Holi in Braj: फागुनी रंगों से सराबोर हो इस मुगल बादशाह ने रच दिए थे होली के पद, आज भी हैं संरक्षित Agra News
मुगल बादशाह शाह आलम सानी ने रचे होली के पद। ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में संरक्षित हैं पद।
आगरा, विपिन पाराशर। ब्रज की होली। वसंत पंचमी से शुरू हुआ होली का उल्लास चरम की ओर बढ़ रहा है। जिस ब्रज होली की पूरी दुनिया दीवानी है, वह मुगल शासकों को भी खूब भाई। ब्रज की होली ने हिंदू और मुस्लिम के बीच भाईचारे का संदेश भी दिया। यही कारण रहा कि दिल्ली के मुगल बादशाह शाह आलम सानी ने होली के पद रचे। उनके कुछ पद ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में भी संरक्षित हैं।
शाह आलम सानी जितने अच्छे उर्दू के शायर थे। उतनी ही पकड़ फारसी, पंजाबी पर उर्दू की शायरी पर थी, इनके द्वारा रचित उर्दू-फारसी के पद तो कई पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं, लेकिन हिंदी के सभी पद रामपुर रजा लाइब्रेरी में संरक्षित हैं। इन्हीं में से कुछ पदों को ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में संरक्षित रखा गया है। नादिराते शाही नाम की पुस्तक में शाह आलम सानी के हिंदी में रचित पदों में संग्रहीत किया गया है। इसमें शाह आलम के द्वारा होली पर रचित 60 पद हैं।
शाह आलम का होली काव्य
शाह आलम ने अपनी होली काव्य रचनाओं में होली का सुंदर वर्णन किया है। वसंत का वर्णन करते हुए वह लिखते हैं,
केसर रंग में चीर चुने और भाल में लाल गुलाल बसंत है।
फूलीं हैं बेली नवेली सबे और गाए बजाए सबे हसंत है।
ब्रज की होली ने मुगल बादशाहों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। शाह आलम गोपियों का कृष्ण के साथ होली खेलने का वर्णन कर लिखते हैं,
होरी खेलन आई सबे मिल अपने कांत सूं सांवरी गोरी।
हाथ भरी पिचकारी है रंग की अबीर-गुलाल लिए भर झोरी।।
शाह आलम को होली के रंगों से कितना लगाव था। यह उनकी कविता में स्पष्ट होता है। वह लिखते हैं कि
आज रंग खेले आई सकल ब्रज की नारी।
चोबा, चंदन, अबीर, गुलाल और पिचकारी रंगभारी।।
कई मुगल बादशाह रहे हैं होली के प्रेमी
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शर्मा बताते हैं बादशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहां, शाहआलम, मोहम्मद शाह रंगीला आदि मुगल बादशाह भारतीय उत्सवों के प्रशंसक थे। इनके समय मे हिंदुओं के प्रमुख त्योहार होली, दीवाली, वसंत उत्साह के साथ मनाए जाते थे। इनके प्रामाणिक संदर्भ संस्थान में संग्रहीत हैं। इतिहासकारों ने भी इस संदर्भ में लिखा है।