दमा की दवा में मिलती है यहां दुआ भी, शरद पूर्णिमा है बहुत खास
47 वर्षों से गुरुद्वारा गुरु का ताल में वितरित की जा रही दवा। आयुर्वेदिक दवा मिली कई कुंतल खीर का हजारों मरीजों में होता है वितरण।
आगरा [तनुु गुुुुप्ता] : शरद पूर्णिमा का विशेष दिन, जब 16 कलाओं से पूर्ण चंद्रमा अपनी शीतल चांदनी से धरा के हर कण को सरोबार करता है। जब चंद्र की हर किरण में प्रकृति के सभी गुणों का वास होता है। बुधवार को शरद का पूर्ण चंद्र जब अपने विविध गुणों से परिपूर्ण होकर उदित होगा तो हजारों रोगियों को उनके कष्टों से मुक्ति भी देगा। प्रकृति और विज्ञान से पूरिपूर्ण इस विशेष दिन पर आगरा के गुरुद्वारा गुरु का ताल पर हजारों की संख्या में दमा के रोगी आएंगे और जीवन को तकलीफ देने वाली बीमारी से राहत पाएंगे।
जी हां, सिखों के नौंवे गुरु गुरु तेग बहादुर साहिब के ऐतिहासिक स्थान गुरुद्वारा श्री दुख निवारण साहिब गुरु का ताल पर बुधवार को एक बार फिर दमा, श्वांस एलर्जी के हजारों मरीजों को दवा आ निश्शुल्क वितरण किया जाएगा।
1971 में हुई थी निश्शुल्क सेवा की शुरूआत
गुरुद्वारा प्रबंधक संत बाबा प्रीतम सिंह के अनुसार गुरुद्वारा का इतिहास करीब साढ़े चार सौ साल पुराना है। एतिहासिक पवित्र स्थल पर 1971 में महाराष्ट्र से संंत साधु सिंह मौनी बाबा आए थे। आयुर्वेदिक औषधियों के ज्ञाता संत साधु सिंह मौनी बाबा ने यहां आने वाले दमा के रोगियों को शरद पूर्णिमा के दिन दवा का वितरण शुरू किया था। शुरूआत में यहां दस से बीस मरीज ही आते थे लेकिन समय के साथ दवा के असर का प्रचार ऐसा हुआ कि वर्तमान में विभिन्न राज्यों के हजारों लोग यहां हर वर्ष आते हैं।
गाय का दूध का चावल बन जाते हैं चमत्कारी
बाबा प्रीतम सिंह बताते हैं कि दवा वितरण में शुद्धता और परहेज दोनों का विशेष ध्यान रखा जाता है। गुरुद्वारा परिसर स्थित गऊशाला की गायों के तीन कुंतल दूध से 50 किलो चावलों की खीर तैयार की जाती है। इसकी विशेषता होती है कि खीर फीकी होती है और चावल दूध की तुलना में कम ही होते हैं। खीर में मिलाए जाने वाली आयुर्वेदिक दवा को कई दिन पूर्व से सूखा कर तैयार किया जाता है। शरद पूर्णिमा पर आने वाले मरीजों को मिट्टी के सकोरे और लकड़ी की चम्मच दी जाती है। जब खीर मरीजों को बांटी जाती है तो उसे वे चम्मच की सहायता से मिलाते जाते हैं।
शरद के चांद से होती है अमृत वर्षा
बुधवार को शाम छह बजे से रात नौ बजे तक दवा का वितरण होगा। इससे पूर्व मरीज को दोपहर दो बजे बाद चाय या तरल पदार्थ लेने की ही सलाह दी जाती है। नौ बजे के बाद रातभर मरीज खीर को चंद्रमा की रोशनी में लेकर बैठते हैं। अन्य शहरों से आने वाले मरीजों के लिए गुरुद्वारा में ही रुकने का प्रबंध किया जाता है। सुबह चार बजे मरीजों को खीर खिलाई जाती है। इसके बाद एक घंटा टहलने की सलाह दी जाती है। गुरुद्वारा में ही बने मूली की भुजिया और रूखी रोटी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। मूली की भुजिया में सिर्फ जीरे का छौंक और हल्दी ही डाली जाती है।
परहेज का होता है विशेष महत्व
बाबा प्रीतम सिंह बताते हैं कि दवा लेने वाले मरीज के लिए 40 दिन का परहेज बताया जाता है, जिसमें उन्हें बादी वाली चीजों का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। साथ ही तली हुए गरिष्ठ भोजन, चाय और गरम मसाले का परहेज भी बताया जाता है। वहीं दवा तीन वर्षों तक लेने से रोग हमेशा के लिए दूर हो जाता है।
50 सेवादार करेंगे दवा का वितरण
समाजसेवी बंटी ग्रोवर के अनुसार शरद पूर्णिमा पर दवा वितरण में 50 सेवादारों का सहयोग रहता है। मरीज कई दिन पहले से बुकिंग करवाई शुरू कर देते हैं।