मानसिक आरोग्यशाला में 21 माह से गुमनाम थी सीता, अब पूरा हुआ वनवास
मधुबनी (बिहार) की महिला 19 सितंबर 2016 में हुई थी लापता। तलाश में 20 शहरों की खाक छान चुके थे परिजन नोएडा पुलिस ने भेजा था यहां।
आगरा, जागरण संवाददाता। मानसिक आरोग्यशाला संस्थान में नोएडा पुलिस द्वारा लाई सीता 21 महीने से गुमनाम जिंदगी जी रही थी। उसने यहीं पर बेटे को जन्म दिया, जो दुनिया में आते ही उससे होकर शिशु गृह पहुंचा दिया गया। उधर, उसके लापता होने के बाद तलाश में 20 शहरों की खाक छान चुके परिजन भी सीता के मिलने की उम्मीद खो बैठे थे। सामाजिक कार्यकर्ता ने अपने प्रयासों से बुधवार को बेटी को सामने देख परिजनों की आंखों में आंसू छलक उठे। वह बहन से लिपटकर रोने लगी।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में 29 जून 2017 को गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने सीता नाम की महिला को लावारिस हालत में भर्ती कराया था। कुछ समय बाद ही सीता ने यहां एक बेटे को जन्म दिया। शिशु को राजकीय शिशु गृह में भर्ती करा दिया। बाल अधिकार कार्यकर्ता और महफूज सुरक्षित बचपन के समन्वयक नरेश पारस को बच्चे की मां के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में होने की जानकारी मिली। उन्होंने सीता से मुलाकात की। काउंसिलिंग में उसने खुद को बिहार के मधुबनी जिले का बताया। नरेश पारस ने उसके परिवार को खोजने के लिए सोशल मीडिया समेत विभिन्न माध्यमों का सहारा लिया।
एक सप्ताह पहले सीता के भाई कामेश्वर दास और चचेरे भाई घूरन दास से नरेश पारस ने संपर्क किया। बुधवार को आगरा पहुंचे परिजनों को बुलाकर सीजेएम के आदेश पर सीता और उसके बच्चे आयुष को परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया। कामेश्वर दास ने बताया सीता मानसिक रूप से कमजोर है। वह 19 सितंबर 2016 को घर से लापता हो गई थी। वह पटना, दरभंगा, अंबाला, दिल्ली, हरिद्वार समेत 20 से ज्यादा शहरों की खाक उसकी तलाश में छान चुके थे।
मां की गोद में आते ही चहक उठा मासूम
जन्म देने के बाद ही बेटे को सीता से अलग कर दिया गया था। इसके चलते वह मां को नहीं पहचानता था। बुधवार को सीता को लेने से पहले परिजन मासूम को शिशु गृह से लेने पहुंचे। उसे लेकर मानसिक स्वास्थ्य संस्थान पहुंचे। मासूम को देखकर मां ने जैसे ही उसे लेने को हाथ फैलाए, वह गोद में आ गया। मां का आंचल पाते ही वह चहक उठा। उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर खेलने लगा। सवा साल बाद बेटे को गोद में लेकर उसकी मां भी खुश थी।
सीता को मृत मान पति ने कर ली दूसरी शादी
सीता का पहला पति उसे छोड़कर चला गया था। इसके बाद परिजनों ने सहदेव से उसकी शादी करा दी। करीब तीन साल से सीता का कोई सुराग नहीं लगने के बाद सहदेव ने उसे मृत मान लिया। उसने दूसरी शादी कर ली। कुछ दिन पहले जब परिजनों के माध्यम से उसे सीता के जीवित होने का पता चला तो पसोपेश में पड़ गया।
मधुबनी के डाकघर ने निभाई अहम भूमिका
सीता के परिजनों का पता लगाने में मधुबनी जिले के डाक विभाग ने अहम भूमिका निभाई। वहां के अधीक्षक ने नरेश पारस द्वारा भेजे गए मैसेज को गंभीरता से लिया। उन्होंने सीता संबंधी मैसेज को जिले के सभी डाकघरों में भिजवाया। डाकियों को उसका पता खोजने के निर्देश दिए। करीब एक महीने की मशक्कत के बाद डाक विभाग द्वारा सीता के घर को तलाश लिया गया।