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सोशल डिसटेंस या दूरी क्‍यों जरूरी, नमस्‍ते के क्‍या फायदे, ये खबर देगी आपके सवालों के जवाब

धर्म वैज्ञानिक डॉ जे जोशी ने बताया नमस्‍कार के पीछे छुपा विज्ञान। कहा हाथ मिलाने की परंपरा देती है अनेकों बीमारियों को न्‍यौता।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 25 Mar 2020 07:54 PM (IST)Updated: Wed, 25 Mar 2020 07:54 PM (IST)
सोशल डिसटेंस या दूरी क्‍यों जरूरी, नमस्‍ते के क्‍या फायदे, ये खबर देगी आपके सवालों के जवाब
सोशल डिसटेंस या दूरी क्‍यों जरूरी, नमस्‍ते के क्‍या फायदे, ये खबर देगी आपके सवालों के जवाब

आगरा, तनु गुप्‍ता। दूरी में ही जिंदगी है। जी हां, कोरोना काल का ये दौर दूर दूर रहने के लिए ही प्रेरित कर रहा है। जितना दूर रहेंगे उतना ही कोरोना वायरस से बचे रहेंगे। दिसंबर 2019 में जब चीन के वुहान से ये जानलेवा संक्रमण फैलना शुरु हुआ तो सबसे पहले लोगों को एक दूसरे से हाथ न मिलाने की ही सलाह दी गई। यदि अभिवादन करना ही है तो नमस्‍कार करने की सलाह दी गई। पूरी दुनिया आज जिस चलन की पक्षधर हो रही है उस चलन के पीछे छुपे विज्ञान को सनातन धर्म ने सदियों पहले ही मान लिया था। नमस्‍कार के विज्ञान पर शोध करने वाले उज्‍जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्‍थान के निर्देशक डॉ जे जोशी से जागरण डॉट कॉम ने फोन पर बात कर इस विज्ञान के मर्म को समझा।

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डॉ जे जोशी के अनुसार हाथ मिलाना यानि हस्‍त मिलन को आधुनिक समाज में संस्‍कार के तौर पर देखा जाता है। विदेश से शुरु हुआ ये चलन पूरी दुनिया में अपनी गहरी पकड़ बना चुका है। सनातन धर्म के पथ पर चलने वाला भारत भी इससे अपने को नहीं बचा पाया। संभ्रात समाज में तो हस्‍त मिलन अतिआवश्‍यक हो चुका है। जबकि सही मायने में हस्‍त मिलन हरेक से करना खुद अपने लिए बहुत बड़ी हानि बन सकता है। हस्‍त मिलन शरीर की ऊर्जा का नाश करके वायरसों के संक्रमण के साथ बीमारियों का जनक बन जाता है।

दोनों हाथ जोड़कर ही करें नमस्‍कार 

नमस्‍कार का विज्ञान अथाह है। दोनों हाथ जोड़कर किया गया नमस्‍कार शरीर में ऊर्जा प्रदान करता है। सम्‍मान, सुरक्षा का संकेत, ईश्‍वर की आराधना का स्‍वरूप प्रणाम की मुद्रा है नमस्‍कार। नमस्‍कार एक संस्‍कार भी है। यह अभिवादन की मुद्रा से अपनी उपस्थिति का संकेत देता है। डॉ जे जोशी कहते हैं कि वास्‍तव में सनातन धर्म में क्रिया, नाड़ी और स्‍वर के अनुसार पूर्ण होती है। नासिका से निकलने वाला बायां स्‍वर हो तो शारीरिक दोष उत्‍पन्‍न होता है। ये स्‍वर अपनत्‍व को घटाता है और ऊर्जा का पतन करता है। मानव के रक्‍त परिचरण तंत्र में प्राण वायु और अपान वायु का प्रवाह, शिरा और धमनियों के माध्‍यम से होता है। बिना हाथ जोड़े प्रणाम करने से अपान वायु रुकती है। शरीर में विषाक्‍त रुकता है। इसलिए एक हाथ से प्रणाम करने से बचना चाहिए। भारतीय परिवेश ऐसा है कि अपान वायु रुकी कि जीवन और वायु कम होती है।

हाथ मिलाने के नुकसान 

सनातन धर्म में हस्‍त मिलन की पात्रता विवाह, युद्ध और परिणय विधा तक सीमिति है। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में हस्‍त मिलन न करना अव्‍यवाहरिक माना जाता है। इसलिए दुनिया के साथ चलने के लिए सुपारी का स्‍पर्श या तुलसी पत्र का स्‍पर्श प्रात: के समय अवश्‍य करें। इससे ऊर्जा का विनिमय नहीं होगा। डॉ जे जोशी कहते हैं कि भारतीय पर्यावरण में रितुएं ऐसी होती हैं जिनमें वायरस, जीवाणु विद्यमान होते हैं। वायु प्रदूषण पर्याप्‍त है एवं हस्‍त धोने के बाद भी हाथों में अशुद्धता बनी रहती है। हाथ मिलाने से इनका विनिमय होता है। इसका प्रभाव सर्वाधिक रूप से मानसिक तनाव, हृदय घात और एलर्जी का कारण बनता है। बार बार मिलाने से बुद्धि लब्धि बल कम होता है। शरीर में थकान बनी रहती है। निर्णय लेने की क्षमता कम हो जाती है। जिससे हम हाथ मिला रहे हैं उसको आंतरिक व्‍याधि हो, कलह और क्रोध से पीडि़त हो, अभाव से जीवन जीता हो तो वह आपकी शक्ति हरण करने में कसर नहीं छोड़ता। हाथ मिलाना भारतीय पर्यावरण के अनुकूल नहीं है।


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