Vijay Dashmi 2020: राम बनाएंगे बिगड़े काम अगर ध्यान रखेंगे आज ये विशेष बातें
Vijay Dashmi 2020 विजय दशमी या दशहरा का त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान राम ने लंका की लड़ाई में राक्षस रावण का वध किया था। इसके अलावा इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था।
आगरा, जागरण संवाददाता। शारदीय नवरात्र का अंतिम पड़ाव। माता अपराजिता की आराधना कर जब श्रीराम ने किया प्रचंड ज्ञानी, महा प्रतापी असुर का विनाश। जो पर्व संदेश देता है कि सिर्फ बुद्धि से ही सभी कुछ संभव नहीं। मुक्ति तभी मिलती है जब बुद्धि के साथ विवेक भी हो और मर्यादा भी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने इसी संदेश को देने के लिए लीला रची और संदेश दिया कि दशानन रावण महाज्ञानी होने के बावजूद भी अविवेकी और अमर्यादित आचरण से अपने ही विनाश की गाथा लिख सकता है। दशहरा पर्व की विशेषता के बारे में ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा कहती हैं कि विजय दशमी या दशहरा का त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान राम ने लंका की लड़ाई में राक्षस रावण का वध किया था। इसके अलावा इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था इसलिए भी इसे विजयदशमी के रुप में मनाया जाता है।
दशहरा का महत्व
- दशहरे का पर्व साल के सबसे पवित्र और शुभ दिनों में से एक माना गया है। यह तीन मुहूर्त में से एक है - साल का सबसे शुभ मुहूर्त - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया। यह अवधि किसी भी चीज की शुरूआत करने के लिए उत्तम है।
- क्षत्रिय समाज इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं जिसे आयुध पूजा के रूप में भी जानी जाती है। इस दिन शमी पूजन भी करते हैं।
- ब्राह्मण समाज इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।
- वैश्य समाज अपने बहीखाते की आराधना करते हैं।
- नवरात्रि रामलीला का समापन भी दशहरे के दिन होता है।
- रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।
महाभारत काल में महत्व
विजयदशमी के दिन कुछ जगहों पर शमी के वृक्ष की पूजा की जाती है हालांकि, खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। महाभारत के युद्ध में पांडवोंं ने शमी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी। शमी के वृक्ष की नियमित पूजा से परिवार में सुख- शांति आती है। विजयदशमी पर अपराजिता के पूजन का भी महत्व है।
ज्योतिष की नजर में महत्व
विजयादशमी के दिन शमी की पूजा करने का एक कारण यह भी है कि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदाओं का पहले से ही संकेत दे देता है। जिससे किसान आने वाली समस्या के लिए पहले से ही तैयार हो सके और आनेवाले संकट का सामना करने में सक्षम हो। ज्योतिषाचार्य बाराहमिहिर के ‘वृहतसंहिता’ नामक ग्रंथ के ‘कुसुमलता’ अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में शमीवृक्ष का उल्लेख मिलता है। बाराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमी वृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है।
पौराणिक कथाएं
विजयादशमी और शमी से एक जुड़ी पौराणिक कथा भी प्रचलित है। महर्षि वर्तन्तु के शिष्य कौत्स थे। महर्षि ने अपने शिष्य कौत्स से शिक्षा पूरी होने के बाद गुरू दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा की मांग की थी। महर्षि को गुरु दक्षिणा देने के लिए कौत्स महाराज रघु के पास जाकर उनसे स्वर्ण मुद्रा की मांग करते हैं। राजा का खजाना खाली था तब राजा ने तीन दिन का समय मांगा। राजा धन जुटाने के लिए उपाय ढूंढने लगे। राजा ने कुबेर से सहायता मांगी लेकिन उन्होंने मना कर दिया। राजा ने तब तय किया कि स्वर्गलोक पर आक्रमण करके धन प्राप्त करेंगे। राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्याक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करने का आदेश दिया। इंद्र के आदेश पर रघु के राज्य में कुबेर ने शमी वृक्ष के पत्तों को स्वर्ण में बदल दिया। माना जाता है कि जिस तिथि को स्वर्ण की वर्षा हुई थी उस दिन विजयादशमी थी। इस घटना के बाद से विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा होने लगी।
शनि को प्रकोप कम होता है
इसी तरह मान्यता है कि शमी का वृक्ष घर में लगाने से देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। शमी के वृक्ष की पूजा करने से घर में शनि का प्रकोप कम होता है। शमी के वृक्ष होने से सभी तंत्र-मंत्र और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। एक मान्यता के अनुसार कवि कालिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इस मंत्र का करें जाप
विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर उसे प्रणाम करते हुए पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से मनोकामना और इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।
श्री राम से जुड़ी कुछ खास बातें
आपने श्री राम से जुड़ी कई कहानियां सुनी होंगी जिनमें उनके भाइयों के बारे में ज़िक्र किया गया होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्री राम की एक बड़ी बहन भी थी जिसका नाम शांता था। रानी कौशल्या ने एक पुत्री को भी जन्म दिया था और वो थी शांता। रानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी और उनके पति रोमपद जो अंगदेश के राजा थे उनकी कोई संतान नहीं थी इसलिए राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद दे दिया था।
श्रीराम का वनवास
कहते हैं श्री राम का वनवास अयोध्या से आरंभ हुआ था और श्रीलंका में जाकर यह समाप्त हुआ था। इस दौरान उनके साथ अलग अलग स्थानों पर कई घटनाएं घटी जिनमें से तकरीबन 200 से अधिक स्थानों के बारे में पता लगाया जा चुका है। इसमें इलाहाबाद, चित्रकूट, सतना (मध्य प्रदेश) आदि जैसे स्थान शामिल हैं।
राम ने ली थी जल समाधि
कहा जाता है वनवास से लौटने के पश्चात प्रभु श्री राम ने कुछ समय तक अपना राज पाट संभाला किन्तु कुछ समय बाद उन्होंने संसार को छोड़ने का मन बना लिया इसलिए उन्होंने जल समाधि ले ली थी। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम ने सरयू नदी में समाधि ली थी। एक कथा के अनुसार यमराज यह भली भांति जानते थे कि बिना अपनी इच्छा के न तो श्री राम अपने प्राण का त्याग करेंगे और न ही उनके भाई लक्ष्मण इसलिए उन्होंने एक एक चाल चली और दोनों भाइयों को अपने वचन और कर्त्वय का पालन करने के लिए मजबूर कर दिया।
श्री राम के चरणों में था कमल के फूल का चिन्ह
कहा जाता है कि धरती पर जब भी कोई दिव्य अवतार का जन्म होता था तब उसके शरीर पर कोई न कोई ऐसा निशान या चिन्ह बना होता था जो इस बात की पुष्टि करता था कि वह साधारण मनुष्य नहीं है। इसी प्रकार जब श्री राम का जन्म हुआ तो उनके चरणों में कमल के फूल का चिन्ह बना हुआ था। कहते हैं ऐसा ही चिन्ह भगवान श्री कृष्ण के पैरों में भी था।