Karwa chauth: इस नक्षत्र से बन रहा है सुहाग पर्व विशेष, जानिये व्रत के नियम भी Agra News
17 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से रोहिणी नक्षत्र लग जायेगा। यह नक्षत्र सुहाग के लिए विशेष होता है।
आगरा, जागरण संवाददाता। सिंदूर का पर्व, चिर सुहाग की कामना का पर्व करवा चौथ हर सुहागिन के लिए विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष इस विशेषता का महत्व और भी अधिक एक नक्षत्र के होने से बढ़ रहा है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार 17 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से रोहिणी नक्षत्र लग जायेगा। यह नक्षत्र सुहाग के लिए विशेष होता है। रोहिणी नक्षत्र के स्वामी स्वयं चंद्रमा हैं। सनातन धर्म के अनुसार यह योग करवाचौथ पर होना सुहागिनों के लिए मंगलकारी होता है। रोहिणी चंद्रमा की 27 पत्नियों में सबसे प्रिय पत्नी हैं। इस तरह का योग श्री कृष्ण और सत्यभामा के मिलन के समय भी बना था।
करवाचौथ व्रत के नियम
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि सौभाग्य कामना के इस व्रत का नियम अन्य व्रतों से भिन्न होते हैं। यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है। शाम के समय चंद्रोदय से एक घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है। पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ मुख करके बैठना चाहिए।
क्या है सरगी की परंपरा
पंजाब में करवाचौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवाचौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएं श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म में महिलाएं एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।
अविवाहित स्त्रियां भी रखती हैं व्रत
करवाचौथ का त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है। साथ ही अच्छे वर की कामना से अविवाहिता स्त्रियों के करवा चौथ व्रत रखने की भी परम्परा है। यह पर्व पूरे उत्तर भारत में जोर-शोर से मनाया जाता है।
इस दिन भूलकर भी न करें यह काम
दिन घर में शांति और सौहार्द का वातावरण बनाए रखना चाहिए। पंडित वैभव जोशी सलाह देते हैं कि पारिवारिक कलह और द्वेष से बचें। पति-पत्नी को आपसी मनमुटाव से खासतौर पर बचना चाहिए। मान्यता है कि यदि पति-पत्नी इस तिथि में झगड़ते हैं तो पूरे साल ऐसी परिस्थितियां बनती रहती हैं जिनसे आपस में मनमुटाव होता रहता है।
करवा चौथ की व्रत कथा
करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला - व्रत तोड़ लो, चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इक_ा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुन: जीवित हो गया।
करवा चौथ व्रत की पूजा-विधि
पंडित वैभव के अनुसार सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। यह व्रत संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए।
संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें। पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे। चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएं साथ पूजा करें। पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएं। चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।
चन्द्र दर्शन और अर्घ्य देते में बोलें ये मंत्र
पति और स्वयं की सद्बुद्धि के लिए पूजन में पहले गायत्री मंत्र का जप किया जाता है।
भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।
इस मंत्र के बाद पति के उज्ज्वल भविष्य और दीर्घायु के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात। अब वैवाहिक जीवन मे प्रेम, सुख शांति और अमृत के लिए चन्द्र गायत्री मंत्र का जप करेंगे, फिर चन्द्र गायत्री मंन्त्र पढ़ते हुए अर्घ्य चांदी के लोटे या स्टील के लोटे या मिट्टी के लोटे जल चढ़ाएंगे। ये मंत्र है क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात।