'पद्मश्री' मिलने पर गोवंश की 'मदर टेरेसा' बोलीं 'थैंक्यू जागरण'
ब्रजभूमि के रमेश बाबा और सुदेवी को मिला है यह सम्मान। राधाकुंड में सुरभि गोशाला खोल बीमार असहाय गोवंश की सेवा करती हैं जर्मन महिला फ्रेडरिक इरिन ब्रूमिंग उर्फ सुदेवी।
आगरा, रसिक शर्मा। जर्मन गोभक्त फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी और रमेश बाबा को पद्मश्री से सम्मानित होने की घोषणा पर ब्रजभूमि गौरवान्वित है। राधाकुंड में 42 वर्षों से बीमार और असहाय गोवंश की सेवा में जुटी सुदेवी को गोवंश की मदर टेरेसा भी कहा जाता है। उनकी सुरभि गोशाला में करीब 1200 गोवंश हैं, जिनमें से अधिकांश अपाहिज, नेत्रहीन और गंभीर रूप से बीमार हैं। सुदेवी ने बताया कि जब उन्हें मंत्रालय से फोन आया तो उनकी समझ नहीं आया। फिर दैनिक जागरण कार्यालय ने उन्हें सम्मान की जानकारी दी। सेवा में सहयोग और प्रचार प्रसार से इस मुकाम के लिए दैनिक जागरण को थैंक्यू बोला। राधाकुंड वासियों ने माला पहनाकर उनका भव्य स्वागत किया। सुदेवी ने गोवंश की सेवा करते करते प्राण त्याग करने की अपनी अंतिम इच्छा बताई।
जर्मनी से 42 वर्ष पहले यहां भ्रमण को आईं एक जर्मनी की युवती ने भी ब्रज में कदम रखे तो भक्ति में बंध गईं। पहले कान्हा के प्रति प्रेम उमड़ा फिर उनकी प्रिय गायों के प्रति आत्मीयता जाग उठी। बस तभी से जर्मन माता-पिता की इकलौती संतान फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग गोवंश की 'मदर टेरेसा' बन सेवा कर रही हैं। 42 वर्ष से घायल गायों की सेवा के दौरान नाम भी बदल गया। अब उन्हे सुदेवी नाम से पहचाना जाता है।
सुदेवी बर्लिन (जर्मनी) से भारत भ्रमण पर आई थीं। इस दौरान ब्रज घूम रही थीं, तो उन्हें कृष्ण की हर बात प्रभावित करने लगी। यहां की मिंट्टी में अलग अपनापन महसूस हुआ। वह गोवर्धन पहुंचीं तो राधाकुंड गईं। यहां तीन कोड़ी गोस्वामी से दीक्षा प्राप्त कर ली। श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन सुदेवी ने ब्रजवास में एक गाय रख ली। यह अचानक बीमार हुई, तो उसकी सेवा में जुट गईं। इसके बाद तो जहां भी बीमार गाय देखतीं, उसकी सेवा में जुट जातीं। सेवा के पुष्प खिलाते- खिलाते वो सेवा की बगिया की बागबां बन गईं। उन्होंने कोन्हई रोड पर करीब पांच बीघा भूमि पर 'सुरभि' गोशाला की स्थापना की और बीमार, अपाहिज गायों की सेवा के लिए उसने अपना जीवन समर्पित कर दिया। सुदेवी के पिता करीब तीस वर्ष पहले तक दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास में कार्यरत थे। इकलौती संतान होने के कारण पिता की तरफ से मिलने वाले खर्च को गो सेवा में उपयोग करती रहीं।
गोशाला में 1200 गोवंश
गोशाला में करीब 1200 गोवंश हैं। इनमें से करीब 52 गोवंश नेत्रहीन हैं। करीब 350 गोवंश पैरों से अपाहिज हैं। इनके पैरों पर नियमित रूप से मरहम-पट्टी की जाती है। करीब दो दर्जन गंभीर रूप से बीमार हैं, मगर उनकी सेवा-सुश्रुषा में कोई कमी नहीं रखी जाती। गोशाला की एंबुलेंस भी है।
बछड़ों को भरपूर दूध
गोमाता के दूध को सुदेवी अपने निजी कार्य में नहीं लेतीं। बछड़े से बचे हुए दूध को अन्य अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है। वह अपने प्रयोग के लिए बाजार से दूध मंगाती हैं।
प्रभु संकीर्तन में अंतिम पड़ाव
गोवंश का अंतिम समय आने पर सुदेवी पूरे वातावरण को धार्मिक बना देती हैं। गोवंश जिंदगी बचने की संभावना नगण्य प्रतीत होती हैं, तो सुदेवी गोवंश को गंगाजल, राधाकुंड का जल, भगवान का चरणामृत पिलाती हैं। समीप हरे कृष्ण-हरे राम की धुन बजती है। मृत्यु उपरांत गोवंश का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।
दैनिक जागरण का सहयोग
सुरभि गोशाला में बीमार गोवंश की सेवा करती सुदेवी का प्रचार प्रसार दैनिक जागरण ने किया। सबसे पहले 8 नवंबर 2016 को 'गोवंश की मदर टेरेसा है जर्मन की सुदेवी' शीर्षक से तो 16 सितंबर 2017 को 'गोरक्षकों के लिए नजीर है हजार बछड़ों की मां' के शीर्षक से खबरे प्रकाशित हुई। पिछले वर्ष दिसंबर में उनके वीजा की अवधि समाप्त होने की स्थिति में गोवंश के पालन की चिंता ने सुदेवी का दर्द बढ़ा दिया था। इस परिस्थिति में सहायता कर सेवा का एक्सटेंशन बढवाने में मदद की।
थैंक्यू जागरण
अपनी अंतिम सांस तक ब्रजभूमि में रहकर गोवंश की सेवा करना चाहती हूं। वीजा की अवधि बढ़ाने में दिक्कत आती है। भारत ने मुझे सम्मानित किया इसके लिए आभारी हूं। सेवाकार्य में दैनिक जागरण के सहयोग को थैंक्यू।
- फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी