Lunar Eclipse 2020: महज खगोलीय घटनाक्रम नहीं है चंद्रग्रहण, जानिए धर्म और विज्ञान में महत्व Agra News
चंद्रग्रहण का प्रारंभ 10 जनवरी की रात्रि से ही हो जाएगा। जो 11 जनवरी को तड़के 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।
आगरा, तनु गुप्ता। यूं ग्रहण का नाम आते ही विशेष सावधानियां और सतर्कता बरतने की बातें होनेे लगती हैं। अथाह आकाश में हर वक्त कुछ न कुछ खगोलिय घटना घटित होती ही रहती है। सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण भी उन्हीं घटनाओं का ही एक हिस्सा है लेकिन अन्य घटनाक्रम से इतर ग्रहण्ा को आम जनमानस में विशेष्ा महत्व दिया जाता है। इस बाबत जागरण डॉट कॉम ने धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी से बात की और जाना ग्रहण का धर्म विज्ञान में क्या महत्व है।
पंडित वैभव जोशी के अनुसार वर्ष 2019 का अंत सूर्य ग्रहण के साथ हुआ था और आरंभ अब 11 जनवरी को चंद्र ग्रहण के साथ हो रहा है। हालांकि इसका प्रारंभ 10 जनवरी की रात्रि से ही हो जाएगा। जो 11 जनवरी को तड़के 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण दोनों ही एक खगोलीय घटना है, हालांकि इसके पीछे धार्मिक मत भी हैं।
क्यों लगता है चंद्र ग्रहण
चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है। पृथ्वी सूर्य का और चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता रहता है। जब ये तीनों एक सीध में आ जाते हैं तो ग्रहण लगता है। जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है और चंद्रमा उससे ढक जाता है, चंद्रमा तक सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं, तब चंद्र ग्रहण लगता है। यह आंशिक और पूर्ण दो तरह का होता है।
धर्म में चंद्रमा की महत्वता
सूर्य देवता के अस्त होते ही चंद्रदेव अपना शीतल प्रकाश पृथ्वी पर बिखेरने लगते हैं। सनातन परंपरा में तमाम देवी-देवताओं की तरह चंद्रदेव भी पूज्य हैं। चंद्रमा के जन्म को लेकर तमाम तरह की पौराणिक कथाओं का जिक्र मिलता है। मत्स्य एवं अग्नि पुराण में चंद्रदेव के जन्म की कथा के अनुसार एक बार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार आया तो उन्होंने उससे पहले मानस पुत्रों की रचना की। इन्हीं मानस पुत्रों में से एक ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ था। जिनसे दुर्वासा, दत्तात्रेय व सोम नाम के तीन पुत्र हुए। मान्यता है कि सोम चन्द्रदेव का ही एक नाम है और वह इन्हीं दोनों की संतान हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला तो उसे लेने के लिए देवताओं और दानवों के बीच लड़ाई होने लगी। देवताओं को मिले अमृत पर दानव भी हक जता रहे थे। इस विवाद को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की सुंदर कन्या का रूप धारण उसका बंटवारा करने की बात कही। जब मोहिनी के वेष में भगवान विष्णु देवताओं की पंक्ति में अमृत बांट रहे थे तो राहु नामक असुर भी उनके बीच जाकर चुपचाप बैठ गया। लेकिन इस बात की भनक भगवान सूर्यदेव और चंद्रदेव को लग गई। हालांकि तब तक देर हो चुकी थी और राहु ने अमृत प्राप्त कर लिया था, लेकिन उसी समय भगवान विष्णुने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं और उसका सिर और धड़ राहु और केतु नामक छाया ग्रह के रूप में स्थापित हो गए। धार्मिक मान्यता के अनुसार राहु और केतु के कारण ही चंद्रग्रहण और सूर्य ग्रहण की घटना घटती है। हालांकि विज्ञान के अनुसार जब सूर्य की परिक्रमा करती हुई पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है तो चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं और उस पर पृथ्वी की छाया पड़ने लगती है। जिसके कारण चांद दिखना बंद हो जाता है और यह खगोलीय घटना चंद्र ग्रहण कहलाती है।
ग्रहण के दौरान करें दान
चंद्रग्रहण के दौरान अपने पूज्य गुरु, ब्राह्मण, पुरोहित अथवा जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा देने का विशेष विधान है। ग्रहण का सूतक लगने के बाद अनाज, पुराना पहना हुआ कपड़ा आदि निकाल कर रख लें और उसे ग्रहण के पश्चात् दान कर दें। इस उपाय को करने से चंद्रग्रहण का दोष दूर होगा और चंद्रदेव की कृपा प्राप्त होगी।
चंद्रग्रहण का असर कम करती है तुलसी
चंद्रग्रहण का असर न सिर्फ मनुष्यों, जीव जंतुओं और प्रकृति पर पड़ता है, बल्कि घर में रखे भोज्य एवं पेय पदार्थों पर भी पड़ता है। ऐसे में उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए उसमें ग्रहण से पहले तुलसी के पत्ते डालने का विधान है। इस परंपरा के पीछे धार्मिक विद्वानों का तर्क है कि तुलसी में पारा होता है। ऐसे में उसके ऊपर किसी भी किरणों का कोई असर नहीं होता है। चूंकि चंद्रग्रहण के समय पराबैंगनी किरणों सबसे ज्यादा बुरा असर होता है, इसलिए खाने में तुलसी का पत्ते रखने से वह निष्क्रिय हो जाती हैं। वहीं धार्मिक दृष्टि से तुलसी के पौधे को पवित्र मानते हुए सभी दोषों को दूर करने वाला माना गया है। मान्यता है कि यह सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा खत्म कर देती है। इसीलिए ग्रहण से पहले खाने-पीने की चीजों में तुलसी की पत्ती डालने का विधान है।
चंद्रगहण के समय जपें यह मंत्र
शास्त्रों में कहा गया है कि ग्रहण काल में स्नान, ध्यान, दान, मंत्र जप, स्तोत्र-पाठ, मंत्रसिद्धि, तीर्थस्नान, हवन-कीर्तन का विशेष फल है। इन सभी चीजों को करने से जीवन से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं और सुखों की प्राप्ति होती है। चन्द्रग्रहण के समय अपने आराध्य देवी-देवता के मंत्र का जाप करने से न सिर्फ आप ग्रहण के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं, बल्कि उनकी कृपा भी प्राप्त कर सकते हैं। मंत्र सिद्धि के लिए तो यह सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है। चंद्रग्रहण के समय इन मंत्रों का करें जाप —
चंद्रदेव का मंत्र — ॐ ऐं ह्रीं सोमाय नमः।
महादेव का मंत्र — ॐ नम: शिवाय।
भगवान विष्णु का मंत्र — ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:।
देवी दुर्गा का मंत्र — 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।
हनुमान जी का मंत्र — ॐ रामदूताय नम:।
मां लक्ष्मी का मंत्र — ॐ श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं ॐ स्वाहा:।
श्रीकृष्ण का मंत्र — क्लीं कृष्णाय नम:।
चंद्र ग्रहण के दिन क्या न करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्र ग्रहण के दिन बहुत से काम करना निषिद्ध है। यदि कोई व्यक्ति उन नियमों को तोड़ता है, तो उससे उसका जीवन प्रभावित होता। चंद्र ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान रखना होता है।
- ऐसी मान्यता है कि ग्रहण काल में सोने से व्यक्ति को अनेक प्रकार के रोग होते हैं। मल त्यागने से पेट में कृमि रोग, मालिश करने से कुष्ठ रोग होता है। स्त्री प्रसंग से अगले जन्म में सूअर की योनि में जन्म मिलता है।
- ग्रहण काल के समय भोजन करना वर्जित है। ऐसे करने वाला व्यक्ति जितने अन्न के दाने ग्रहण करता है, उतने वर्ष उसे नरक में व्यतीत करने होते हैं।
- पुराणों के अनुसार, ग्रहण में किसी अन्य व्यक्ति का भोजन करता है तो 12 वर्षों का पुण्य नष्ट हो जाता है।
- ग्रहण काल के समय कोई भी शुभ या नवीन कार्य करना वर्जित माना गया है।
- ग्रहण के दिन फल, फूल, लकड़ी पत्ते आदि नहीं तोड़ना चाहिए।
- ग्रहण काल में भोजन करना, जल पीना, केश बनाना, सोना, मंजन करना, वस्त्र नीचोड़ना, संभोग करना, ताला खोलना आदि वर्जित है।
गर्भवती महिलाएं रखें विशेष ध्यान
पंडित वैभव बताते हैं कि गर्भवती महिलाओं को चंद्र ग्रहण के समय विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसी महिलाओं को चंद्र ग्रहण नहीं देखना चाहिए। चंद्र ग्रहण देखने से शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के समय कैंची, चाकू आदि से कोई वस्तु नहीं काटनी चाहिए। वस्त्र आदि की सिलाई भी नहीं करनी चाहिए।