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कोरोना संक्रमण के बाद एक बार जरूर आइए गोवर्धन, इन आठ जगहों पर साक्षात बसते हैं राधा- कृष्‍ण

श्रद्धा से गुलजार रहने वाला गोवर्धन आज करता है भक्तों का इंतजार। राधाकृष्ण की रहस्यमयी दिव्य लीलाओं का अद्भुत संग्रह है गोवर्धन पर्वत।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 12 Jul 2020 05:23 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jul 2020 05:23 PM (IST)
कोरोना संक्रमण के बाद एक बार जरूर आइए गोवर्धन, इन आठ जगहों पर साक्षात बसते हैं राधा- कृष्‍ण
कोरोना संक्रमण के बाद एक बार जरूर आइए गोवर्धन, इन आठ जगहों पर साक्षात बसते हैं राधा- कृष्‍ण

आगरा, रसिक शर्मा। गिरिराजजी यानी गोवर्धन पर्वत राधा कृष्ण की पुरातन लीलाओं का साक्षात प्रमाण है। भक्ति की चकाचौंध से हमेशा गुलजार रहने वाला परिक्रमा मार्ग, रात में भी दिन होने का एहसास कराता है। तपती धूप, रात का घना अंधेरा और बारिश भी भक्तों के कदमों की पदचाप रोकने का दुस्साहस नहीं जुटा पाई। वक्त का कोई भी ऐसा लम्हा नहीं था जिसमें वैभव और भक्ति का नजारा देखने को नहीं मिला। परन्तु कोरोना संक्रमण में गोवर्धन तलहटी भी सन्नाटे का सामना कर रही है, तो सूने रास्ते भक्तों का इंतजार करते नजर आते हैं। कोरोना खत्म हो जाए तो आप भी एक बार भक्ति के इस पर्वत के दर्शन करने जरूर आइए।

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धार्मिक इतिहास का गुणगान करता पर्वत श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है। पर्वतराज की नगरी के तीन प्रमुख मंदिर दानघाटी, मुकुट मुखारविंद और जतीपुरा मुखारविंद अद्वितीय सौंदर्य के साथ गिरिराजजी का यशोगान कर रहे हैं। आन्योर के समीप गिरिराज शिलाओं की गोद में बने लुकलुक दाऊजी मंदिर पर रहस्यमयी दिव्य चिन्ह बने हैं, जो कि राधाकृष्ण की उपस्थिति का अहसास करा रहे हैं। बालपन में भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज महाराज को ब्रज का देवता बताते हुये इंद्र की पूजा छुड़वा दी। इससे देवों के राजा इंद्र ने कुपित होकर मेघ मालाओं को ब्रज बहाने का आदेश दे दिया था। सात दिन और सात रात तक मूसलाधार बरसात हुई, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करके ब्रज को डूबने से बचा लिया। इंद्र कान्हा के शरणागत हो गये। उस समय इंद्र अपने साथ सुरभि गाय और ऐरावत हाथी और गोकर्ण घोड़ा साथ लाए। कान्हा माधुर्य रूप और तिरछी चितवन, मन मोहक मुस्कान देखकर गाय का मातृत्व जाग उठा, उसके थनों से दूध की धार निकलने लगी। दूध की धार के चिन्ह आज भी गिरिराज पर्वत ने सहेज कर रखे है। गोकर्ण घोड़ा और ऐरावत हाथी और सुरभि गाय के उतरने पर उनके पैरों के निशान शिलाओं में दिखाई पड़ते हैं। बाल सखाओं के साथ माखन मिश्री खाकर उंगलियों के बने निशान दर्शनीय बने हुये हैं। दाऊजी मंदिर में विराजमान गिरिराज शिला में शेर की आकृति दिखाई देती है। मान्यता के अनुसार, शेर के स्वरूप में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ विराजमान हैं। यहां के कुंड भी इतिहास और भक्ति का अद्वितीय संग्रह है। संतान प्राप्ति के लिए आस्थावान भक्त राधाकुंड में स्नान करने आते हैं।

मानसी गंगा

धार्मिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के आह्वान पर दीपावली के दिन गोवर्धन में गंगा प्रकट हुई। श्री कृष्ण के मन से प्रकट करने के कारण गंगा का नाम मानसी गंगा पड़ा। मान्यता है कि श्री कृष्ण द्वारा वृष रूप में आए राक्षस को मारने के पाप से बचने के लिए गंगा को प्रकट किया। यहां के घाटों का निर्माण जयपुर के नरेश राजा मानसिंह के पिता भगवान दास ने कराया।

गोविंद कुंड

धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव की जगह गिरिराजजी की पूजा कराई तो कुपित इंद्र ने सात दिन सात रात तक बारिश कराई। बाद में गुरु बृहस्पति के परामर्श पर इंद्र जाकर श्रीकृष्ण के शरणागत हुए। इंद्र ने आकाश गंगा के जल से श्री कृष्ण का अभिषेक किया। अभिषेक के जल से इस स्थान पर गोविंद कुंड बना।

पूंछरी का लौठा

मान्यता यह है कि लौठा रोजाना कन्हैया के साथ गाय चराने आते थे। भूख लगने पर सिर्फ कन्हैया का छोड़ा हुआ झूठा भोजन ही करते थे। कन्हैया भी उनकी बजह से ज्यादा भोजन रखकर खाने बैठते थे। ब्रज छोड़कर मथुरा जाते समय कन्हैया वापस आने की कहकर गए। कथा के अनुसार लौठा तब से आज तक कन्हैया के आने का इंतजार कर रहा है।

श्रीनाथजी मंदिर

मेवाड़ की अजब कुमारी पिता के शीघ्र स्वस्थ होने की मन्नत लेकर भगवान श्री कृष्ण के दर्शन को गोवर्धन आई। प्रभु की छवि निहार उन्होंने श्री कृष्ण को पति मान लिया। भक्ति से प्रसन्न हो प्रभु ने दर्शन दिए तो अजब कुमारी ने नाथद्वारा चल पिता को दर्शन देने की प्रार्थना की। भक्ति के वशीभूत भगवान ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर प्रार्थना को मान लिया।

दानघाटी

कहा जाता है कि ब्रज की गोपियां राधाकुंड से मथुरा के राजा कंस को माखन का कर चुकाने जाती थीं। कन्हैया ग्वाल बाल के साथ माखन और दही का दान लेते थे। यह कान्हा की दानलीला मनुहार प्रेम और खींचातानी भावमयी लीला का अनूठा संग्रह है। इसी स्थान पर आज भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। इस मंदिर की नींव 1957 में रखी गई थी।

कुसुम सरोवर

कुसुम सरोवर की मान्यता यह है कि श्री कृष्ण ने राधारानी की चोटी गूथकर फूलों से श्रृंगार किया था। कुसुम सरोवर कला का बेजोड़ नमूना है। 1675 तक यह कच्चा था। ओरछा के राजा वीर सिंह ने इसे पक्का कराया। राजा सूरजमल ने बाग लगवाया। जवाहर सिंह ने माता पिता के स्मारक का रूप देकर इसे खूबसूरत बना दिया। राजा के स्मारक के बगल में दोनों ओर रानियों हंसिया और किशोरी की छतरियों की खूबसूरती बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।

राधाकुंड

राधाकुंड और कृष्णकुंड राधा कृष्ण के प्रेम का खूबसूरत परिदृश्य है। मान्यता है कि अहोई अष्टमी को रात 12 बजे स्नान करने से दंपति को संतान प्राप्ति होती है।

सिंदूरी शिला

पर्वतराज की कुछ शिलाएं ऐसी हैं, जिनमें उंगली घिसने से सिंदूर सा लाल रंग का पदार्थ निकलता है। 


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