Holi Special: आठ दिनों तक नहीं होंगेे शुभ कार्य, धर्म ही नहीं विज्ञान भी मानता है ये प्रथा Agra News
धर्म वैज्ञानिक डॉ जे जोशी और पंडित वैभव जोशी ने बताई होलिका अष्टम से जुड़ीं विशेष बातें।
आगरा, तनु गुप्ता। रंगों का उल्लास लिये होली का पर्व आ चुका है। नौ मार्च को होलिका दहन और दस मार्च धूलेड़ी की सूचना मंगलवार को होलिका अष्टक के रूप मे मिल चुकी है। लोक मान्यता है कि होलिका अष्टक लगने के बाद कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जा सकते। न ही नवविवाहिताएं मायके से ससुराल अथवा ससुराल से मायके ही जा सकती हैं। सदियों से इस मान्यता को ये समझ कर मानते आए हैं कि होलिका अष्टक के बाद शुभ कार्य करने से होलिका देवी नाराज हो जाएंगी। इस मान्यता के पीछे छुपे मर्म को धर्म विज्ञान शोध संस्थान उज्जैन द्वारा समझा गया है। आगरा आए संस्थान के अध्यक्ष डॉ जे जोशी और पंडित वैभव जोशी से जागरण डॉट कॉम ने होलिका अष्टक पर हुए शोध के बारे में जानकारी ली। डॉ जे जोशी ने बताया कि होलाष्टक के शाब्दिक अर्थ पर जाएं, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन। होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है। इन दिनों वातावरण में बैक्टीरिया वायरस अधिक सक्रिय होते हैं। सर्दी से गर्मी की ओर जाते इस मौसम में शरीर पर सूर्य की पराबैगनी किरणें विपरीत प्रभाव डालती हैं। ये दिन संकेत देते हैं कि स्िट्रक फलाें का सेवन अधिक करना चाहिए। अधिक गर्म पदार्थों का सेवन कम कर देना चाहिए। होलिका दहन पर जो अग्नि निकलती है वो शरीर के साथ साथ आसपास के बैक्टीरिया और नकारात्मक ऊर्जा काेे समाप्त कर देता है।
मौसम के साथ शरीर में भी होते हैं परिवर्तन
डॉ जे जोशी के अनुसार मौसम में बदलाव के साथ शरीर मेंं हार्मोंस और एंजाइम्स में भी परिवर्तन होते हैं। दिमाग, सेक्सुअल हार्मोंस, हार्ट, लीवर आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। होली पूर्व के ये आठ दिन संकेत देते हैं कि जीवनचर्या में बदलाव कर लिया जाया।
होलाष्टक में ये कार्य रहते हैं निषेध
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
क्या है धार्मिक मान्यता
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी ने होलिका अष्टक का धार्मिक पहलू की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश करने पर भोलेनाथ से कामदेव को फाल्गुन महीने की अष्टमी को भस्म कर दिया था। प्रेम के देवता कामदेव के भस्म होते ही पूरे संसार में शोक की लहर फैल गई थी। तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना की और भोलेनाथ ने कामदेव को फिर से जीवित करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने रंग खेलकर खुशी मनाई थी। कुछ ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि होली के आठ दिन पहले से प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने काफी यातनाएं देना शुरू कर दिया था। आठवें दिन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठाकर मारने का प्रयास किया गया था लेकिन आग में ना जलने का वारदान पाने वाली होलिका जल गई थी और बालक प्रह्लाद बच गया था। ईश्वर भक्त प्रह्लाद के यातना भरे आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए कोई भी शुभ काम ना करने की परंपरा है।