Sheetala Ashtmi 2020: माता शीतला को समर्पित है ये वैज्ञानिक पर्व, पूजा का ये है आधार
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार मौसम परिवर्तन का सबसे बड़ा है दिन।
आगरा, तनु गुप्ता। फाल्गुन मास का अंतिम त्योहार शीतला अष्टमी। मौसम परिवर्तन का यह त्योहार प्रतीक है कि अब शीत से ग्रीष्म की ओर जाने का समय आ चुका है। इस दिन होने वाली पूजा अर्चना भी इसी परिवर्तन को दर्शाती है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी- अष्टमी को शीतला माता का यह त्योहार मनाया जाता है। यही तिथि मुख्य मानी गई है। किंतु स्कन्दपुराण के अनुसार इस व्रत को चार महीनों में करने का विधान है। इस मौसम में संक्रमण की सर्वाधित संभावनाएं होती हैं। ऐसे में रोगों से बचने के लिए साफ सफाई, शीतल जल और एंटीबायोटिक गुणों से युक्त नीम का प्रयोग करना चाहिए। चूंकि इस व्रत पर एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है अतः इस व्रत को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। शीतला को चेचक नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बासी भोजन खाने का अर्थ ये है कि इसके बाद बासी भोजन का प्रयोग बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। वैज्ञानिक तौर पर देखें तो गर्मी बढ़ने के कारण बासी भोजन के खराब होने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए इसका प्रयोग अब नहीं करना चाहिए।
शुभ तिथि और मुहूर्त
शीतला सप्तमी रविवार, मार्च 15, 2020 को
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त - प्रात: 06:35 से शाम 06:36
अवधि - 12 घंटे 01 मिनट
शीतला अष्टमी सोमवार, मार्च 16, 2020 को
सप्तमी तिथि प्रारंभ - मार्च 15, 2020 को 04:25
सप्तमी तिथि समाप्त - मार्च 16, 2020 को 03:19
कैसा है मां शीतला का स्वरूप और परंपरा
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि शीतला मां का रूवरूप अत्यंत शीतल है और रोगों को हरने वाला है। इनका वाहन गधा है। और इनके हाथ में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है। बसोड़ा की परंपरा के अनुसार इस दिन भोजन पकाने के लिए अग्नि नहीं जलाई जाती। इसलिए अधिकतर परिवार में महिलाएं शीतला अष्टमी के एक दिन पहले ही भोजन पका लेती हैं और बसोड़ा वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी बासी भोजन का सेवन करते हैं। माना जाता है मां शीतला का पूजन करने से चेचक, खबरा जैसी बीमारियां नहीं होतीं।
कैसे करें यह व्रत
शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत केवल चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को होता है। इस दिन व्रती को प्रातःकालीन कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए।
स्नान के पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लेना चाहिए -
मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन
पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये'
संकल्प के पश्चात विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें। इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं। यदि आप चतुर्मासी व्रत कर रहे हो तो भोग में माह के अनुसार भोग लगाएं। जैसे- चैत्र में शीतल पदार्थ, वैशाख में घी और शर्करा से युक्त सत्तू, ज्येष्ठ में एक दिन पूर्व बनाए गए पूए तथा आषाढ़ में घी और शक्कर मिली हुई खीर। तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ करें और शीतला अष्टमी की कथा सुनें। रात्रि में जगराता करें और दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करें।
नोट : इस दिन व्रती को चाहिए कि वह स्वयं तथा परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी प्रकार के गरम पदार्थ का सेवन न करें। इस व्रत के लिए एक दिन पूर्व ही भोजन बनाकर रख लें तथा उसे ही ग्रहण करें।