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पीएम के नाम मथुरा नगरी की पाती: मैं मथुरा, मेरा भी उद्धार करें मोदी जी Agra News

मेरी रज माथे से लगा मुक्ति पाते श्रद्धालु मैं खुद मुक्ति को तरसी। आंखों में फिर से सज गईं विकास की उम्मीदें।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 11 Sep 2019 08:53 AM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 08:53 AM (IST)
पीएम के नाम मथुरा नगरी की पाती: मैं मथुरा, मेरा भी उद्धार करें मोदी जी Agra News
पीएम के नाम मथुरा नगरी की पाती: मैं मथुरा, मेरा भी उद्धार करें मोदी जी Agra News

आगरा, विनीत मिश्र। मैं मथुरा हूं। तीन लोक से न्यारी। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की अनगिनत लीलाओं की गवाह। मान्यता है कि मेरी रज माथे से लगाने से मुक्ति मिलती है, लेकिन मैं खुद मुक्ति को तरस रही हूं। उद्धार की उम्मीदें हर बार उमंग लेती हैं और फिर टूट जाती हैं। एक बार फिर आंखों में विकास की आस जगी है।

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प्रधानमंत्री जी, जब से सुना है, आप मेरे आंगन में आ रहे हैं, मेरी आंखें खुशी से चमक रही हैं। मैं आपको बताना चाहती हूं कि हमने सबको अपनी पलकों पर बैठाया है, लेकिन किसी ने मेरी पीड़ा समझने, उसे दूर करने की जहमत नहीं उठाई। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली से लेकर उनकी लीला स्थलों का दर्शन कर खुद को धन्य मानने वाले श्रद्धालु मेरे हाल पर तरस खाते हैं। यकीन मानिए, तब मुझे बहुत पीड़ा होती है। मोदी जी, मुझे आज भी वह दिन याद है, जब काङ्क्षलदी की कलकल को स्वच्छ और निर्मल करने के लिए घोषणाएं की गईं, न केवल लाखों ब्रजवासी बल्कि खुद मैं खुशी से फूली नहीं समाई। लगा कोई तो है, जो मेरी दुर्दशा दूर करने को व्याकुल है। नमामि गंगे योजना शुरू हुई, लेकिन दुख इस बात का है कि मेरे भूभाग में फैले 21 गंदे नाले आज भी यमुना में गिरते हैं, जो तकलीफ होती है, वह बयां नहीं कर सकती। जब से आप प्रधानमंत्री बने, दो बार पहले भी आप मेरे आंगन में आए। मुझे याद है जब केंद्र में आपकी सरकार को बने महज एक वर्ष हुआ था, तो आप फरह आए थे, उन दीनदयाल उपाध्याय को नमन करने, जो संघ और जनसंघ की नींव थे। तब भी आपसे काफी उम्मीदें थीं। लेकिन ये सोचकर चुप हो गई कि शायद आपकी कोई मजबूरी रही होगी। इसी बरस जब आप फरवरी में वृंदावन में अक्षय पात्र के कार्यक्रम में 300करोड़वीं थाली परोसने आए थे, ये उम्मीदें तब भी जवां हुईं, लेकिन फिर टूट गईं।

बुधवार को आप फिर आ रहे हैं, तो मेरी आंखों में सपने फिर ठिठके हैं। इस उम्मीद में कि शायद मेरा भी कुछ उद्धार हो जाए। मेरी आपसे एक विनती है। एनजीटी के फेर में फंसकर जैसे मेरा विकास रुक सा गया है। यमुना की सिसकन और बढ़ गई। जिस यमुना की कहानी खुद लीलाधर से जुड़ी है, उसके उत्थान को गंभीर प्रयास करने होंगे। मोदी जी, पाबंदियों में जकड़े उद्योग भी दम तोड़ रहे हैं, उन्हें भी आपसे संजीवनी की उम्मीद है। वैष्णो देवी की तरह एक श्राइन बोर्ड बनाने की मांग भी मेरे अपने उठाते रहे हैं, मेरे साथ वह भी आपकी ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। मुझे पूरा यकीन है कि आप मेरे लिए भी कुछ न कुछ जरूर सोचेंगे और बोलेंगे। मंगलवार का पूरा दिन मैं बेकरार रही, रात भी जैसे-तैसे काटी। बुधवार को आपके भाषण में अपने उद्धार का ऐलान सुनने को व्याकुल रहूंगी। शायद, मेरी उम्मीदों को इस बार पंख मिल जाएं।

योगेश्वर की नगरी में आपका एक बार फिर स्वागत है, राधे-राधे। 


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