत 1941 प्रारंभ हो रहा है। नव संवत्सर का राजा शनि और मंत्री सूर्य होगा।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 06:14 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 06:14 PM (IST)
Navratra Special: घट स्‍थापना से करें मां आदिशक्ति का आहवान, जानें कैसा रहेगा नववर्ष

आगरा, जेएनएन। शनिवार से शुरु हो रहे चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना के लिए शास्त्रों में खास विधान का प्रावधान है। ज्‍योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार कलश स्‍थापना के लिए सबसे पहले कलश बिठाने वाले को मंत्र से स्वयं को और पूजन सामग्रियों को पवित्र कर लेना चाहिए। इस के लिए इस मंत्र का इस्तेमाल करना चाहिए –

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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।

यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

मंत्र से स्वयं तथा पूजन सामग्री को शुद्ध कर लेने के बाद दाएं हाथ में अक्षत, फूल औऱ जल लेकर दुर्गा पूजन का संकल्प करें। इसके बाद माता की तस्वीर या प्रतिमा के सामने कलश मिट्टी के ऊपर रखकर हाथ में अक्षत, फूल और गंगाजल लेकर वरुण देव का आह्वान करें और कलश में सर्वऔषधि तथा पंचरत्न डालें। कलश के नीचे की मिट्टी में सात धान और सप्तमृत्तिका मिलाएं। अब आम के पत्ते कलश में डालें और कलश के ऊपर अनाजों से भरा एक पात्र रखें। इस पात्र के ऊपर एक दीप जलाकर रख दें। कलश में पंचपल्लव डालकर इसके ऊपर एक पानी वाला नारियल रखें जिस पर लाल रंग का वस्त्र लपेटें। इसके बाद कलश के नीचे की मिट्टी में जौ के दाने फैला दें और इस मंत्र का जाप करते हुए देवी का ध्यान करें-

खड्गं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:,

शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम।

नीलाश्मद्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम,

यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥

पहले नवरात्र की आराध्‍या देवी हैं मां शैलपुत्री

ज्‍योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।

मां दुर्गा के स्वरूप शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचें लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केसर से शं लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है-

ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड दें। इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। यह जप कम से कम 108 होना चाहिए।

मंत्र - ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से आरती कीर्तन करें।

स्रोत पाठ

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।

सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।

मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्।

इस वर्ष के राजा शनि, कर सकते हैं बारिश को परेशान

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 6 अप्रैल शनिवार से नव संवत्सर विक्रम संवत 2076 और शालिवाहन शक संवत 1941 प्रारंभ हो रहा है। आचार्य राजेंद्र मिश्र के अनुसार, चैत्रीय चंद्रवर्षारंभ में रूद्रविंशति के तहत परिधावी नामक संवत्सर प्रारंभ होगा। नव संवत्सर का राजा शनि और मंत्री सूर्य होगा। राजा शनि होने के कारण यह वर्ष भारी उठापटक वाला रहेगा। शनि न्यायाधिपति भी हैं इसलिए इस साल केवल वे ही लोग मौज में रहेंगे जो सत्य के मार्ग पर चलेंगे, दूसरों का अहित नहीं करेंगे और सदैव न्याय प्रिय बातें और सद्व्यवहार करेंगे। बुरे कर्म, किसी के साथ धोखा, स्त्रियों का अपमान, अत्याचार, चोरी और पापकर्म करने वाले लोगों को इस साल शनिदेव बिलकुल भी नहीं बख्शेंगे। इस साल बारिश को लेकर परेशानी भी दिख सकती है। 


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